Ahilya Sthan: भगवान राम ने अहल्या को यहां किया था शापमुक्त…
Ahilya Sthan: रामायण काल से प्रसिद्ध स्थान बिहार राज्य के दरभंगा जिला के अंतर्गत अहियारी गांव में स्थित है। बाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण एवं ब्रह्म पुराण के अनुसार ऋषि विश्वामित्र की आज्ञा से इसी स्थान पर राम ने अहल्या का उद्धार किया था।
Ahilya Sthan: रामायण काल से प्रसिद्ध स्थान बिहार राज्य के दरभंगा जिला के अंतर्गत अहियारी गांव में स्थित है। बाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण एवं ब्रह्म पुराण के अनुसार ऋषि विश्वामित्र की आज्ञा से इसी स्थान पर राम ने अहल्या का उद्धार किया था। ब्रह्म पुराण में भी इस स्थान का विस्तार से वर्णन किया गया है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार राम और लक्ष्मण ने ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिलापुरी में प्रवेश करने पर एक निर्जन आश्रम को देखा था। राम ने विश्वामित्र से पूछा कि यह स्थान देखने में तो आश्रम जैसा दिखाई देता है लेकिन क्या कारण है कि यहां कोई ऋषि या मुनि दिखाई नहीं देते? ऋषि विश्वामित्र ने बताया कि यह स्थान कभी महर्षि गौतम का आश्रम हुआ करता था। वे अपनी पत्नी के साथ यहां रहते थो और कर तपस्या किया करते थे। एक बार कि बात है इंद्र अहल्या पर आसक्त हो उठे, और गौतम ऋषि की अनुपस्थिति में उनके वेश में आश्रम पहुंचे थे।
अहल्या ने इंद्र को पहचान लिया और तुरंत वहां से जाने को कहा। तभी आश्रम में वापस आते समय गौतम ऋषि की दृष्टि इंद्र पर पड़ी और उन्हें अपने वेश में देखकर वे क्रोध से भर उठे और उन्होंने इंद्र को श्राप दे दिया। साथ ही बिना कुछ जाने अपनी पत्नी को भी शाप दे दिया कि वह हजारों वर्षों तक केवल हवा पीकर कष्ट उठाती हुई यहां पत्थर रहेंगी। अहल्या ने सभी सच्चाई को बताया फिर गौतम ऋषि का क्रोध शांत हुआ और श्राप उद्धार का उपाय बताया कि जब त्रेतायुग में राम इस वन में प्रवेश करेंगे तभी उनकी कृपा से आपका उद्धार होगा।
महाराजा छत्र सिंह ने मंदिर का कराया था निर्माण
त्रेतायुग में भगवान राम विश्वामित्र के साथ जनकपुर जा रहे थे तभी वहां पत्थर के रूप में अहल्या को देखा, जिसका तेज संपूर्ण वातावरण में व्याप्त हो रहा था। राम की दृष्टि पाकर अहल्या एक बार फिर अपने स्वाभाविक रूप में दिखाई देने लगीं। उसके बाद राम और लक्ष्मण ने श्रद्धापूर्वक उनके चरण स्पर्श किए।
दरभंगा के महाराजा छत्र सिंह ने सन् 1635 में यहां एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर में श्रीराम, सीता और लक्ष्मण के साथ हनुमान की भी मूर्तियां हैं। वहीं इस मंदिर में महाराजा ने देवी अहल्या और गौतम ऋषि की मूर्तियां भी बनवाए हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार संत रामानुज ने यहां एक स्तंभ और पिंड का निर्माण करवाया था। मंदिर के पास ही खिरोई नदी के तट पर गौतम ऋषि का आश्रम भी है।
पुरूष की जगह महिला पंडित कराती हैं पूजा
यहां दर्शन के लिए भारत के विभिन्न हिस्सों के साथ पड़ोसी देश नेपाल से भी प्रतिदिन सैकड़ो की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। रामनवमी और विवाह पंचमी को बहुत बड़ा मेला का आयोजन किया जाता है। गौरतलब है कि यहां पुरुष पंडित की जगह महिला पंडित ही भगवान की पूजा कराती है। जो पूरे देश में सिर्फ यहीं देखने को मिलता है। कथाओं के अनुसार यह परंपरा त्रेतायुग से चलती आ रही है।
कैसे पहुंचें
सड़क मार्ग – दरभंगा से 20 किलोमीटर और सीतामढ़ी से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
रेल मार्ग – नरकटियागंज-समस्तीपुर रेलमार्ग में स्थित कमतौल स्टेशन से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
हवाई मार्ग- जहाज से आने वाले लोगों के लिए दरभंगा एअरपोर्ट नजदीक है। इस तीर्थ स्थल पर आने के लिए 24 घंटे बस एवं टैक्सी की सेवा उपलब्ध है।