समस्तीपुर जिले में 900 निजी विद्यालय, पर 551 ही निबंधित
समस्तीपुर : शिक्षा विभाग के आंकड़ों के मुताबिक जिले में करीब 900 से ज्यादा निजी विद्यालय चल रहे हैं. लेकिन इन विद्यालयों में से केवल 551 विद्यालय ही शिक्षा विभाग द्वारा निबंधित हैं. यानी जिले के अंदर चल रहे विद्यालयों में आधे विद्यालय बिना शिक्षा विभाग की देखरेख के चल रहे हैं. इसके लिए शिक्षा विभाग जिम्मेदार है या फिर निजी विद्यालयों के संचालक.
समस्तीपुर : शिक्षा विभाग के आंकड़ों के मुताबिक जिले में करीब 900 से ज्यादा निजी विद्यालय चल रहे हैं. लेकिन इन विद्यालयों में से केवल 551 विद्यालय ही शिक्षा विभाग द्वारा निबंधित हैं. यानी जिले के अंदर चल रहे विद्यालयों में आधे विद्यालय बिना शिक्षा विभाग की देखरेख के चल रहे हैं. इसके लिए शिक्षा विभाग जिम्मेदार है या फिर निजी विद्यालयों के संचालक. पिछले कुछ सालों से जिले में निजी विद्यालयों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि देखी जा रही है. ये निजी विद्यालय बिना किसी मानक के जिले के शहर से लेकर गांव तक हर गली मोहल्ले में धड़ल्ले से खुलते जा रहे हैं. मानक को नजरअंदाज कर अपने मनमाफिक भवनों का लगातार निर्माण कराया जा रहा है. स्कूल के निर्माण से पहले स्कूल में बन रहे भवन जैसे कमरों की संख्या बाथरूम की संख्या, गैलरी से लेकर भवन निर्माण में कितनी जमीन का उपयोग बिजली से लेकर पानी तक की क्या है, व्यवस्था के बारे में शिक्षा विभाग को जानकारी देते हुए एनओसी लेना पड़ता है.
बिना आरटीई व एनओसी के धड़ल्ले से स्कूल खुल रहे निजी विद्यालय
जिले में विभिन्न जगहों पर बिना आरटीई व एनओसी के धड़ल्ले से नई प्राइवेट स्कूल खुल रहे हैं. बीते साल की बात करें तो जिले में करीब 20 से ज्यादा स्कूल खुल गए हैं. इसकी जानकारी न तो शिक्षा विभाग को है और न ये स्कूल किसी बोर्ड से संबंध हैं. अब जब जिला शिक्षा कार्यालय द्वारा स्कूलों की सूची तैयार की गई तो पता चला कि जिले भर में 900 से अधिक स्कूल चल रहे हैं. वहीं, पूरे जिले से मात्र 551 निजी स्कूलों ने ही जिला शिक्षा कार्यालय से एनओसी कराया है. शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 की कंडिका के उपकंडिका एक में स्पष्ट है कि कोई स्कूल बिना स्थानीय सरकार की अनुमति के स्कूल संचालित नहीं कर सकता है.
आवेदन करने के बाद मान्यता प्राप्त किए बिना स्कूल स्थापित नहीं किया जा सकता है. शिक्षा विभाग आज तक जिले में किसी भी विद्यालयों के ऊपर निबंधन को लेकर कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की है. जिला शिक्षा कार्यालय की मानें तो शहरी क्षेत्रों के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्कूलों की संख्या बढी है. लेकिन पिछले 2 साल में जो भी निजी स्कूल खुले हैं, उन्होंने आवेदन तक देना उचित नहीं समझा है. जब आरटीई के तहत आर्थिक रूप से कमजोर 25 फिसदी बच्चों के दाखिले की बात आती है, तो ज्यादा स्कूल चुप्पी साध लेते हैं. जिले में चल रहे एनओसी प्राप्त निजी विद्यालयों में 143 विद्यालय आरटीई के तहत 25 फीसदी बच्चों के नामांकन से संबंधित जानकारी नहीं दी है.
सीबीएसई के नाम पर धोखा दे रहे गैर मान्यता प्राप्त स्कूल
गली-मुहल्लों में खुले स्कूल न केवल बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं, बल्कि अभिभावकों से लेकर शिक्षा विभाग तक की आंखों में खुलेआम धूल झोंक रहे हैं. न तो बिहार सरकार से एनओसी और न ही सीबीएसई-आइसीएसई से संबद्धता, पर शिक्षा माफिया धड़ल्ले से अपनी जेबें भर रहे हैं. जिले में कई ऐसे गैर मान्यता प्राप्त स्कूल हैं, इन स्कूलों को अभी तक एनओसी नहीं मिली है, पर यहां कक्षाएं सीबीएसई के पाठ्यक्रम के अनुसार चल रही हैं. सीबीएसई पाठ्यक्रम चलाने के लिए भी सीबीएसई से अनुमति की दरकार है. पर जिले के गैर मान्यता प्राप्त निजी स्कूल इन नियमों की धड़ल्ले से अनदेखी कर रहे हैं.
आपको जानकार हैरानी होगी कि इन मान्यता प्राप्त स्कूल और मान्यता प्राप्त स्कूलों में लगभग एक दर्जन स्कूल ऐसे हैं, जो छात्रों को पढ़ाते तो अपने यहां हैं, पर दसवीं की बोर्ड परीक्षा दूसरे स्कूलों से दिलवाते हैं. छात्रों से बोर्ड परीक्षा के पंजीयन, निर्धारित परीक्षा फीस से दुगना वसूल करते हैं, जबकि सीबीएसई के स्पष्ट निर्देश हैं कि कोई भी स्कूल अपने छात्रों को दूसरे स्कूल से परीक्षा नहीं दिला सकता. गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों को तो अपने यहां नौवीं-दसवीं कक्षाएं संचालित करने का अधिकार ही नहीं है, बावजूद इसके मोटी कमाई के लिए स्कूल ऐसा कर रहे हैं.
posted by ashish jha