अपहृत कोचिंग संचालक सकुशल लौटे
हाजीपुर. कोचिंग संचालक अच्युतानंद शर्मा अपहरणकर्ताओं के चंगुल में 28 दिनों तक रहने के बाद अचानक शुक्रवार की सुबह सकुशल अपने घर लौट आये. इस खबर ने उनके सभी शुभचिंतकों के लिए सुखद अनुभूति के समान थी. परिजनों में खुशी की लहर दौड़ आयी तो पुलिस ने राहत की सांस ली, पर कल तक पुलिस […]
हाजीपुर.
कोचिंग संचालक अच्युतानंद शर्मा अपहरणकर्ताओं के चंगुल में 28 दिनों तक रहने के बाद अचानक शुक्रवार की सुबह सकुशल अपने घर लौट आये. इस खबर ने उनके सभी शुभचिंतकों के लिए सुखद अनुभूति के समान थी. परिजनों में खुशी की लहर दौड़ आयी तो पुलिस ने राहत की सांस ली, पर कल तक पुलिस के कोई सुराग हाथ न लगने के दावे के विपरीत अपहरणकर्ताओं के चंगुल अचानक कैसे ढीले पड़े, कि उन्हें अच्युतानंद को छोड़ना पड़ा. यह ऐसा सवाल है, जिसका जवाब पुलिस तलाश रही है.
हाइ प्रोफाइल ड्रामा या अपहरणकर्ताओं की कारस्तानी! : शहर के आरएन कॉलेज के समीप स्थित साकेत नगर मोहल्ले के अच्युतानंद शर्मा की 10 जनवरी को पटना अपने कोचिंग के लिए निकलने पर रास्ते में अपहरण हो जाने की सूचना पुलिस को मिली थी. पूछताछ में उनके किसी से भी दुश्मनी न होने तथा व्यवहार कुशल उनके स्वभाव के बारे में जान कर पुलिस सोचने लगी कि आखिर अपहरण किस लिए किया गया. उनके घर वापसी के पूर्व तक पुलिस का कहना था कि बेगूसराय व मुजफ्फरपुर के बीच अपहरणकर्ताओं के लोकेशन होने की आशंका पर छापेमारी की गयी, लेकिन उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा. इस बीच अच्युतानंद की राइटिंग में लिखा पत्र उनके घर आने की सूचना जरूर मिली, जिसमें रुपये की मांग किये जाने की बात कही गयी, लेकिन इसका किसी ने खुलासा नहीं किया. ऐसे में यह माना जाने लगा कि अपहरणकर्ताओं की मांग मानते हुए परिजन किसी तरह अच्युतानंद की वापसी चाहते हैं. अपहरण के 28 दिनों में अपहरणकर्ताओं तथा पीड़ित पक्ष के बीच जो कुछ संवाद हुआ तथा पुलिस ने कैसी सक्रियता दिखायी इसकी सही जानकारी तो संबंधित पक्ष ही देगा.
अच्युतानंद ने किया खुलासा : अपहरणकर्ताओं के चंगुल से 28 दिन बाद छूट कर आये अच्युतानंद ने पूरे मामले को प्रभात खबर टीम को बताया. उन्होंने कहा कि 10 जनवरी की सुबह छह बजे अपनी स्कूटी से पटना के लिए निकला था कि शहर में ही बाजार समिति गली के पास पहले से खड़ी काले रंग की सफारी में हमें खींच कर बैठा लिया गया. गाड़ी के अंदर मेरी आंख पर पट्टी बांध दी गयी. इसके कुछ क्षण बाद ही मैं बेहोश हो गया. होश आने पर हमें यह एहसास हुआ कि मैं कहीं पुआल पर बैठाया गया हूं.
अपहरण के साथ रिहा होने तक मेरी आंखों पर पट्टी बंधी रही. 28 दिनों तक एक ही स्थान पर उन सबों ने रखा. जिनकी संख्या आधा दर्जन तथा उम्र 20 से 25 के करीब रही होगी. अपहृत रहने के दौरान उन सबों ने हमसे यह चिट्ठी लिखवाई कि पापा इनकी मांगों को मान लीजिए. अच्युतानंद के मुताबिक उसमें किसी रकम का जिक्र उन लोगों ने नहीं किया था. आखिरकार अचानक छह फरवरी की शाम हमें मुक्त कर देने की योजना बनायी. यह जानकारी आंख पर पट्टी बंधे होने के बाद भी उनकी आपसी बातचीत से हमें हुई. इसके बाद उन लोगों ने शनिवार की प्रात: तीन बजे पटना बिस्कोमान भवन से रेलवे जंकशन की ओर जाने वाली सड़क पर बाइक से लाकर छोड़ दिया. अच्युतानंद ने कहा कि अपहृत स्थान से पटना ले आने तक उन सबों ने दो बार अलग-अलग चार पहिया वाहन तथा दो पहिया वाहन का प्रयोग किया. रेलवे स्टेशन रोड से जंकशन मैं पैदल ही आया तथा यहां से ऑटो लेकर अपने घर तक सुबह सात बजे पहुंचा. घर पहुंचने के पूर्व तक परिजनों को कोई जानकारी नहीं दे पाया था.
एसपी ने कहा : आरक्षी अधीक्षक सुरेश प्रसाद चौधरी ने कहा कि अपहरणकर्ताओं के खिलाफ पुलिस द्वारा बिछाये गये जाल के चलते विवश होकर उन सबों ने अच्युतानंद को मुक्त कर दिया. पुलिस टीम के प्रयास से यह कामयाबी मिली है.