ऑपरेशन में कुछ घंटे और होती देरी तो हो जाती मौत, ब्लैक फंगस के दो संक्रमितों की पटना के डॉक्टरों ने ऐसे बचायी जान…
पटना में एक निजी अस्पताल के डॉक्टरों ने ब्लैक फंगस व म्यूकर माइकोसिस से संक्रमित दो मरीजों की जान बचा ली. एक का तो ऑपरेशन करना पड़ा, लेकिन दूसरे की दवा से ही स्थिति सुधर गयी. यदि 24 घंटे की भी देरी हो जाती तो जिस मरीज का ऑपरेशन हुआ, उसे बचाना मुश्किल होता.
पटना. पटना में एक निजी अस्पताल के डॉक्टरों ने ब्लैक फंगस व म्यूकर माइकोसिस से संक्रमित दो मरीजों की जान बचा ली. एक का तो ऑपरेशन करना पड़ा, लेकिन दूसरे की दवा से ही स्थिति सुधर गयी. यदि 24 घंटे की भी देरी हो जाती तो जिस मरीज का ऑपरेशन हुआ, उसे बचाना मुश्किल होता. लेकिन अस्पताल के न्यूरो सर्जन डॉ नासीब इकबाल कमाली की तत्परता से दोनों मरीजों की जान बच गयी.
डॉ कमाली ने बताया कि 37 वर्षीय एक व्यक्ति कोरोना से उबरा था. उसका दिल्ली में इलाज चला था. उस दौरान उसे स्टेराॅयड का अत्यधिक डोज एक सप्ताह तक दिया गया था. कोरोना का लक्षण जैसे ही खत्म हुआ, उसे धुंधला दिखाई देने लगा, एक चीज दो दिखाई देने लगी, गाल पर लाली आ गयी और दर्द भी, दांत हिलने लगे, कान और गर्दन के ऊपर दर्द होने लगा, तालू में कालापन आ गया, आंख की पुतली काम नहीं कर रही थी.
एमआरआइ और पैथोलॉजिकल जांच में भी ब्लैक फंगस की पुष्टि हो गयी. तत्काल उसे दवाई दी गयी, जिससे राहत मिली और उसका तत्काल ऑपरेशन कर के साइनस और नाक के बीच अंदरूनी हिस्से की सफाई की गयी. सारे फंगस को निकाला गया. अब दर्द नहीं है.
लोगों में फंगल इफेक्शन का बढ़ा खतरा, रहें सतर्क
पोस्ट कोविड के दौरान लोगों में फंगल इंफेक्शन का खतरा बढ़ा है. जो लोग मधुमेह, किडनी, हार्ट, कैंसर या अन्य बीमारियों से पहले से ग्रसित हैं, उनमें यह फंगल इंफेक्शन का खतरा अधिक होता है.
यह कहना है कि फिजीशियन व मधुमेह रोग विशेषज्ञ डॉ हिमांशु माधव का. उन्होंने बताया कि यह इंफेक्शन ज्यादातर लोगों में नाक या मुंह में होता है, इसलिए अगर कोरोना संक्रमण से मुक्त होने के बाद मुंह के भीतर या नाक के भीतर छाला या अन्य तरह का कोई जलन महसूस हो, तो डॉक्टर से जरूर मिलें. खुद से दवा का सेवन नहीं करें. यह खतरनाक हो सकता है.
यह भी देखा गया है कि जिन मधुमेह रोगी को कोरोना के दौरान ऑक्सीजन दिया गया है, उनमें यह फंगल ज्यादा पाया जाता है. बुखार की शिकायत रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद आती है, तो वैसे मरीजों को परेशान होने की जरूरत नहीं है.
अधिकतर मरीज इस बात को लेकर परेशान होते हैं कि रिपोर्ट निगेटिव आने पर भी उन्हें स्मेल व स्वाद नहीं आ रहा है. इन दोनों चीजों के आने में एक से चार माह तक का समय लग सकता है.
बार-बार पीसीआर जांच कराने से बचें
बहुत से मरीज बार-बार पीसीआर कराने के लिए बेताब रहते हैं और वे निगेटिव होने के बाद भी पॉजिटिव आते हैं. क्योंकि पीसीआर में मरा हुआ वायरस को भी रीड कर लिया जाता है, इस कारण से रिपोर्ट पॉजिटिव आती है. बार बार जांच कराने से बचना चाहिए.
दरभंगा की मरीज दवाई से ही हो गयीं ठीक
डॉ कमाली ने बताया कि इसी तरह एक दरभंगा के मरीज में भी यही सब लक्षण थे. वह भी कोरोना से उबरी थीं. दो-तीन सप्ताह बाद ये सब लक्षण दिखाई देने लगे. उसने भी मुझे फोन किया. उसे भी तत्काल अस्पताल बुलाया गया. उसमें अभी शुरुआती लक्षण ही थे. उसकी स्थिति दवा से ही सुधर गयी. इस मरीज को भी शूगर था.
डॉ कमाली के अनुसार अमूमन कैंसर या इस तरह के रोग से ग्रसित मरीजों में म्यूकर माइकोसिस का अटैक होता था. लेकिन कोरोना से उबरने वाले लोगों में भी यह देखा जा रहा है. रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने या खत्म होने पर यह फंगस अटैक करता है. इसलिए जिन्हें शुगर है, उन्हें संभल कर स्टेराॅयड दिया जाये और अनुभवी डॉक्टर की सलाह लें.
Posted by Ashish Jha