Bihar News: आय से अधिक संपत्ति मामलों में कार्रवाई तेज, लेकिन कोर्ट के स्तर से सजा दिलाने की रफ्तार धीमी
आय से अधिक संपत्ति मामलों पिछले 11 वर्ष के दौरान महज दो भ्रष्ट लोकसेवकों को ही कोर्ट से सजा दिलायी गयी है. 2010 से 2021 के बीच सिर्फ 2016 में ही दो लोकसेवकों को कोर्ट से सजा हुई है
राज्य में भ्रष्ट लोकसेवकों पर नकेल कसने के लिए निगरानी ब्यूरो ने व्यापक स्तर पर ट्रैप और डीए (आय से अधिक संपत्ति) मामलों के जरिये कार्रवाई हो रही है, परंतु इन्हे कोर्ट के स्तर से सजा दिलाने की रफ्तार बेहद धीमी है. शुरुआती स्तर पर कार्रवाई हो जाती है, लेकिन न्यायालय में ये सभी मामले जाकर अटक जाते है और यहां से अंजाम तक नही पहुंच पाते है. आय से अधिक संपत्ति मामलों पिछले 11 वर्ष के दौरान महज दो भ्रष्ट लोकसेवकों को ही कोर्ट से सजा दिलायी गयी है.
2010 से 2021 के बीच सिर्फ 2016 में ही दो लोकसेवकों को कोर्ट से सजा हुई है, जबकि इस दौरान डीए केस में करीब 90 लोकसेवकों पर कार्रवाई हो चुकी है. 11 वर्ष के दौरान 90 भ्रष्ट लोकसेवकों पर आय से अधिक संपत्ति मामले के अंतर्गत इनके ठिकानों पर छापेमारी कर चल और अचल संपत्ति शुरुआती स्तर पर जब्त हो चुकी है. इसके बावजूद कोर्ट में इन मामलों में वर्ष से सिर्फ तारीखे ही पड़ रही है, कोई अंतिम नतीजा नहीं निकल रहा है.
जिस कानून के अंतर्गत इन पर कार्रवाई की गयी, इससे जुड़े दावं-पेच को ही आधार बनाकर सालों तक कार्रवाई से बचे रहते है. वही, ट्रैप यानी रंगे हाथ घूस लेते हुए पकड़ जाने वाले मामलों को देखे, तो पायेगे कि इसमे आरोपितों को सजा दिलाने की रफ्तार डीए केस की तुलना में बेहतर तो जरुर है, लेकिन इनका अनुपात भी अच्छा नहीं है.
Also Read: बिहार नगर निकाय चुनाव में हर मतदाता को देने होंगे तीन वोट, वार्ड पार्षद के साथ अब चुनेंगे मेयर और मेयर
ट्रैप मामले में 61 कर्मियों को मिली सजा
पिछले 11 साल 2010 से 2021 तक टैप के करीब 450 मामले हुए. इनमे 61 कर्मियों को कोर्ट से अंतिम रुप से सजा हुई है. सबसे ज्यादा 2017 में 13, 2016 में 11 को सजा हुई है. 2020 में तो किसी को सजा नहीं हो पायी है. इस तरह इस मामले में सजा का अनुपात कार्रवाई की तुलना में बेहद कम है.
शेष जो भी कर्मी टैप केस में पकड़ जाने के बाद जेल जाते है, वे एक से तीन महीने में बेल पर छूट जाते है. इसके अलावा एओपीए (पद के दुरुपयोग) के मामले में 20 लोगों को कोर्ट से सजा हुई है. जिस रफ्तार में कार्रवाई के बाद चार्जशीट दायर होती है, उस रफ्तार में सजा नहीं हो रही.