स्टोरी —विकास की रोशनी से कोसो दूर पलसा गांव
स्टोरी —विकास की रोशनी से कोसो दूर पलसा गांव खबर नहीं ल गानी है—फोटो 18 केएसएन 5चचरी पुल प्रतिनिधि दिघलबैंक(किशनगंज)पूर्व में बिहार के कालापानी के नाम से बदनाम जिले के दिघलबैंक प्रखंड की स्थिति आजादी के 67 साल बाद आज भी जस की तस है. प्रखंड के कई इलाके के वांसिदे आज भी मूलभूत सुविधाओं […]
स्टोरी —विकास की रोशनी से कोसो दूर पलसा गांव खबर नहीं ल गानी है—फोटो 18 केएसएन 5चचरी पुल प्रतिनिधि दिघलबैंक(किशनगंज)पूर्व में बिहार के कालापानी के नाम से बदनाम जिले के दिघलबैंक प्रखंड की स्थिति आजादी के 67 साल बाद आज भी जस की तस है. प्रखंड के कई इलाके के वांसिदे आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. अपनी समस्याओं की ओर सरकार का ध्यान आकृष्ट करने के उद्देश्य से दिघलबैंक प्रखंड के बलुवाडांगी, पलसा, डाको पाड़ा, मंदिर टोला आदि ग्राम के वांसिदों ने स्थानीय विधाकय, सांसद से मिलकर वस्तुस्थिति से अवगत कराया है. ग्रामीणों का आरोप इलाके के राजनीतिज्ञों को उनकी सुधि सिर्फ चुनाव के वक्त आती है. चुनाव के दौरान विभिन्न दलों के नेता भोले भाले ग्रामीणों को आश्वासन की घुट्टी पिलाते है. परंतु चुनाव खत्म होते ही प्रशासनिक अधिकारियों के साथ साथ सांसद, विधायक भी कभी इन गांव की ओर अपना रूख करना मुनासिब नहीं समझते है. ग्रामीणों द्वारा अपनी व्यथा सुनाये जाने के बाद जब प्रभात खबर की टीम ने इन गांवों का दौरा किया तो उनकी व्यथा शत प्रतिशत सच नजर आयी. खास्ता हाल व जर्जर सड़क के रास्ते जैसे तैसे पलासा गांव तक पहुंचने के बाद टीम की सवारी में ब्रेक लग गया. सामने कनकई नदी विकराल रूप धारण किये हुए थी. चचरी पुल बना सहारा ग्रामीणों द्वारा बनाये गये चचरी पुल के सहारे जैसे तैसे जान हथेली पर रख कर उपर वाले का नाम लेते हुए कनकई नदी पार किया. जबकि ग्रामीण व स्कूली बच्चे रोज इसी चचरी पुल से होकर आने-जाने को विवश है. बच्चे अपने घरों से 5 किमी की दूरी पर स्थित विद्यालय शिक्षा ग्रहण करने जाते है. वहीं साथ चल रहे एक ग्रामीण ने बताया कि 8 वीं तक की शिक्षा तो 5 किमी की दूरी पर उपलब्ध है.परंतु आगे की शिक्षा के लिए इन बच्चों को 10 किमी की दूरी तय करनी पड़ेगी. नतीजतन इनमें से कई बच्चे अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़े देने को बाध्य हो जायेंगे. वहीं प्रसव पीड़ा से जूझ रही महिला को खटिया पर लाद कर स्वास्थ्य केेंद्र ले जाने को विवश है. ग्रामीणों ने बताया कि नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र टप्पू भी लगभग 13 किमी दूर होने के कारण अक्सर इलाके के मरीज स्वास्थ्य केंद्र पहुंचने से पहले ही बीच रास्ते में दम तोड़ देते है.वहीं कनकई नदी पार करने के पश्चात नदी किनारे की जमीन में दम तोड़ देते है. वहीं कनकई नदी के कहर से सैकड़ों एकड़ उपजाउ भूमि नदी के गर्भ में समा गयी है. ग्रामीणों ने कहा कि इस पानी से लगातार तीन दिनों तक कपड़ा साफ करने के बाद सफेद कपड़ा का रंग बदल कर पीला हो जायेगा. ग्रामीणों का कहना था कि बिजली विहीन इस गांव में ढीबरी के लौ के सहारे रात काटने को विवश है. परंतु थाना, प्रखंड कार्यालय, स्वास्थ्य केंद्र, बाजार आदि के कनकई नदी के पार होने के कारण उन्हें जोखिम उठाना ही पड़ता है. ग्रामीण श्याम नाथ सिंह, भदर लाल सिंह, कैशर आलम, कमरुल होदा, दसमत सोरेन,चोटी मंडल, सत्य नारायण सिंह, चरित्र सिंह,सुरेंद्र सिंह, श्रवण सिंह, मदन मोहन सिंह, हरि लाल सिंह, दिगंबर सिंह, जगत नारायण सिंह, विजेंद्र सिंह सहित कई अन्य ग्रामीणों ने कहा कि जहां पुल चाहिए वहां पुल नहीं, जहां रोड चाहिए वहां रोड नहीं बनाया जाता है.