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खून के काले कारोबार में लाल हो रहे बिचौलिये

अररिया: इसी साल 14 जनवरी को जिला स्थापना की सिल्वर जुबली धूम-धाम से मनायी गयी. दावा है कि 1990 में जिला बनने के बाद 25 सालों में जिले में विकास का गंगा बही. स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर भी ऐसे ही दावे किये जाते हैं. कुछ मूलभूत सुविधाओं का अभाव व फर्जी डॉक्टरों के निजी क्लिनिकों […]

अररिया: इसी साल 14 जनवरी को जिला स्थापना की सिल्वर जुबली धूम-धाम से मनायी गयी. दावा है कि 1990 में जिला बनने के बाद 25 सालों में जिले में विकास का गंगा बही. स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर भी ऐसे ही दावे किये जाते हैं. कुछ मूलभूत सुविधाओं का अभाव व फर्जी डॉक्टरों के निजी क्लिनिकों व जांच घरों में ग्रामीण रोगियों के आर्थिक शोषण को लेकर जिला स्वास्थ्य विभाग का लापरवाह भरा रवैया लोगों को हैरत में डाल रहा है.

दूसरी तरफ ब्लड बैंक के अभाव के चलते लाल खून का काला कारोबार भी परवान चढ़ रहा है. जानकारों की मानें तो इस अवैध कारोबार के पीछे एक संगठित नेटवर्क काम कर रहा है. लगातार उठ रही मांगों के बावजूद जिले में अबतक ब्लड बैंक की स्थापना नहीं हो पायी है. रेडक्रॉस की इकाई में भी ब्लड बैंकनहीं खुल सका है. अलबत्ता कुछ सालों से सदर अस्पताल परिसर में उसी भवन में छोटा सा ब्लड स्टोरेज सेंटर चल रहा है जिसमें ब्लड बैंक खुलना था.

माना जा रहा है कि ब्लड बैंक के अभाव ने ही रक्त के अवैध कारोबार के लिए उपयुक्त माहौल तैयार कर दिया. इमरजेंसी में आवश्यक ग्रुप का रक्त अवैध रूप से उपलब्ध कराने का सिलसिला जिले में दशकों पुराना है, लेकिन पहले उतनी कीमत नहीं चुकानी पड़ती थी, जितनी अब पड़ती है. कीमत रक्त के ग्रुप पर निर्भर करती है. साधारण ग्रुप का ब्लड एक हजार रुपये प्रति यूनिट पर मिल सकता है, लेकिन ग्रुप अगर असाधारण हो, तो मुंहमांगी कीमत चुकानी पड़ती है.

अवैध कारोबारियों का एक पूरा नेटवर्क खड़ा हो चुका है. कहा तो ये भी जा रहा है कि नेटवर्क का संचालन सदर अस्पताल के आसपास से ही हो रहा है. स्वास्थ्य विभाग से मिली जानकारी के अनुसार भवन बहुत पहले बना था, लेकिन कुछ अर्हता पूरी नहीं होने के कारण ब्लड बैंक का लाइसेंस नहीं मिल पाया. जिला औषधि निरीक्षक ने एक डॉक्टर व दो लैब टेक्नीशियन को प्रशिक्षण दिलवाने के लिए कहा है. इसके साथ ही भवन में भी कमियों को पूरा किया गया है. प्रशिक्षण के बाद ही ब्लड बैंक के लाइसेंस की प्रक्रिया शुरू होगी. लाइसेंस राज्य औषधि नियंत्रक कार्यालय से निर्गत होता है. ब्लड स्टोरेज सेंटर में औसतन चार-पांच यूनिट तक ही ब्लड रखने की सुविधा है. रक्तदान शिविरों से जो ब्लड आता है. उसका अधिकांश हिस्सा पूर्णिया ब्लड बैंक भेज देना पड़ता है.

कहते हैं सीएस: सीएस डॉ बीके ठाकुर ने कहा कि उनके संज्ञान में खून के काले धंधे का एक मामला आया था. इसमें भी जांच की गयी, पर इस तरह का कोई ठोस आरोप सामने नहीं आया. जहां तक ब्लड बैंक की बात है तो राज्य स्तर पर इस बात को रखा गया है. कोई सार्थक परिणाम जल्द ही सामने आने की संभावना है.

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