उड़ता बिहार ! सस्ती नशा की जद में आ रहे युवा, नशे की सस्ती कीमत पर मिल रही मौत की खामोशी
बिहार में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने एक अच्छी सोच के साथ साल 2016 में शराबबंदी लागू की थी. लेकिन शराबबंदी के चलते शहरी व बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में रहनेवाले लोग खासकर युवा वर्ग गांजा, चरस, भांग, हेरोइन, ह्वाइटनर, पेन किलर, कफ़ सीरप आदि को शराब का विकल्प बना रहे हैं.
पटना: बॉलीवुड में कुछ साल पहले शाहिद कपूर की एक मशहूर फिल्म आई थी. उड़ता पंजाब…लेकिन वर्तमान हालात में जो बिहार का हाल है, उससे जल्द ही बिहार को ‘उड़ता बिहार’ कहा जाने लगेगा तो इसमें किसी तरह की हैरत की बात नहीं होगी. दरअसल, साल 2016 में एक अच्छी सोच के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पूर्ण शराबबंदी लागू की थी. शराब बंदी तो लागू हो गई. नशे के आदि लोग धीरे-धीरे शराब की जगह पर अन्य वैकल्पिक सस्ता नशा करने के आदि होते चले गए.
दर्द निवारक टैबलेट से नशा कर रहे नशेड़ी
2016 में जब बिहार सरकार ने शराबबंदी कानून लागू किया, तब लोगों को अपनी नशे की लत से निपटना मुश्किल हो गया. ऐसे में लोगों ने शराब का विकल्प ढूंढ़ना शुरू किया. चूंकि बिहार में तस्करी कर लाए गए शराब की कीमतें अधिक होती है. इसलिए नशेड़ियों ने नया प्रयोग करते हुए दर्द निवारक दवाएं (पेन किलर) लेना शुरू किया. पटना के एक युवा नशेड़ी ने नाम नहीं छापने के शर्त पर बताया कि उसने अपने दोस्तों के कहने पर सैस्मोप्रोक्सवॉन टैबलेट लेना शुरू कर दिया. शुरुआती दौर में वे 2-3 गोलियां खाते थे. धीरे-धीरे नसे का असर कम होता गया और गोलियों की डोज बढ़ती गई. ऐसा भी समय आया जब राम प्रवेश रोजाना 20-20 गोलियां खाने लगे हैं. नशेड़ी युवा ने बताया कि शराब पर पहले 1000-1500 रुपये तक खर्च होते थे. लेकिन दर्द निवारक गोली भी शराब जैसा ही सुरूर देती है. और यह महज 100 से 125 रुपये में 20 टैबलेट मिल जाते है. जिससे उनका काम चल जता है.
नौसादर और केमिकल से सड़ाते हैं शराब
बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद एक कारोबार जमकर पला-बढ़ा. वो है अवैध शराब का कारोबार. बता दें कि अमूमन देसी शराब के निर्माण के लिए महुआ के फूल का प्रयोग किया जाता है. इसमें शक्कर, शोडा, जौ, मकई, सड़े हुए अंगूर, आलू, चावल, खराब संतरे का भी इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन नशे को टाइट करने के लिए शराब कारोबारियों ने नए रास्ते की तलाश की है. वर्तमान में शराब कारोबारी जानवरों के दूध उतारने वाली इंजेक्शन ऑक्सीटोसिन का इस्तेमाल अवैध शराब को बनाने में कर रहे है. हालांकि इसका सरकारी आंकड़ा या फिर स्पष्टीकरण नहीं है.
इस तरह किया जाता है ऑक्सीटोसिन का इस्तेमाल
जानकारी के मुताबिक शराब बनाने में पहले कच्चा माल सड़ाने के लिए सोड़ा और नौसादर मिलाया जाता है. पूरी तरह से सड़ जाने के बाद इसमें स्प्रीट के साथ जानवरों का दूध उतारने वाली इंजेक्शन ऑक्सीटोसिन का इस्तेमाल किया जाता है. पानी के रंग को साफ करने के लिए कास्टिक सोडा या यूरिया मिलाया जाता है. एक साथ कई केमिकल मिलाने से इसके रिएक्शन की संभावना अधिक होती है.
गांजें की बढ़ी डिमांड
वहीं, पटना के ही भूतनाथ रोड में रहनेवाले 22 वर्षीय युवक ने बताया कि उसे बियर पीने का शौक था. वह प्रतिदिन एक बीयर पीता था. पहले चोरी-छिपे बियर बिका करती थी. लेकिन, कीमत बढ़ गई थी. 75 रुपये की बियर ब्लैक से 1000 रुपये में मिलने लगी. रोजाना इतना पैसा खर्च कर पाना वश में नहीं था, इसलिए उसने गांजा आजमाना शुरू किया. शुरुआती झिझक के बाद जल्द ही उसे गांजे के कश में मज़ा आने लगा. शुरुआत एक चिलम से हुई थी जो अब दिन भर में 5-6 तक पहुंच जाती है. अब वह इसी तरह के गंजेड़ियों की मंडली में दिन भर बेसुध पड़ा रहता है.
युवाओं को बचाना है
शराबबंदी के बाद लोगों ने विभिन्न ड्रग्स का प्रयोग शुरू कर दिया है. यहां बच्चे और नौजवान बहुत तेजी से मादक पदार्थों के सेवन के आदी हो रहे हैं. बिहार में मादक पदार्थों की लगातार बड़े पैमाने पर हो रही बरामदगी इस बात का सबूत है कि शराबबंदी के बाद गांजा, अफीम, हेरोइन और चरस की मांग और भी तेज हो गई है. जरूरत है जल्द से जल्द और कड़े कदम उठाने की ताकि युवाओं को इसकी गिरफ्त में जाने से बचाया जा सके.