सेनारी नरसंहार के सभी 13 दोषी बरी, निचली अदालत के आदेश को पटना हाइकोर्ट ने पलटा

करीब 22 साल पहले तत्कालीन जहानाबाद जिले के सेनारी नरसंहार के सभी दोषियों को पटना हाइकोर्ट ने बरी कर दिया है. शुक्रवार को हाइकोर्ट के जस्टिस अश्विनी कुमार सिंह और जस्टिस अरविंद श्रीवास्तव के खंडपीठ ने अपने 125 पन्नों के आदेश में सेनारी में 34 लोगों की हत्या के 13 आरोपितों को साक्ष्य के अभाव में बरी करते हुए रिहा करने का आदेश दिया.

By Prabhat Khabar News Desk | May 22, 2021 6:46 AM

पटना. करीब 22 साल पहले तत्कालीन जहानाबाद जिले के सेनारी नरसंहार के सभी दोषियों को पटना हाइकोर्ट ने बरी कर दिया है. शुक्रवार को हाइकोर्ट के जस्टिस अश्विनी कुमार सिंह और जस्टिस अरविंद श्रीवास्तव के खंडपीठ ने अपने 125 पन्नों के आदेश में सेनारी में 34 लोगों की हत्या के 13 आरोपितों को साक्ष्य के अभाव में बरी करते हुए रिहा करने का आदेश दिया.

जहानाबाद की जिला अदालत ने सभी 13 आरोपितों को दोषी करार दिया था. इनमें 10 को फांसी और तीन को उम्रकैद की सजा सुनायी गयी थी. हाइकोर्ट ने दोषियों द्वारा दायर आपराधिक अपील पर शुक्रवार को अपना फैसला सुनाया. खंडपीठ ने लंबी सुनवाई के बाद इस अपील पर अपना फैसला पहले ही सुरक्षित कर लिया था.करीब डेढ़ साल पहले लक्ष्मणपुर बाथे और शंकरबिगहा नरसंहार की पृष्ठभूमि में सेनारी नरसंहार को देखा गया.

18 मार्च, 1999 की रात प्रतिबंधित नक्सली संगठन एमसीसी के उग्रवादियों ने सेनारी गांव को चारों तरफ से घेर लिया. इसके बाद एक जाति विशेष के 34 लोगों को उनके घरों से जबरन निकालकर ठाकुरवाड़ी के पास ले जाकर गला रेत कर हत्या कर दी. करीब 17 साल बाद इस मामले में जहानाबाद की जिला अदालत ने 15 नवंबर, 2016 को 10 अभियुक्तों को मौत की सजा सुनायी, जबकि तीन अभियुक्तों को उम्रकैद की सजा दी.

फांसी की सजा पाये अभियुक्तों की फांसी की सजा की पुष्टि हाइकोर्ट से कराने के लिए राज्य सरकार ने पटना हाइकोर्ट में डेथ रेफरेंस दायर किया गया, जबकि दोषियों में द्वारिका पासवान, बचेश कुमार सिंह, मुंगेश्वर यादव और अन्य की ओर से आपराधिक अपील दायर कर निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी गयी. अपने फैसले में खंडपीठ ने सभी 13 दोषियों को बरी कर दिया. साथ ही उन्हें रिहा करने का आदेश दिया.

500 लोगों ने गांव को घेर लिया और घरों से खींच कर काट डाला

सेनारी नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार 18 मार्च, 1999 की रात 500 से अधिक लोगों ने पूरे गांव को घेर लिया था. इनकी पहचान प्रतिबंधित माओवादी एमसीसी के दस्ते के रूप में की गयी. हमलावरों ने घरों से पुरुषों को खींच कर बाहर निकाला और सभी को एक जगह इकट्ठा किया. फिर तीन ग्रुप में सबको बांट कर बारी-बारी से सभी का गला काट दिया गया. हमलावर इतने नृशंस थे कि गला रेतने के बाद उन सबों का पेट भी चीर दिया गया. इस घटना में 34 लोगों की मौत हुई थी.

घटना के पीछे थी लक्ष्मणपुर बाथे और शंकरबिगहा नरसंहार की पूष्ठभूमि

सेनारी नरसंहार के पीछे करीब डेढ़ साल पहले एक दिसंबर, 1997 को जहानाबाद के ही लक्ष्मणपुर-बाथे में 58 और 1999 में शंकरबिगहा गांव में 23 लोगों को मार दिये जाने की घटना थी. 10 फरवरी, 1998 को नारायणपुर गांव में 12 लोगों की हत्या कर दी गयी थी. इसका आरोप रणवीर सेना पर लगा था. इस घटना के बाद केंद्र ने बिहार में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था. मगर 24 दिनों में ही राष्ट्रपति शासन वापस लेना पड़ा था और राबड़ी सरकार फिर से वापस आ गयी.

विभत्स शवों को देखने के बाद हाइकोर्ट के रजिस्ट्रार की हो गयी थी मौत

इस घटना के अगले दिन तब पटना हाइकोर्ट के रजिस्ट्रार रहे पद्मनारायण सिंह अपने गांव सेनारी पहुंचे. अपने परिवार के आठ लोगों की पेट फाड़ी हुई लाशें देखकर उनको दिल का दौरा पड़ा और उनकी मौत हो गयी.

राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में करेगी अपील

पटना हाइकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी (अपील) दायर करेगी. महाधिवक्ता ललित किशोर ने कहा कि हाइकोर्ट के आदेश में कई खामियां हैं, इसलिए सरकार इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील जल्द दायर करेगी.

Posted by Ashish Jha

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