राजीव कुमार सिंह, बिदुपुर. वैशाली जिले के बिदुपुर प्रखंड के छोटे-से गांव चकमसूद की इलाके में अपनी खास पहचान है. चकमसूद को डॉक्टरों का गांव कहा जाता है.
यहां हर घर में होमियोपैथ डॉक्टर हैं. लगभग 80 घरवाले इस गांव में 67 महिला-पुरुष होमियोपैथ के डॉक्टर हैं.
यहां के होमियोपैथ डॉक्टर न सिर्फ बिदुपुर व हाजीपुर, बल्कि समस्तीपुर, सीतामढ़ी, बेगूसराय, मुजफ्फरपुर, सीवान, छपरा, गोपालगंज, बेतिया, मोतिहारी, कटिहार, भागलपुर, पटना समेत कई जिलों में सेवा दे रहे हैं.
कई डॉक्टरों के क्लिनिक पर काफी कम कीमत पर इलाज होता है. ग्रामीण इलाकों के साथ-साथ शहर के लोगों को भी इनके इलाज पर काफी भरोसा है.
इस गांव में तीन-चार एलोपैथ डॉक्टर भी हैं, जो पीएमसीएच और पटना एम्स में अपनी सेवा दे रहे हैं.
अंग्रेजी हुकूमत के समय भी चिकित्सा को लेकर इस गांव का नाम लोगों की जुबान पर था. उस वक्त डॉ अयोध्या सिंह अंग्रेजों के साथ-साथ आम लोगों का भी इलाज करते थे.
उनके निधन के बाद उनके छोटे भाई डॉ नारायण सिंह ने इस परंपरा को आगे बढ़ायी और वह आज तक होमियोपैथिक पद्धति से लोगों का इलाज कर रहे हैं.
वर्तमान में उनके परिवार में आधे दर्जन से अधिक होमियोपैथ चिकित्सक हैं, जो बिदुपुर के अलावा अलग-अलग शहरों में मरीजों का इलाज कर रहे हैं.
बिदुपुर बाजार में सेवा दे रहे होमियोपैथ डॉक्टर किशोर सिंह बताते हैं कि अंग्रेजों के शासनकाल में जब डॉ अयोध्या सिंह इलाज करते थे, तब मात्र तीन से पांच पैसे में ही एक सप्ताह की दवा मिल जाती थी, जो अन्य इलाज के मुकाबले काफी सस्ती थी.
वे गांव के मंदिर परिसर में सुबह-शाम लोगों का मुफ्त में इलाज करते थे. उनकी ही प्रेरणा से लोग जागरूक हुए और धीरे-धीरे गांव के दर्जनों लोग चिकित्सक बने.
चकमसूद गांव के होमियोपैथ चिकित्सक डॉ सुजीत प्रभाकर बताते हैं कि वर्तमान समय में मरीजों का रुझान होमियोपैथ की ओर बढ़ा है. जो मरीज एलोपैथ से वर्षों इलाज कराने के बाद ठीक नहीं हुए, वे होमियोपैथ के इलाज से ठीक हो रहे हैं.
पेट की बीमारी, जोड़ों का दर्द, पुराने असाध्य रोगों से लेकर शुरुआती दौर के कैंसर तक के कई मरीज होमियोपैथ के इलाज के दम पर जीवित हैं.
Posted by Ashish Jha