प्रेम और संयम को अपनाने वाला ही पंडित

प्रेम और संयम को अपनाने वाला ही पंडितआचार्य श्री महाश्रमण ने कहा प्रेम युक्त जीवन जीने वाला व्यक्ति होता है पंडित फोटो:15-प्रवचन देते आचार्य फोटो:16-प्रवचन के दौरान उपस्थित भक्त गण प्रतिनिधि, अररिया आचार्य श्री महाश्रमण ने जिला प्रवास के दूसरे दिन तेरापंथ भवन में प्रवचन के दौरान प्रेम और संयम को जीवन में आत्मसात करने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 7, 2015 7:45 PM

प्रेम और संयम को अपनाने वाला ही पंडितआचार्य श्री महाश्रमण ने कहा प्रेम युक्त जीवन जीने वाला व्यक्ति होता है पंडित फोटो:15-प्रवचन देते आचार्य फोटो:16-प्रवचन के दौरान उपस्थित भक्त गण प्रतिनिधि, अररिया आचार्य श्री महाश्रमण ने जिला प्रवास के दूसरे दिन तेरापंथ भवन में प्रवचन के दौरान प्रेम और संयम को जीवन में आत्मसात करने का उपदेश दिया. उन्होंने कहा कि जीवन में पांडित्य आ जाय तो समझो की जीवन महान हो गया. आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि प्रेम को जाने बिना पांडित्य को नहीं प्राप्त किया जा सकता. आदमी में पांडित्य का गुण छठवे गुण स्थान से प्राप्त होता है. मनुष्य को अपने जीवन में पांडित्य का अवसर मिले यह उसका बहुत बड़ा भाग्य होता है. ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होयआचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि व्यक्ति को समझाने की कला होनी चाहिए . समझाने की कला से हठी व्यक्ति को भी सही मार्ग पर लाया जा सकता है. अपने अंदर वह ज्ञान विकसित करो जिससे दूसरों को उचित सलाह दे पाओ. उन्होंने कहा कि जैन आगम के वाड्गमय में पंडित के बारे में बताया गया है. पंडित कौन होता है, आचार्य देव चंद्र के अविधान चिंतामणी कोष में कहा गया है कि विद्वान के पर्यायवाची नामों में पंडित शब्द भी सम्मिलित है. इसका मतलब है कि विद्वान को पंडित कहा जाता है. तत्वानुगामिनी बुद्धि का नाम पंडा है और पंडा जिसमें होती है, वह पंडित है. ऐसा भी कहा गया है ‘ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय’ इसका मतलब है जो प्रेम को सीख ले, प्रेम को पढ़ ले , जिसके जीवन में प्रेम आ जाये वह व्यक्ति पंडित होता है. प्रेम युक्त जीवन जीने वाला व्यक्ति पंडित होता है. किसी को पंडित और साधु बना देना बहुत बड़ा काम होता है. एक साधु जो संयम साधना करते हुए परोपकार करता है, दूसरों को भी कल्याण का पथ दिखाता है, संयम की दिशा में आगे बढ़ाता है. वह साधु आध्यात्मिक उपकार करने वाला होता है. इस अवसर पर साध्वी जयंतयशा जी ने अपने कविता के माध्यम से गुरुदेव की वंदना की.

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