अपने स्वाद एवं विशेष तरह की महक के लिए प्रसिद्ध मरचा धान (Marcha Rice) अब कई और किसानों का चहेता बन गया है. मैनाटांड़ प्रखंड में इस धान की खेती का रकबा लगातार बढ़ने लगा है. खेती का रकबा बढ़ने का मुख्य कारण कम लागत में अधिक आमदनी है.पश्चिम चंपारण के मरचा धान को जीआइ टैग मिलने के बाद प्रखंड में इसकी खेती का रकबा बढ़ गया है. अधिसूचना जल्द ही आएगी.आधिकारिक जानकारी मिलने के बाद से ही इसकी खेती करने वाले किसानों में उत्साह है. पिछले तीन वर्षों में इस धान की खेती करीब डेढ़ गुना बढ़ गयी है.
तीन वर्ष पहले किसानों ने 75 एकड़ रकबा में मरचा धान की खेती की थी. अब यह बढ़कर 125 एकड़ हो गयी है. छह की जगह 20 किसानों ने इसकी खेती की. मैनाटांड़ में इस धान का उत्पादन काफी तादाद में हो गया है. पारंपरिक तौर पर मरचा धान की खेती से जुड़े सिंगासनी के प्रगतिशील किसान व मरचा धान उत्पादक समूह के अध्यक्ष लक्ष्मी प्रसाद कुशवाहा की माने तो मरचा धान की खेती करने वाले किसानों की संख्या आने वाले समय में और अधिक बढ़ने वाली है. इसका मुख्य कारण खेती की लागत में कमी और ज्यादा आमदनी है.
इस धान की खेती की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि मरचा धान की खेती जैविक पद्धति से ही होने लगी है. मरचा धान की खेती से जुड़े मैनुद्दीन अंसारी का कहना है कि वह पिछले वर्ष इस प्रजाति के धान की खेती जैविक पद्धति से ही कर रहे हैं, लेकिन उपज में कोई अंतर नहीं आ रहा है. उनके अनुसार इस धान की खेत में रासायनिक खाद का इस्तेमाल किया जाता है, तो इसमें अप्रत्याशित बढ़वार होगा, जो उत्पादन के हिसाब से बेहतर नहीं है. किसान यदि चाहे, तो धान की रोपाई के समय 10 फीसदी डीएपी का इस्तेमाल कर सकते हैं.
पिछले वर्ष मरचा धान की खेती से जुड़े मैनाटांड़ सिंगासनी के किसान राघव प्रसाद कुश्वाहा की माने, तो मरचा धान की खेती में लागत कम आती है और उसकी तुलना में आमदनी ज्यादा. मरचा धान अन्य धान से तीन गुना अधिक रुपये में बिकता है. प्रखंड के पिराड़ी, सकरौल, बहुअरवा, झझरी, पिपरपाती, बरवा, दिउलिया एवं सिसवा गांव के ईश्वर चंद्र प्रसाद, मैनुद्दीन अंसारी, चंद्रिका पटेल, मुनिलाल, वीरेन्द्र यादव, जसौली के हरक थारू बताते हैं कि मरचा धान की खेती इस क्षेत्र के किसानों के हित में है.