निकाला गया ताजिया जुलूस, मेलों में लगी रही भीड़

निकाला गया ताजिया जुलूस, मेलों में लगी रही भीड़ छिटपुट घटनाओं को छोड़ जिले में शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुआ यौमे आशुरा का आयोजन फोटो- 7-बैरगाछी में निकाला गया जुलूस फोटो:8-अररिया के चांदनी चौक पर जुटा ताजिया जुलूस फोटो:9-बैरगाछी करबला में ताजिया जुलूस में शामिल दुलदुल घोड़ा फोटो:10-अररिया बैरगाछी में सुरक्षा में जुटे अर्द्धसैनिक बल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 24, 2015 7:53 PM

निकाला गया ताजिया जुलूस, मेलों में लगी रही भीड़ छिटपुट घटनाओं को छोड़ जिले में शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुआ यौमे आशुरा का आयोजन फोटो- 7-बैरगाछी में निकाला गया जुलूस फोटो:8-अररिया के चांदनी चौक पर जुटा ताजिया जुलूस फोटो:9-बैरगाछी करबला में ताजिया जुलूस में शामिल दुलदुल घोड़ा फोटो:10-अररिया बैरगाछी में सुरक्षा में जुटे अर्द्धसैनिक बल के जवान प्रतिनिधि, अररियालगभग एक हजार 400 साल पहले दिये गये हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मुहर्रम महीना के यौमे आशुरा के दिन शनिवार को जिले भर में होने वाला आयोजन सांप्रदायिक सद्भाव के बीच कमोबेश शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गया़ इस दौरान जिले के विभिन्न करबला मैदानों में पहुंच कर ताजिया जुलूस में शामिल लोगों ने लाठी व तलवार बाजी के करतब दिखाये. वहीं मैदान के आसपास दिन भर मेले जैसी चहल-पहल रही़ सभी करबला मैदान में हजारों की तादाद में लोग करतब का लुत्फ उठाने पहुंचे़यौमे आशुरा के दिन शहर समेत जिले भर में मुसलिम समुदाय में अकीदत का खास माहौल बना रहा़ अधिकांश घरों में लोगों ने रोजे भी रखे़ दोपहर बाद चांदनी चौक-जीरो माइल मार्ग पर बने करबला मैदान लोगों की भीड़ जुटने लगी़ उधर शहर के विभिन्न इमामबाड़ों से सिपहर, ताजिया आदि के साथ जुलूस निकलने का सिलसिला शुरू हुआ़ मिली जानकारी के अनुसार निर्धारित मार्गों से होता हुआ जुलूस चांदनी चौक पहुंचा़ फिर वहां करतब बाजी के बाद जुलूस पूरे उत्साह के साथ करबला मैदान पहुंचा़ जुलूस में बड़ों व बुजुर्गों के साथ बढ़ी तादाद में बच्चे भी शामिल थे़ अधिकांश जंगियों के हाथ में लाठियां व तलवारें थी़शहर के करबला मैदान में गाछी टोला, कासमी रहिका, बुआरी बाध, ककोड़वा, गैयारी सिसौना व मीर शिकार टोला आदि से जुलूस पहुंचा़ करबला मैदान में अपराह्न से लेकर शाम लगभग छह बजे तक करतब बाजी का दौर चलता रहा़ इस दौरान मेला स्थल के अलावा शहर के प्रमुख चौक चौराहों पर पुलिस व दंडाधिकारी मुस्तैद दिखे़ इधर ताराबाड़ी प्रतिनिधि के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र के अररिया बैरगाछी, पलासी पटेगना, जमुआ, मदनपुर आदि गांवों में शांतिपूर्वक ताजिया का जुलूस निकाला गया व लाठी व भाले से करतब दिखाया गया. इस मौके पर अररिया बैरगाछी में ओपी अध्यक्ष अखिलेश कुमार, ताराबाड़ी में थानाध्यक्ष सुनील कुमार सिंह व मदनपुर में