बिहार में लागू होगी पुरानी मंडी व्यवस्था, कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने प्रस्ताव बनाने को दी मंजूरी
कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने विभाग को एपीएमसी एक्ट पुनर्जीवित करने के लिए पीत पत्र लिखा. बिहार में पुरानी मंडी व्यवस्था लागू होगी. इसकी प्रक्रिया शुरू हो गई है. कृषि मंत्री ने कैबिनेट के लिए प्रस्ताव बनाने को मंजूरी दी.
पटना. ( अनुज शर्मा) बिहार में मंडी व्यवस्था फिर से शुरू होने जा रही है. कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने डेढ़ दशक पहले खत्म कर दिये गये बिहार एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी (एपीएमसी) एक्ट यानी कृषि बाजार समिति एक्ट को पुनर्जीवित करने के लिए पीत पत्र लिखा है. कृषि मंत्री से हरी झंडी मिलने के बाद कृषि सचिव डाॅ एन सरवण कुमार के नेतृत्व में अधिकारियों की टीम प्रस्ताव तैयार करा रही है. मंत्री की मंशा है कि जल्द-से-जल्द कैबिनेट की मंजूरी ले ली जाये. कुछ संशोधनों के साथ इसे लागू कराने के लिए कृषि विशेषज्ञाें से रायशुमारी की जा रही है.
गेहूं-धान खरीद में गैर सरकारी एजेंसियों को भी बुलावा
धान खरीद में भ्रष्टाचार रोकने के लिए एकल एजेंसी के एकाधिकार को भी खत्म किया जायेगा. किसानों को उपज की अच्छी कीमत मिले इसके लिये गेहूं- धान खरीद में गैर सरकारी एजेंसियों को भी बुलाया जायेगा. अभी तक बिहार में सहकारिता विभाग पैक्स और व्यापार मंडल के जरिये एमएसपी पर खरीद कर रहे हैं. एपीएमसी एक्ट के तहत स्थानीय नगर निकाय किसानों और खरीदारों, दोनों से उपज की कीमत पर एक फीसदी कर वसूलते थे. अब इस कर का क्या स्वरूप होगा. निजी कंपनियों और किसानों के बीच संबंध किस तरह का होगा. किन नियमाें को मूल रूप में स्वीकार किया जाये. कौन नियम खत्म होंगे. शांता कुमार कमेटी की सिफारिश आदि पर मंथन कि लिये कृषि मंत्री ने विशेषज्ञ को निर्देश दिये हैं.
बिहार में एपीएमसी एक्ट को फिर से लागू करने की थी मांग
केंद्र सरकार ने पिछले साल कृषि कानून को वापस ले लिया था. इसके बाद तत्कालीन मुख्य विपक्षी दल राजद के नेतृत्व में कांग्रेस-वामदल ने भी बिहार में एपीएमसी एक्ट को फिर से लागू करने की मांग की थी. महागठबंधन की सरकार बनने के बाद कृषि मंत्री राजद के घोषणा पत्र के अनुरूप कृषि सुधार की दिशा में आगे बढ़ने की बात कर रहे हैं.
एपीएमसी को और मजबूत किया जायेगा
कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने प्रभात खबर को बताया कि एपीएमसी को खत्म करने के बजाय इसे और मजबूत किया जाना चाहिए था. बिहार में 90% से ज्यादा किसान छोटे और सीमांत हैं. मंडी एक्ट खत्म होने से वह अपनी लागत नहीं निकाल पाते हैं. बिहार पहला राज्य था, जिसने मंडी सिस्टम खत्म किया. वर्ष 2006 में यह कदम उठाने वाला यह पहला राज्य था. इससे निजी कंपनियों को किसानों से उनकी उपज सीधे खरीदने का अधिकार मिल गया. तब से अब तक कृषि उत्पादन तो बहुत बढ़ गया है, लेकिन किसानों की आर्थिक स्थिति उसके मुकाबले नहीं सुधरी है.
बिहार में फसल उत्पादन (लाख टन)
फसल 2005 – 06 2020- 21 प्रतिशत वृद्धि
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चावल 37.08 72.92 99
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गेहूं 28.23 66.35 135
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मक्का 15.20 35.21 131
शांताराम कमेटी ने बिहार के लिये की थी सिफारिश
एनडीए सरकार ( 2014 ) में पूर्व केंद्रीय मंत्री शांता कुमार की अगुआई में कमेटी बनी थी. इसने एफसीआइ के पुनर्गठन के बारे में सुझाव देते हुए कई सिफारिश की थीं. शांता कमेटी ने एफसीआइ द्वारा की जाने वाली धान-गेहूं की सरकारी खरीद के आधार पर कहा था कि एमएसपी के लाभ सिर्फ 5.8% किसानों तक सीमित है. एफसीआइ को बिहार जैसे राज्यों में किसानों की मदद करनी चाहिए. यहां भूजोत का आकार बहुत छोटा है. किसानों को अपनी फसलें एमएसपी से बहुत नीचे दाम पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
‘जल्दी ही प्रस्ताव कैबिनेट में भेजा जायेगा’
कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने कहा कि विभाग को पीत पत्र के जरिये आदेश कर दिया कि पुराने मंडी कानून को पुनर्स्थापित करने के प्रस्ताव को स्थापित किया जाये. इस आदेश के बाद जल्दी ही प्रस्ताव कैबिनेट में भेजा जायेगा. इससे किसानों को उचित दाम पर फसल बेचने का मौका मिलेगा. राजद के घोषणा पत्र में भी पुराने मंडी व्यवस्था को बहाल कराना है.