अब मंत्री पद को लेकर लगायी जा रही हैं अटकलें

अररिया : महीनों से चलने वाले सियासी उठा पटक व चुनावी हार जीत का खेल खत्म हो चुका है. दीपावली के बाद जिला वासी छठ की तैयारियों में लगे हैं. लेकिन इसी बीच मंत्री पद को लेकर अटकलों का बाजार भी गर्म है. महागंठबंधन के नेता व कार्यकर्ताओं के साथ-साथ आम अवाम भी जिले को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 13, 2015 6:35 PM

अररिया : महीनों से चलने वाले सियासी उठा पटक व चुनावी हार जीत का खेल खत्म हो चुका है. दीपावली के बाद जिला वासी छठ की तैयारियों में लगे हैं. लेकिन इसी बीच मंत्री पद को लेकर अटकलों का बाजार भी गर्म है. महागंठबंधन के नेता व कार्यकर्ताओं के साथ-साथ आम अवाम भी जिले को एक मंत्री पद का तोहफा मिलने की आस लगाये हुए हैं.

संभावित मंत्री के नाम को लेकर सोशल मीडिया पर भी पोस्ट आ रहे हैं.गौरतलब है कि संपन्न विधान सभा चुनाव में जिले के सभी छह विधान सभा क्षेत्रों में महागंठबंधन के पक्ष में जम कर वोटिंग हुई थी. नतीजा भी अनुमान के मुताबिक ही रहा. महागंठबंधन में सीमांचल की 24 सीटों में से जिन 18 सीटों पर जीत का परचम लहराया उनमें जिले की भी चार सीटें भी शामिल हैं. अलबत्ता बाकी की दो सीटें बीजेपी जीतने में सफल रही.

महागंठबंधन के विजयी उम्मीदवारों में जहां पहली बार चुनाव लड़ कर विधान सभा पहुंचने वालों में जदयू के अचमित ऋषिदेव व कांग्रेस के आबिदुर्रहमान शामिल हैं. वहीं नरपतगंज से राजद के अनिल कुमार यादव ने अपनी दूसरी जीत दर्ज की है. जोकीहाट से जदयू प्रत्याशी के रूप में किला फतह करने वाले सरफराज आलम की ये चौथी जीत है.

उनकी जीत की एक खास बात ये भी हे कि उन्होंने न केवल जिले में सबसे अधिक मत प्राप्त किया. बल्कि सबसे अधिक मतों के अंतर से जीतने का भी रिकार्ड बनाया है. सरफराज आलम को सबसे अधिक 92 हजार 890 मत मिले. उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 53 हजार 980 मतों से शिकस्त दी.

बताया जाता है कि अब हार जीत के बाद शहर से ग्रामीण इलाकों के चौक चौराहों व चाय की दुकानों पर मंत्री मंडल के गठन को लेकर चर्चा हो रही है. यूं तो बुद्धिजीवी वर्ग पूरी कैबिनेट को लेकर कयास लगाने में जुटा है. हर का अपना आकलन व अपना तर्क है. कुछ विश्लेषक तो यहां तक कह रहे हैं कि महागंठबंधन के जो प्रमुख नेता हार गये हैं, उन्हें भी मंत्री बनाया जा सकता है. जिला वासी मानते हैं कि मंत्री मंडल में जिले को भी प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए.

क्योंकि वर्ष 2010 में बनी भाजपा जदयू की सरकार में जिले को मंत्री मंडल में प्रतिनिधित्व नहीं मिला था. हालांकि इसके पहले 2005 में बनी भाजपा जदयू की सरकार में जोकीहाट के विधायक मंजर आलम व रानीगंज के विधायक रामजी दास ऋषिदेव को मंत्री बनाया गया था. यूं तो महागंठबंधन के सभी विजयी उम्मीदवारों के समर्थक अपने-अपने नेता के लिए मंत्री पद की आस लगा रहे हैं. पर आम राय है कि जोकीहाट के विधायक सरफराज आलम बाजी मार सकते हैं.

तर्क ये दिया जा रहा है कि श्री आलम न केवल चौथी बार विधान सभा पहुंचे हैं बल्कि वे पूर्व में राज्यमंत्री भी रह चुके हैं. वहीं माना जाता है कि महागंठबंधन के शीर्ष नेताओं तक उनकी पहुंच किसी अन्य से अधिक है. अपने क्षेत्र में भी वे बहुत हद तक लोकप्रिय हैं. वहीं कहा जा रहा है कि सीमांचल के बुजुर्ग व कद्दावर नेता सांसद तसलीमुद्दीन के पुत्र होने का सियासी लाभ भी उन्हें मिल सकता है.

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