आस्थाः प्रेम व भाईचारे का प्रतीक है आरएस का छठ घाट
आठ बीघा में फैले इस तालाब के मालिक हैं मो मारूफ दी है मंदिर निर्माण के लिए एक डिसमिल जमीन दान में अररिया : धर्म संप्रदाय के नाम पर बांटने की कोशिश करने वालों के लिए अररिया आरएस वार्ड संख्या दो में स्थित पोखर सांप्रदायिक सद्भाव की एक मिशाल है. यहां विगत 71 वर्षों से […]
आठ बीघा में फैले इस तालाब के मालिक हैं मो मारूफ
दी है मंदिर निर्माण के लिए एक डिसमिल जमीन दान में
अररिया : धर्म संप्रदाय के नाम पर बांटने की कोशिश करने वालों के लिए अररिया आरएस वार्ड संख्या दो में स्थित पोखर सांप्रदायिक सद्भाव की एक मिशाल है. यहां विगत 71 वर्षों से हजारों की संख्या में छठ व्रती भगवान भास्कर को अर्घ्य देते हैं. यह पोखर इसलिए विशेष है, क्योंकि रिश्ते मजहब के बंदिशों पर नहीं बल्कि भावनात्मक रिश्तों पर चलते हैं. अररिया आरएस के वार्ड संख्या एक निवासी मो मारूफ के आठ बीघा क्षेत्रफल में फैले इस पोखर में हजारों व्रती भगवान भाष्कर को अर्घ्य देती हैं. क्षेत्र में यह पोखर व पोखर मालिक मो मारूफ सौहार्द की मिशाल बने हुए हैं.
अररिया आरएस में नहीं है इससे बड़ा छठ घाट: अररिया नप क्षेत्र में परमान नदी छठ घाट, एबीसी नहर छठ घाट के अलावा अररिया आरएस स्थित यह तालाब छठ व्रतियों को सामूहिक घाट उपलब्ध कराता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि यह तालाब नहीं होता तो छठ व्रतियों को लंबी दूरी तय करनी पड़ती. लेकिन एक मुसलिम ने जिस प्रकार से आपसी भाई चारे की मिशाल कायम की है वह धर्म के ठेकेदारों के लिए बड़ा सबक है.
मंदिर निर्माण के लिए एक डिसमिल जमीन दी दान : अररिया नप के पूर्व उप मुख्य पार्षद गौतम साह के अनुसार मो मारुफ ने उदार भाव का परिचय देते हुए नाग देवता के मंदिर निर्माण के लिए पोखर के महाड़ पर ही एक डिसमिल जमीन भी दान में दी है. इस कारण उस पोखर से सिर्फ छठ में ही नहीं बल्कि पूरे साल भर श्रद्धालुओं का लगाव लगा रहता है. बिल्कुल साधारण से दिखने वाले मो मारुफ को इस बात से मतलब नहीं कि वे क्या कर रहे हैं. उन्हें तो बस इस बात की तसल्ली है कि वे और उनका पुश्तैनी पोखर हजारों लोगों के श्रद्धा व आस्था का केंद्र बना हुआ है. कहीं कोई बात नहीं हो इसके लिए नप प्रशासन, पुलिस के अलावा वे खुद भी सक्रिय रहते हैं. नहाय खाय के दिन से ही वे सक्रिय रूप से उपस्थित रहकर साफ-सफाई से लेकर घाटों के सुरक्षा में दिन रात लगे रहते हैं.
प्रेम व सद्भावना पैदा करना ही है मजहब का उद्देश्य
मजहब हमें धर्म के नाम पर अलग होना नहीं सिखाता. किसी भी मजहब का काम ही है एक दूसरे के बीच प्रेम बांटना. पोखर का इस्तेमाल पुनीत कार्य के लिए हो रहा है, तो फिर हर्ज क्यों हो. तीन से चार दिन तक यहां पर लोगों की भीड़ देखकर दिल को सुकून मिलता है.