हर दूसरा बच्चा है कुपोषण का शिकार

परवेज आलम, अररिया : जिले में बच्चों के कुपोषण की स्थिति भले ही चुनावी मुद्दे के तौर पर नहीं उभर पाया हो, लेकिन इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता है कि कुपोषण जिले की एक गंभीर समस्या बन चुकी है. हालांकि कुपोषण को लेकर न तो स्वास्थ्य व न ही आइसीडीएस के पास […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 18, 2019 7:06 AM

परवेज आलम, अररिया : जिले में बच्चों के कुपोषण की स्थिति भले ही चुनावी मुद्दे के तौर पर नहीं उभर पाया हो, लेकिन इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता है कि कुपोषण जिले की एक गंभीर समस्या बन चुकी है. हालांकि कुपोषण को लेकर न तो स्वास्थ्य व न ही आइसीडीएस के पास कोई प्रमाणिक आंकड़ा उपलब्ध है.

पर स्वास्थ्य विभाग व उनकी सहयोगी संस्थाओं के अधिकारी भी मानते हैं कि जिले में कमोबेश 60 प्रतिशत बच्चे कुपोषित की श्रेणी में आते हैं. जानकार तो यहां तक कहते हैं कि जिले का हर दूसरा बच्चा कुपोषित है. इस सिलसिले में विभिन्न स्त्रोतों से उपलब्ध आंकड़े भी कुपोषण की भ्यावह स्थिति को ही रेखांकित करते हैं.
गौर तलब है कि बच्चों को कुपोषण से मुक्त रखने के लिए जहां आइसीडीएस के जहत जिले में कुल मिला कर तीन हजार के करीब आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हैं. वहीं स्वास्थ्य विभाग के बैनर तले भी विफ्स सहित लगभग आधे दर्जन कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं. इन सबके बावजूद कुपोषण के आंकड़े जिंचा में डालने के लिए काफी हैं.
कुपोषण की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिले में अल्पवजन के बच्चों का पतिशत 45 से अधिक है. वहीं नाटापन से ग्रसित बच्चों की प्रतिशत लगभग 49 है. आइसीडीएस कार्यालय से उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक जिले में नवजता से लेकर छह वर्ष तक के कुल लगभग 45 हजार बच्चे कुपोषित हैं. जबकि अति कुपोषित बच्चों की संख्या लगभग आठ हजार है.
स्वास्थ्य के विभिन्न आयामों को लेकर वर्ष 2015-18 में हुए सर्वे के बाद जारी आंकड़ों का हवाला देते हुए पीरामल फउंडेशन के परिमल झा ने बताया कि जिले में पांच साल तक के नाटेपन का शिकार बच्चों का प्रतिशत 48.4 है. जबकि इसी आयु वर्ग के लगभग 23 प्रतिशत बच्चे कुपोषित व सात प्रतिशत से अधिक बच्चे अति कुपोषित हैं. श्री झा की मानें तो जिले का हर दूसरा बच्चा कुपोषित है.
सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक पांच साम की उम्र के 45.4 प्रतिशत बच्चे अल्पवजन के हैं. वही जिला स्वास्थ्य समिति द्वारा उपलब्ध कराये गये आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल 2018 से लेकर फरवरी 2019 तक जन्म लेने वाले 65 हजार 847 बच्चों में लगभग 10 हजार बच्चों का वजन ढाई किलों से कम यानी अल्पवजन के पाये गये.
जानकारी के मुताबिक जिले में शिशु व मातृत्व मृत्यु दर भी चिंताजनक है. बताया गया कि जिले का शिशु मृत्यु दर 38 है. यानी जन्म लेने वाले हर 10 हजार बच्चे में 38 बच्चे की मृत्यु हो जाती है.
जबकि मातृत्व मृत्यु दर 178 है. ऐसी स्थिति में ये सवाल उठना लाजिमी है कि क्या कुपोषण की रोकथाम के लिए संचालित सभी योजनाएं महज कागजों तक समिटी हुई हैं, या फिर दिक्कत कहीं और है. सवाल ये भी है कि राजनीति को जन सेवा का नाम देने वाले राजनेताओं को जिनके वोट की फिक्र सताती रहता है. उनके बच्चों के भविष्य को लेकर इतने उदासीन क्यों बने हुए हैं.

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