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वैशाली व सीतामढ़ी के 85-90 साल पुराने जमीन दस्तावेज की मुजफ्फरपुर में हो रही खोज, जानें क्या है मामला

Bihar news: मुजफ्फरपुर के साथ-साथ सीतामढ़ी, शिवहर व वैशाली के भी लोग निबंधन अभिलेखागार में अपने पूर्वजों के नाम संपत्ति की ब्योरा जानने के लिए आवेदन किये हैं. इसके लिए बड़ी संख्या में लोग अब रजिस्ट्री ऑफिस पहुंच रहे हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 17, 2022 1:02 AM

देवेश कुमार, मुजफ्फरपुर: लगभग पांच दशक बाद मुजफ्फरपुर सहित आसपास के जिलों में जमीन की नये सिरे से होने वाले सर्वे की प्रशासनिक तैयारी शुरू हो गयी है. इस बीच रजिस्ट्री ऑफिस में दशकों पुराने रिकॉर्ड भी खंगाले जाने लगे हैं.

पैतृक संपत्ति का ब्योरा नहीं मिल रहा

हालांकि, वर्ष 2006 में कंप्यूटराइज्ड रजिस्ट्री प्रक्रिया शुरू होने से लगभग दस साल पहले के रिकॉर्ड को तो स्कैन करने के बाद विभागीय वेबसाइट पर ऑनलाइन कर दिया गया है, जहां से लोग खाता, खेसरा नंबर डालने के बाद पूरी जानकारी हासिल कर सकते हैं. लेकिन, 1995 से पहले के रिकॉर्ड का डिजिटलाइजेशन नहीं किया जा सका है. इससे अपने पैतृक संपत्ति का ब्योरा व इसके असली हकदार की जानकारी लोगों को नहीं मिल पा रही है.

बड़ी संख्या में रजिस्ट्री ऑफिस पहुंच रहे लोग

इसके लिए बड़ी संख्या में लोग अब रजिस्ट्री ऑफिस पहुंच रहे हैं. मुजफ्फरपुर के साथ-साथ सीतामढ़ी, शिवहर व वैशाली के भी लोग निबंधन अभिलेखागार में अपने पूर्वजों के नाम संपत्ति की ब्योरा जानने के लिए आवेदन किये हैं.

1945 से पहले का रिकॉर्ड मुजफ्फरपुर के निबंधन अभिलेखागार में

दरअसल, 1945 से पहले वैशाली, सीतामढ़ी व शिवहर जिले का रिकॉर्ड भी मुजफ्फरपुर के निबंधन अभिलेखागार में ही रखा है. तब के रिकॉर्ड में उनकी पैतृक संपत्ति किसके नाम रजिस्टर्ड था. इसका रकबा कितना है. इन सभी बिंदुओं की जानकारी हासिल करने के लिए लोग आवेदन कर रहे हैं. हालांकि, पुराने दस्तावेजों की खोजबीन करना अभिलेखागार में काम कर रहे कर्मियों के लिए मुश्किल हो रहा है. लेकिन, ऑफिस का दावा है कि प्रतिदिन 60-70 लोगों को उनके दस्तावेज की खोजबीन कर उसकी सत्यापित कॉपी उपलब्ध करायी जा रही है.

मुजफ्फरपुर निबंधन अभिलेखागार में रखा है 300 साल पुराना रिकॉर्ड

रिकॉर्ड रूम में काम करने वाले कर्मियों के मुताबिक, निबंधन अभिलेखागार में लगभग 300 साल पुराना रिकॉर्ड है. लेकिन, उसकी स्थिति काफी खराब हो गयी है. पन्ना पलटने में नष्ट हो जा रहा है. वहीं, दस्तावेज में जो भाषा लिखा है, उसे समझने वाला भी अब कोई कर्मचारी व दस्तावेज नवीस (कातिब) नहीं बचा है. इसलिए 1925 से पहले का रिकॉर्ड खोजना संभव नहीं है. बताया जाता है कि 1734 के बाद से 2006 तक का रिकॉर्ड पड़े हुए हैं. 60-65 साल तक के पुराने रिकॉर्ड की खोजबीन करना अभी आसान है. इससे पहले के रिकॉर्ड को खोजना मुश्किल हो गया है.

इसलिए पुराने दस्तावेजों की लोगों को पड़ी है जरूरत

जमीन के पुराने दस्तावेजों की आवश्यकता अचानक पड़ने के पीछे कई कारण बताये जा रहे हैं. इसमें एक कारण सामान्य है. वह जमीन के रकबा व टाइटल में अंतर होना बताया जा रहा है. मुजफ्फरपुर, वैशाली सहित उत्तर बिहार के कई जिले में आखिरी सर्वे 1975 में फाइनल हुआ है. नये सर्वे में खतियान व नक्शा में जमीन के रकबा में अंतर आ गया है. यह अंतर दोबारा नहीं आये. इसके लिए अब नये सिरे से सर्वे शुरू होने से पहले लोग पुराने रिकॉर्ड के आधार पर अपने खतियानी जमीन का सही रकबा नक्शा में भी दर्ज कराना चाह रहे हैं. इसके अलावा भी पूर्वजों की जानकारी जुटाने के लिए भी बहुत सारे लोग अपने पुराने दस्तावेजों की खोजबीन करा रहे हैं.

पूर्वजों के नाम संपत्ति की जानकारी लेने के लिए आवेदनों की संख्या में अचानक वृद्धि हुई है. 60-70 आवेदन रोज प्राप्त हो रहा है. इसमें सीतामढ़ी, वैशाली व शिवहर के भी लोग पहुंच रहे हैं. क्योंकि, इन तीनों जिले का 1945 का रिकॉर्ड मुजफ्फरपुर अभिलेखागार में ही रखा है- राकेश कुमार, जिला अवर निबंधक, मुजफ्फरपुर

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