ओपी अध्यक्ष राम अयोध्या राम सक्रिय देखे गये. झौआ पलासी करबला पर मोमिन टोला पलासी, झौआ व नया टोला के जंगी पहुंचे और शांतिपूर्वक अपने करतब का प्रदर्शन किया. इस मौके पर क्या हिन्दू क्या मुसलमान दोनों की तादाद काफी थी. प्रजातंत्र की हिफाजत के लिए थी हजरत इमाम हुसैन की शहादतप्रतिनिधि, अररियामुहर्रम की 10वीं तारीख यानी यौमे आशूरा को कर्बला के मैदान में हजरत इमाम हुसैन (रजी.) ने जो कुर्बानी दी वो राजतंत्र को रोकने व प्रजातंत्र की हिफाजत के लिए थी. यजीद के मंसूबों को रोकने के लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपनी व अपने परिजनों की जान को शहीद करके एक बडे फितने को रोक दिया था. इसी कुर्बानी को याद करने के लिए मुहर्रम मनाया जाता है. ये बातें महर्रम के मोके पर जमाते इसलामी, हिंद के नाजिम इलाका मो मोहसिन ने कहीं.मुहर्रम की अहमियत की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि हजरत इमाम हुसैन की कुर्बानी सत्ता हासिल करने के लिए नहीं थी. बल्कि अल्लाह के दीन इसलाम व प्रजातंत्र की रक्षा के लिए थी. इसलामी सिद्धांतों की हिफाजत के लिए थी. क्योंकि खलीफा बनते ही यजीद ने इसलाम में कुछ बडी तब्दीलियां शुरू कर दी थी. स्वतंत्र चुनाव पर रोक लगा दिया गया था. लोगों को अपनी राय देने पर पाबंदी लग गयी थी. अल्लाह व जनता के सामने जवाबदेही का विचार समाप्त होने लगा था. राजकोष का गलत इस्तेमाल होने लगा था. उंच् नीच को बढावा मिलने लगा था. इसी के खिलाफ हजरत इमाम हुसैन ने जंग के दौरान अपनी जान की कुर्बानी दी थी. स्वर्गीय गुलाब चंद राय की कोशिशों का नतीजा है अररिया करबला मेलापरवेज आलमप्रतिनिधि, अररियामुहर्रम महीना के यौमे आशुरा के दिन जिले मंे होने वाले आयोजनों का इतिहास सांप्रदायिक सौहार्द की एक बेमिसाल नजीर पेश करता है़ इस सिलसिले की एक दिलचस्प बात ये है कि लगभग पांच दशकों से अररिया शहर के जिस करबला मैदान में ताजिया जुलूस इकट्ठा होकर तरह-तरह के करतब दिखाते हैं, वो मैदान डिस्ट्रक्टि बोर्ड के चेयरमैन रह चुके स्वर्गीय गुलाब चंद राय की कोशिशों का नतीजा है़ कई जानकार इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि आम तौर पर प्यार से चचा चेयरमैन कहे जाने वाले गुलाब चंद राय की पहल पर ही अररिया शहर में करबला मैदान के लिए जगह मिली और मेला लगना शुरू हुआ़ उसके पूर्व अररिया का अखाड़ा भी शहर से लगभग आठ किलोमीटर दूर बैरगाछी करबला मैदान जाता था़वहीं अपने स्वर्गीय पिता के योगदान का जिक्र करते हुए अररिया के पूर्व विधायक विनोद कुमार राय कहते हैं कि मेला पहले बैरगाछी में ही लगता था़ शहर से अधिक दूरी व आपस में नोकझोंक के खतरे को देखते हुए उनके पिता ने संभवत साठ के दशक में अधिवक्ता मो यासीन, वसीकुर्रहमान के अलावा मो युनुस व मो अलीजान सहित अन्य गणमान्य व्यक्तियों के सामने अररिया में करबला मेला लगवाने व इसके लिए जमीन चिह्नित करने का प्रस्ताव रखा़ लोगों ने प्रस्ताव का स्वागत करते हुए इसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया़उसके