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दर-दर की ठोकर खा रहे दिव्यांग को मिला आश्रय बाल संरक्षण इकाई ने बाल गृह को सौंपा

अररिया : प्रभात खबर जनसरोकार की मुद्दों को न केवल उठाता है बल्कि उसे अमली जामा पहचाने में अंतिम सांस तक लगा रहता है. यह साबित होता रहा है. 13 मार्च को प्रभात खबर में प्रमुखता से प्रकाशित किये जाने के बाद पिछले पांच दिनों से दर-दर की ठोकर खा रहे है मूक-बधिर दिव्यांग को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 15, 2019 5:41 AM

अररिया : प्रभात खबर जनसरोकार की मुद्दों को न केवल उठाता है बल्कि उसे अमली जामा पहचाने में अंतिम सांस तक लगा रहता है. यह साबित होता रहा है. 13 मार्च को प्रभात खबर में प्रमुखता से प्रकाशित किये जाने के बाद पिछले पांच दिनों से दर-दर की ठोकर खा रहे है मूक-बधिर दिव्यांग को उनका वास्तविक ठिकाना मिल ही गया.

बुधवार को सिविल सर्जन द्वारा हुई मडिकल जांच में यह साबित कर दिया गया कि वह अभी नाबालिग है. उसकी उम्र 16-18 वर्ष के बीच है. इसके बाद उस बच्चे को गुरुवार को बाल संरक्षण इकाई की ओर से पूर्णिया के बाल गृह के सुपुर्द कर दिया गया.
इसके बाद लगभग उस बेजुबान दिव्यांग के चेहरे पर खुशी खिल उठी. वह बोल तो नहीं पा रहा था. लेकिन उसकी आंखों में एक नये आसरा मिलने का सुकून जरूर दिख रहा था.
हालांकि बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक अक्षय रंजन ने यह कहा कि बाल गृह बच्चे को लेने में काफी आना-कानी कर रहा था. लेकिन अंतत: उसके सुपूर्द कर दिया गया है.
बताया कि जब तक वह बालिग नहीं हो जाता है तब तक उसे वहां रखा जायेगा. उसे किसी प्रकार के कुटीर उद्योग में दक्ष कर अपने जीविकोपार्जन के लिए सक्षम बनाया जायेगा.
क्या था मामला: 06 मार्च 2019 को ताराबाड़ी थानाध्यक्ष रंजीत कुमार को उनके ही थाना क्षेत्र के किसी गोरे झा ने एक मूक बधिर दिव्यांग को भटकते हुए देख सुपूर्द किया.
इसके बाद उक्त दिव्यांग को पुलिस ने बाल संरक्षण इकाई से बात कर नप द्वारा निर्मित आश्रय स्थल में रख दिया गया. जहां वह लगभग छह दिनों तक अनाधिकृत रूप से रहा. आश्रय स्थल में ऐसे किसी भी प्रकार के लावारिस व दिव्यांग को रखने का नियम नहीं हैं.
वहां न्यूनतम दर पर बेड उपलब्ध कर भोजन दिये जाने का प्रावधान है. बच्चे को बिना किसी सुरक्षा के रखने के कारण नप द्वारा आश्रय स्थल की संचालिका प्रगति महिला स्वाबलंबी संगठन के एकरारनामा को भी रद्द करने की धमकी दी गयी.
ऐसे में यह बड़ा सवाल उठ रहा था कि वह बच्चा आखिर जाए कहां. बाल संरक्षण इकाई ने भी बालिग-नाबालिग के चक्कर में बच्चे को मेडिकल जांच के नाम पर भेज दिया. बहरहाल इश्वर की मर्जी चली व बच्चे को बालिग होने तक रहने का ठिकाना मिल गया.
अब भी एक सवाल बांकी, आखिर अररिया में ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं?
अररिया में बालिका गृह व बालक गृह नहीं है. बाल संरक्षण गृह अररिया में है. उसमें ऐसे ही 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे को रखा जाना है जो किसी अपराध में संलिप्त हो. इसलिए लावारिस या रेस्क्यू कर लाये गये बच्चों को यहां नहीं रख सकते हैं. इसलिए ऐसे बच्चों को यहां रखे जाने की व्यवस्था नहीं है.
राज्य बाल संरक्षण आयोग व बिहार सामाजिक सुरक्षा कोषांग बिहार सरकार पटना इसकी व्यवस्था करती है. पहले यहां बालिका गृह चलाया जा रहा था. जो कि वर्ष 2015-16 से ही संचालित नहीं है. इसका जो भी कारण सामने आ रहा है उनमें से जिले में अभी बाल कल्याण समिति का विधिवत गठन नहीं होना बताया जा रहा है.
पूर्व अध्यक्ष बाल कल्याण समिति बचनेश्वर मिश्र ने बताया कि किशोर न्याय बोर्ड की स्थापना की गयी है. किशोर परिषद में भी तीन ही सदस्य होते हैं. इसमें मात्र दो ही सदस्य हैं. क्रमश: उनमें एक जज व एक सदस्य काम कर रही हैं. इसलिए अररिया में ऐसे बच्चे मिलते हैं तो उन्हें बाल संरक्षण इकाई द्वारा पूर्णिया, किशनगंज व कटिहार बालगृह भेजा जाता है.

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