पटना के IGIMS में अब मरीजों को इलाज के लिए पहले से अधिक सुविधा मिलने वाली है. जांच और दवाई के लिए अब मरीजों को भटकना नहीं पड़ेगा. अब उन्हें बेड पर ही दवाई की सुविधा उपलब्ध होगी. जांच की प्रक्रिया पूरी तरीके से डिजिटल तरीके से होगी. अस्पताल के कर्मियों द्वारा ही मरीजों के बेड तक दवाएं 15 से 20 मिनट में पहुंचाई जाएंगी. इससे मरीजों को परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा, उन्हें इलाज से जुड़ी भी सभी जानकारी आसानी से प्राप्त होगी.
IGIMS के मेडिकल सुपरिटेंडेंट और डिप्टी डायरेक्टर डॉ मनीष मंडल ने कहा कि अक्सर अस्पतालों में ऐसा देखा जाता है कि कोई मरीज अगर इलाज के लिए आता है तो उनके परिजन दवा के लिए, तो कोई जांच के लिए दौड़ता है. वहीं एक मरीज के पास रहता है और एक अन्य चीजों के लिए दौड़ता है. इसका मतलब एक मरीज के पास लगभग 4 लोगों की जरूरत होती है. इसको हमने गंभीरता से स्टडी किया कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है और इसका निदान भी निकाला. अगर कोई मरीज भर्ती होता है तो कंप्यूटराइज व्यवस्था हो जाने से यह सभी चीजें दुरुस्त हो जाएगी.
अगर कोई मरीज़ ब्लड जांच के लिए पैसा जमा किया है तो हमें यह कंप्यूटर के माध्यम से पता चल जाएगा की उसने किस समय पर जमा किया गया है. उसके बाद यह भी पता चल सकेगा कि उस मरीज के ब्लड सैंपल की जांच की गई या नहीं और मरीज को रिपोर्ट कितने बजे मिला. कुल मिलाकर 4 प्रोसेस होते हैं सबसे पहले ब्लड टेस्टिंग, दूसरा ब्लड प्रोसेसिंग, तीसरा ब्लड रिपोर्टिंग और चौथा अगर ब्लड प्रोसेस हो गया है तो रिपोर्ट मिला या नहीं. अगर इस दौरान मरीजों को किसी भी एक प्रक्रिया में दिक्कत होती है तो हमें तुरंत पता चल जाएगा और हम तुरंत इस पर कार्रवाई कर सकेंगे. इस मामले में हमने टाइम बेस्ड ट्रिटमैंट शुरू कर दिया है कि कैसे कम समय में मरीजों का जांच हो सके.
अगर कोई मरीज इमरजेंसी वार्ड में एडमिट है और उसे तुरंत किसी चीज की जरूरत पड़ती है, तो इसके लिए कॉल सिस्टम की व्यवस्था की जा रही है. मरीजों के बेड के पास ही कॉल सिस्टम की व्यवस्था होगी. जिससे मरीज को कोई परेशानी होने पर सीधे सिस्टर को कॉल करेंगे और सिस्टर तुरंत उस कॉल का जवाब देंगी. अगर अगले 15 से 20 मिनट में उस कॉल का जवाब सिस्टर के तरफ से नही मिलता है, तो वह कॉल सीधे कम्प्युटराइज्ड सिस्टम की मदद से सुपरिटेंडेट के ऑफिस में फॉरवर्ड हो जाएगा.
डॉ मनीष मंडल ने कहा की अक्सर यह बातें सामने आती हैं कि अगर सरकारी दवा है तो वह अच्छा नहीं है. इसके लिए हमने डॉक्टरों से एक लिस्ट मांगी है, कि कौन-कौन सी दवाएं अच्छी है. वैसे कोई भी मॉलिक्यूल को हमने 4 कंपनी से ले लिया है. जो अच्छी दवाएं है. इसके लिए हमने कंपनी से डायरेक्ट कॉन्ट्रैक्ट किया है. कंपनी से जो दवाई दुकानों में जाती है. वहां बीच में डिस्ट्रीब्यूटर, रिटेलर और अन्य के चलते दवाई का दाम बढ़ जाता है. यानी जो 100 रूपए की दवाएं हैं वह डिस्ट्रीब्यूटर, रिटेलर के हटने से, मरीजों को लगभग 30 से 40 रुपए में मिल जाएगी. इस तरीके से उनको 50 से 60 परसेंट तक का पैसा बचेगा.
यह हम लोग इसलिए कर रहे हैं ताकि गुणवत्ता भी मेंटेन रहे और मरीजों के पास चॉइस भी रहे. इससे मरीजों को दौड़ना नहीं पड़ेगा और उनके पैसे भी बचेंगे. यह सिस्टम अगले 2 से 3 महीने में शुरू हो जाएगी. सभी चीज कंप्यूटराइज् है. बस उसमें सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करना बाकी है जल्द ही मरीजों को यह लाभ मिल सकेगा.