अररिया (प्रतिनिधि) : भारत में करोड़ों लोग दिव्यांगता से जूझ रहे हैं. इतनी बड़ी संख्या होने के बावजूद इनकी परेशानियों को समझने और उन्हें जरूरी सहयोग देने में सरकार और समाज दोनों नाकाम दिखाई देते हैं. बताया जाता है कि अधिकांश सार्वजनिक स्थलों पर सुविधाओं के लिहाज से दिव्यांगों का जीवन किसी चुनौती से कम नहीं है. किसी परिवार में एक या दो लोग दिव्यांग हों, तो किसी तरह मेहनत मजदूरी कर उनका इलाज या भरण पोषण कर सकते हैं. पर यदि किसी एक ही परिवार में पांच लोग दिव्यांग हों और उनके पिता मजदूरी कर घर चलाते हों तो ऐसी स्थिति उस परिवार की वेदना तो समझी जा सकती है.
ऐसा ही एक परिवार अररिया जिले के फरबिसगंज प्रखंड अंतर्गत रामपुर गांव में देखने को मिला. जहां एक ही परिवार के पांच बच्चे मानसिक तौर से दिव्यांग पाये गये हैं. यह मामला सोमवार को सदर अस्पताल में तब आया जब सभी बच्चों को लेकर रामपुर निवासी मो यासिन अपनी पत्नी के साथ अपने सभी पांच बच्चों को लेकर दिव्यांगता प्रमाणीकरण शिविर में आये थे. उसकी मां बीवी रवीना ने बताया उन्हें कुल आठ बच्चे हैं. इसमें पांच बच्चे मानसिक तौर पर पूरी तरह दिव्यांग हैं. इस कारण उसे जहां-जहां जिले में दिव्यांग शिविर लगता है उसे इलाज के लिए जरूर ले जाते हैं. आठ में पांच बच्चे दिव्यांग रहने से घर में काफी परेशानी होती है.
आठ में से पांच बच्चे हैं दिव्यांग
दिव्यांग बच्चों के माता पिता मो यासीन व बीवी रबीना ने बताया कि उनके आठ बच्चों में पांच बच्चे मानसिक तौर पर दिव्यांग हैं. उनके बच्चों में मो दिलशाद, मो बेलाल, मो अतीबा, बीवी आईसा, बीवी मरीयम पांचों बच्चे मानसिक तौर पर दिव्यांग है. और सभी का सिर काफी छोटा है, जबकि सबसे बड़ा पुत्र दिलशाद 20 वर्ष का है. सभी बच्चे छोटे-छोटे बच्चों जैसा हरकत करते हैं. ऐसी स्थिति में पूरा परिवार उन सबके पीछे लगा रहता है. हालांकि उनके तीन बच्चे बीवी संजीदा, बीवी फातमा, बीवी मरजीना अन्य बच्चों की अपेक्षा कुछ ठीक है.
दिव्यांग बच्चों के पिता मजदूरी कर चलाते हैं परिवार
दिव्यांग बच्चों के पिता मो यासिन ने बताया कि वे मजदूरी कर सभी बच्चों का भरण पोषण करते हैं. इसके कारण सभी बच्चों का बड़े अस्पतालों में इलाज कराने में असमर्थ हैं. मेहनत मजदूरी कर परिवार का पेट चलाना ही बड़ी मुस्किल काम है. ऐसी स्थिति में सभी मानसिक तौर पर दिव्यांग बच्चों को बाहर इलाज कराने नहीं जा सकते. इतना जरूर है जिले में कहीं पर भी दिव्यांग शिविर लगता है, तो सभी पीड़ित बच्चों को इलाज के लिए जरूर ले जाते हैं. ऐसी स्थिति में उस दिन मजदूरी तक छोड़ना पड़ता है. उन्होंने यह भी बताया कि हमारे परिवार में पूर्व से कोई भी लोग दिव्यांग नहीं है.
कहते हैं सीएस
इस मामले में सीएस डॉ नवल किशोर ओझा ने बताया कि अररिया जिले में फारबिसगंज के अलावा और कई गांव में इस तरह का मामला सामने आया है कि एक ही परिवार के सभी बच्चे किसी न किसी रोग के कारण दिव्यांग हैं. इसके लिए वैसे दिव्यांग लोगों का बड़े-बड़े संस्था में ले जाकर इलाज कराने की जरूरत है. साथ ही ऐसा क्यों होता है इसके लिए रिसर्च करने की जरूरत है.