पले-बढ़े अररिया की मिट्टी में, पेट भरता है परदेस में

बेदी झा, अररिया : समाज के हालत बदलने को लेकर तरह-तरह की योजनाएं संचालित हो रही हैं. अधारभूत संरचनाओं का निर्माण भी हो रहा है. लेकिन रोजगार के अवसर जेनरेट नहीं हो पा रहा है. यह नही दिख रहा है कि उद्योग लग रहे हैं. लेकिन उद्योग लगाने के दावे हर वे लोग कर रहे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 11, 2019 8:06 AM

बेदी झा, अररिया : समाज के हालत बदलने को लेकर तरह-तरह की योजनाएं संचालित हो रही हैं. अधारभूत संरचनाओं का निर्माण भी हो रहा है. लेकिन रोजगार के अवसर जेनरेट नहीं हो पा रहा है. यह नही दिख रहा है कि उद्योग लग रहे हैं. लेकिन उद्योग लगाने के दावे हर वे लोग कर रहे होते हैं, जिनके कंधों पर विकास करने का भरोसा लोगों ने जता रखा है.

हालात दावों को खोखला साबित करता नजर आ रहा है. दरअसल बाढ़ सुखाड़ से जूझते किसान, मजदूरों की हालत एक पक्षी की तरह है. मेहनत मजदूरी कर गांव में घोंसला (मकान) तो बनाते हैं, लेकिन उस घोंसले में रहने का मौका कम ही मिलता है. पेट की आग के साथ, बेटी की शादी, परिवार की परवरिश, बच्चों की शिक्षा व आगे बढ़ने की ललक के कारण उनमें पलायन कर परदेश जाने की पीड़ा आज भी है.
उद्योग का नहीं होना पलायन का बड़ा कारण
इस जिले के अधिकांश लोग कृषि आधारित जिंदगी जीते हैं. हर वर्ष बकरा, पनार, लूना, लोहंद्रा, कनकई, कारी कोसी में आती उफान इन किसानों के सपनों को बहाकर अपने साथ ले चली जाती है. रिलीफ मुआवजा की ठेलमठेल शुरू होती है. रिलिफखोर, बिचौलियों की चांदी ही चांदी.
लेकिन किसान, कृषक मजदूर ठेलमठेल से दूर रहकर परदेस कमाने जाने को मजबूर आज भी हैं. इस बात से इनकार नहीं हुआ जा सकता है कि परदेश जाने आने से उनके रहन सहन में बदलाव आया है.
जो विकसित जीवन शैली को दर्शाता है. ट्रेन पकड़ने आये मजदूरों का कहना था कि हमारे हाथों से ही पंजाब में हरियाली है. पंजाब के फैक्ट्रियों में उत्पादन हमारे ही हाथों होता है. हरियाणा, दिल्ली की खुशहाली की लकीर इन्ही हाथों से है. लेकिन यहां तो न कोई उद्योग है और न ही कोई फैक्ट्री. करें तो क्या करें.
उन्होंने जोकीहाट की भाषा में कहा नेतासिनी ते खाली वोलेय छि की फेक्ट्री लगतै. स्टार्च फेक्ट्री खुली गेले. आरो खुलतेयी. लेकिन लोग सिनी के काम कहा दय च्छी. एक मजदूर कहता है कि मांस फैक्ट्री से क्या फायदा है यहां के लोगों को. भले ही हमलोग नहीं, दूसरे समुदाय के लोगों को भी कहां काम मिल रहा है. कई सवाल. जिनका जबाव कोई जवाबदेह ही दे सकते हैं.
वृद्ध महिला-पुरुष करते हैं घर की रखवाली
आज भी रोजगार की तलास में गांव का गांव खाली हो जाता है. घर में रह जाते हैं वृद्ध महिला पुरुष घर की रखवाली करने के लिए. सच्चाई है कि जिले में रोजगार के अवसर नहीं हैं. न कोई उद्योग है. जो भी उद्योग लगाने के दावे किये गये हैं वे आज तक विवादों में घिरे रहने के कारण पूरे नहीं हो पाये हैं. ऐसे में बदहाल कृषक मजदूर क्या करें.
जब बाढ़ की पानी उनके सपनों को बहाकर ले चली जाती है. तब विवश हो जाते हैं परदेस जाने के लिए. जब उनके परिजन उन्हें महीनों-महीनों के लिये परदेश विदा करने सड़कों पर आते हैं तो उनकी आंखों में छिपे इंतजार की पीड़ा को क्या किसी जिम्मेदार जनप्रतिनिधि व पदाधिकारियों ने झांका है.
यही नहीं जब अनायास ही बाहर में रहने वाले मजदूर सड़क दुर्घटना में या फिर बहुमंजिले इमारतों से गिरने के बाद असमय ही काल के ग्रास बन जाते हैं तो उस वक्त की पीड़ा को महशूश कर पाना मुश्किल होता है. बावजूद पलायन के दंश से उबाराने के लिए जनप्रतिनिधि सिर्फ उन्हें आश्वासन की घुट्टी पिलाते हैं.
हर वर्ष जिले के दो लाख से अधिक की अबादी देश के विभिन्न राज्यों के लिए करते हैं पलायन
अररिया कोर्ट रेलवे स्टेशन पर पंजाब जा रहे जोकीहाट प्रखंड के एक मजदूर ने अपनी पीड़ा बयां किया. उसने कहा कि क्या करे गांव में कोई रोजगार नहीं है. घर परिवार चलाने, बच्चों की भविष्य सवारने की चाहत है दिल में, बेबसी है. तभी तो बूढ़ी मां व दुधमुंहे बच्चे को छोड़कर बाहर कमाने के लिए जाना पड़ रहा है.
वही बगल में खड़े एक दूसरा मजदूर गा उठता है चल उड़ जा रे पंक्षी कि, अब तेरा देश हुआ बेगाना. यह दिल को झकझोर कर रखने के साथ कई सवाल उठाने को काफी होता है गीत. जिले से दो ट्रेन दिल्ली व कोलकाता के लिए जाती है.
प्रतिदिन इन ट्रेनों में से खास कर सीमांचल एक्सप्रेस में प्रतिदिन दिल्ली जाने व वहां से पंजाब, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि राज्यों के लिए जाने वाली की कतार लगी रहती है. एक दिन में लगभग छह से सात हजार मजदूर ट्रेन व बसों से बाहरी राज्यों के लिए जिले से प्रस्थान करते हैं. हालांकि उनमें से कोई एकाध हजार लोगों का पुन: अपने गृह जिला लौटना का भी सिलसिला जारी रहता है.
किसानों की पीड़ा को समझता हूं. इनके मुद्दों को संसद में उठाता रहा हूं. बाढ़ के स्थायी निदान के लिये प्रयासरत हूं. मजदूरों किसानों का पलायन रुके. इसको लेकर मक्का आधारित उद्योग, जूट आधारित उद्योग क्षेत्र में लगाये जाने के प्रयास में हूं.
इसके लिये सदन में भी बोल चुका हूं, सरकार को प्रस्ताव भी भेजा हूं. इन मुद्दों को संसद में मजबूती से उठाया हूं. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री किसानों के हित मे खेत तक बिजली पहुचाने का फैसला लिया है. इसका निदान करना मेरी प्राथमिकताओं में है.
प्रदीप कुमार सिंह, सांसद

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