ऑपरेशन ग्रीन व हेल्थ इंश्योरेंस अच्छा कदम
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श्रमिक संगठनों से जुड़े लोगों ने कहा, आमदनी बढ़ाने पर नहीं, किसानों को कर्जदार बनाने पर जोर
बजट से मिलता है समय से पहले आम चुनाव का संकेत
निजीकरण की दिशा में एक और कदम है ये बजट
अररिया : गुरुवार को प्रस्तुत केंद्रीय बजट पर शहर वासियों ने मिश्रित प्रतिक्रिया दी है. पर इतना जरूर महसूस किया जा सकता है कि प्रस्तुत बजट को लेकर लोगों में बहुत उत्साह नहीं है. बुद्धिजीवियों का एक वर्ग इस बजट को मायूस करने वाला बताया है. वहीं श्रमिकों के हक-हकूक की लड़ाई लड़ने वाले संगठनों का कहना है कि बजट में किसानों की आमदनी बढ़ाने के बजाये उन्हें कर्जदार बनाने पर जोर दिया गया है. व्यापार जगत भी अपने लिए कोई छूट बजट में नहीं देख पा रहा है.
बजट पर अपनी राय देते हुए सामाजिक कार्यकर्ता शैलेंद्र शरण कहते हैं कि आम तौर पर बजट में मध्य वर्ग को विशेष ध्यान रखा जाता था, पर इस बार ऐसा नहीं हुआ है. किसानों की बात तो की गयी है, लेकिन केवल लुभावने वायदे ही हैं. ऐसे वायदे जिनका कभी कोई लाभ किसानों को नहीं मिलता है. बजट से यह संकेत मिलता है कि आम चुनाव वर्ष 2019 के बजाये 2018 में हो सकते हैं.
आर्थिक मामलों के जानकार व अल शम्स मिल्लिया डिग्री कॉलेज के प्राचार्य प्रो रकीब अहमद मानते हैं कि बजट ने मायूस किया है. आयकर स्लैब में बदलाव नहीं होना निराश करता है. किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की घोषणा का कोई मायने मतलब नहीं है. किसानों को कभी इसका लाभ ही नहीं मिलता है. प्रो अहमद कहते हैं कि बिहार को विशेष पैकेज की उम्मीद थी. पर मायूसी हुई.
हां उन्होंने इतना जरूर माना कि ऑपरेशन ग्रीन, बांस उद्योग पर ध्यान व हेल्थ पॉलिसी के तहत राशि का प्रावधान अच्छा कदम है. टीबी रोगियों के प्रति माह 500 रुपये का प्रावधान भी स्वागत योग्य है.
दूसरी तरफ जन जागरण शक्ति संगठन व मनरेगा संघर्ष मोर्चा की सक्रिय सदस्या कामायनी स्वामी ने कहा कि चुनाव को देखते हुए उम्मीद की जा रही थी कि अच्छा बजट आयेगा, पर नाउम्मीदी हुई. देखा जाये तो सही अर्थों में मनरेगा का बजट घटा है. संस्था की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि जरूरत महंगाई घटाने के साथ-साथ किसानों की आमदनी बढ़ाने की थी.
पर किसानों को अधिक कर्जदार बनाने की घोषणा की गयी है. बजट में किसान परिवार की आमदनी कम से कम 25 हजार सुनिश्चित करने का प्रावधान होना चाहिए था. किसानों की आबादी 65 प्रतिशत है. बजट में दो प्रतिशत भी आवंटित नहीं किया गया है. सार्वजनिक क्षेत्रों की कुछ कंपनियों को बेचने व स्वास्थ्य क्षेत्र में बीमा को बढ़ावा देने पर चिंता जताते हुए कहा गया है कि ये निजीकरण को मजबूत करने की दिशा में एक और कदम हैं. बड़े निजी अस्पतालों को लाभ पहुंचाने के लिए बीमा का प्रावधान किया गया है. स्वास्थ्य सेवा महंगी होंगी.
बजट को लेकर व्यापार जगत में भी कोई उत्साह नहीं है. जाने माने व्यवसायी उजैर अहमद व मुख्तार आलम ने कहा कि बजट में कुछ नया नहीं है. तेल में इंपोर्ट ड्यूटी फिर से बढ़ा दी गयी. कुछ खाद्य तेल महंगे हो सकते हैं. पेट्रोल व डीजल की एक्साइज ड्यूटी दो प्रतिशत घटायी गयी है. यह ठीक है, पर देखना होगा कि ये चीजें सस्ती होती हैं या नहीं.
उजैर अहमद कहते हैं कि व्यापार जगत को बजट से कोई राहत नहीं मिली है. पर्सनल टैक्स में चार प्रतिशत की वृद्धि से दिक्कत ही बढ़ेगी. वहीं शेयर मार्केट के जानकार साजिद एकबाल ने कहा कि लांग टर्म कैपिटल गेन में एक साल से ऊपर के निवेश पर पहले टैक्स छूट था. पर अब 10 प्रतिशत टैक्स लगा दिया गया है. वहीं वाम नेता डा कैप्टन एसआर झा ने कहा कि बजट में किसानों के हित पर ध्यान नहीं दिया गया है. बजट मायूस करता है.