Diwali 2020 संजय तिवारी, बरौली (गोपालगंज) : फैशन और इलेक्ट्रॉनिक्स युग में एक तरफ जहां रंग-बिरंगे लट्टू व झालरों का दौर चल रहा है, वहीं गोपालगंज (Gopalganj) जिले के बखरौर गांव में गाय के गोबर, मेथी, ग्वार-गम और इमली के बीज के पाउडर से बन रहे सुंदर दीये पूरे विश्व को लुभा रहे हैं. भारतीय सभ्यता और संस्कृति की झलक लिये बखरौर के दीयों की मांग पूरे विश्व में है.
इन दीयों की इतनी मांग है कि निर्माणकर्ता को मांग की पूर्ति करनी भारी पड़ने लगी है. विश्व की प्रमुख ऑनलाइन व्यापार करने वाली कंपनी अमेजन(Amazon)इन दीयों की खरीदारी कर रही है. यह कंपनी भारी मांग के चलते दीयों को देश-विदेश में सप्लाइ कर रही है.
दिनेश पांडेय बताते हैं कि गोपालन के कारण उनके यहां सभी तरह के रॉ-मेटेरियल उपलब्ध थे. कुछ टेक्निकल जानकारी के बाद उन्होंने दीयों का निर्माण शुरू कराया. पहले एक-दो कारीगर थे, लेकिन अब स्थिति यह है कि उनके यहां 10 मजदूर लगातार दीया निर्माण और उसकी पैकिंग में लगे हैं, फिर भी मांग पूरी करने में परेशानी हो रही है.
उन्होंने बताया कि गोबर के दीये का निर्माण शुरू करने से जहां अच्छी आमदनी होगी, वहीं लोगों को रोजगार मिलेगा. गोबर के दीये बनाने से गोपालन को भी बढ़ावा मिलेगा, जिससे अन्य रोजगार भी पैदा किये जा सकते हैं.
एक दीया बनाने में 1.40 रुपये की लागत आ रही है. अमेजन इसे 4.45 रुपये में खरीदता है. इससे अच्छी आमदनी हो जाती है. वहीं, पर्यावरणविद डॉ कैलाश पांडेय ने बताया कि गोबर के दीये से पर्यावरण के दूषित होने का खतरा नहीं है. इसके धुएं से कीटों का प्रकोप भी खत्म होगा. मिट्टी की कटाई व उसकी बर्बादी पर भी रोक लग सकेगी.
दीयों के निर्माता दिनेश कुमार पांडेय ‘दिवाकर’ बताते हैं कि दीया निर्माण का आइडिया उनके दिमाग में प्रदूषण के बढ़ते प्रभाव को लेकर आया. आम दीये प्रदूषण फैलाते हैं, लेकिन गाय के गोबर, मेथी, ग्वार-गम, इमली के बीज और अन्य देसी सामान से बने ये दीये पूरी तरह प्रदूषणमुक्त हैं.
ये दीये काफी हल्के और मजबूत हैं. इनकी खासियत है कि जब तक दीये में तेल रहेगा, दीये में आग नहीं पकड़ेगी. इसके लिए दीयों के निर्माण मेटेरियल में ग्वार-गम की मात्रा बढ़ानी पड़ती है. गोबर के दीये की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके धुएं से मच्छर व अन्य कीट भी पास नहीं फटकेंगे. मिट्टी के दीये की अपेक्षा इसमें तेल की बचत भी होगी.
Posted by Ashish Jha