बाद से ही चांदनी चौक-जीरोमाइल मार्ग पर खाली मैदान में करबला मेला लगने लगा़ वहीं शहरवासियों का कहना है कि मैदान का क्षेत्रफल पहले के मुकाबले काफी कम जरूर हो गया है, लेकिन यौमे आशुरा के दिन मेला उसी करबला मैदान में लगता है़अब नहीं दिया जाता है पंचलैटप्रतिनिधि, अररियाकालजयी कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु ने अपनी कहानी पंचलैट में जिस पेट्रोमैक्स के ईद गिर्द कहानी का ताना बाना बुना है, जिले में वाकई उसका बहुत महत्व था़ क्योंकि मुहर्रम के मौके पर यौमे आशुरा के दिन शहर में निकलने वाले ताजिया जुलूसों में से प्रथम तीन स्थानों पर रहने वाले अखाड़ों को पुरस्कार के रूप में यही पंचलैट या पेट्रोमेक्स दिया जाता था़ इसकी परंपरा भी स्वर्गीय गुलाब चंद राय ने ही प्रारंभ की थी़ पर अब ये इतिहास बन चुका है़पूर्व विधायक विनोद राय कहते हैं कि उनके पिता हर साल मुहर्रम के मौके पर बेहतर प्रदर्शन करने वाले तीन अखाड़ों को अपने पास से पुरस्कार देते थे़ ये पुरस्कार ताजिया, दुलदुल घोड़ा व सिपहर के आकर्षण व भव्यता के आधार पर दिया जाता था़ चयन निर्णायक मंडल के सदस्य करते थे़ गाछी टोला के सिपहर बनाने के उस्ताद मो मोती भी मानते हैं कि चेयरमैन साहब हर वर्ष पुरस्कार देते थे़ गाछी टोला वालों ने भी कई बार पुरस्कार जीता था़पूर्व विधायक श्री राय ने बताया कि पिता के बाद कई सालों तक उन्होंने पुरस्कार देने की परंपरा को कायम रखा़ वर्ष 1990 में विधायक बनने के बाद कुछ राजनीतिक कारणों से उन्हें ये सिलसिला बंद करना पड़ा़ इसका उन्हें अब भी मलाल है़ वहीं बताया जाता है कि श्री राय के बाद रायल टाकीज सिनेमा हाल के मालिक मीर परवेज आलम ने भी कई सालों तक पुरस्कार दिया़ फिर धीरे-धीरे ये सिलसिला बंद हो गया़नहीं रहे लाठी व बाना खेल के पुराने उस्तादप्रतिनिधि, अररियायूं तो यौमे आशुरा के दिन शहर के विभिन्न इमामबाड़ों से अखाड़े निकलते हैं, लेकिन अब लाठी, बाना व तलवार आदि के पुराने माहिर व उस्ताद नहीं रहे़ मिली जानकारी के अनुसार कुछ दशक पहले तक हजारों लोग करबला मैदान सिर्फ उन उस्तादों के करतब देखने पहुंचते थे़ बताया जाता है कि जीनत उस्ताद लाठी खेलने के माहिर थे तो मीर टोला निवासी स्वर्गीय बुद्धू का बाना के खेल में कोई जवाब नहीं था़ अब कुछ युवा ही इस खेल को जिंदा रखने की कोशिश कर रहे हैंबच्चों ने उठाया मेले का लुत्फफोटो:प्रतिनिधि, अररियाशनिवार को शहर के करबला मैदान के पास लगे मेले का बच्चों के साथ साथ बड़ों ने भी लुत्फ उठाया़ यूं तो करबला मैदान में ताजिया जुलूसों के पहुंचने का सिलसिला दोपहर बाद शुरू हुआ, लेकिन मेले में भीड़ काफी पहले से लग गयी थी़करबला मैदान के पास लगने वाले मेला में छोले व चाट से लेकर चाय पान व मिठाइयों की दुकानें भी लगी थी़ वहीं कहीं आइसक्रीम बिक रहे थे तो कहीं मिट्टी के व अन्य खिलोने़ गुब्बारों की भी कमी नहीं थी़ बच्चों में गजब का उत्साह था़

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