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आपदा में हुई थी पति की मौत, एक दशक से है मुआवजे के लिये लगा रही है गुहार

अररिया : दस साल पहले परमान नदी में आयी बाढ़ में नीलम से उनके पति का साथ क्या छूटा, इसके बाद से लगातार गरीबी और मुफलिसी की मार झेलते-झेलते जिले की प्रशासनिक व्यवस्था व शासन तंत्र पर से उनका भरोसा भी टूटने लगा. पति की मौत के बाद अपने पांच छोटे-छोटे बच्चों के साथ न […]

अररिया : दस साल पहले परमान नदी में आयी बाढ़ में नीलम से उनके पति का साथ क्या छूटा, इसके बाद से लगातार गरीबी और मुफलिसी की मार झेलते-झेलते जिले की प्रशासनिक व्यवस्था व शासन तंत्र पर से उनका भरोसा भी टूटने लगा. पति की मौत के बाद अपने पांच छोटे-छोटे बच्चों के साथ न जाने उन्होंने कितने सरकारी बाबुओं का दरवाजा खटखटाया. डीएम से लेकर सीएम तक को आवेदन दिये. सरकारी बाबूओं की जी हजूरी भी की मगर उनके अकड़ रवैया व काम को टालने की प्रवृत्ति के आगे उनकी एक ना चली.

इससे पति की मौत के बाद सांत्वना देने पहुंचे अधिकारी, जनप्रतिनिधि व समाजसेवियों द्वारा नीलम को आपदा राहत कोष से तत्काल मदद मुहैया कराने के भरोसे पर से उनका यकीन जरूर टूटने लगा. घटना का जिक्र करते हुए नीलम कहती है
कि चार अगस्त 2007 को परमान नदी में आयी बाढ़ में डूब कर उनके पति प्रेमलाल पासवान की मौत हो गयी थी. परिवार के कमाने वाले एक मात्र सदस्य को खोने के बाद परिवार के लालन-पालन का जिम्मा नीलम के कंधों पर जा टिका था. इस मुश्किल घड़ी में आपदा राहत कोष से मिलने वाले मदद का आश्वासन के बाद नीलम की आंखों में बच्चों के परवरिश और सुनहरे भविष्य के सपने एक बार फिर सजने लगे थे.
नीलम ने उसी वर्ष सितंबर माह में मृत्यु संबंधी सारे प्रमाणपत्र अंचल कार्यालय में जमा करा दिये. अंचल कार्यालयक के पत्रांक 22 दिनांक 24 जनवरी 2008 के माध्यम से भूमि उप समाहर्ता को भेजा गया, जहां दस्तावेज में मामूली त्रुटि की बात कहते हुए इसे पुन: अंचल को वापस कर दिया गया. त्रुटि के निराकरण के बाद भूमि उपसमाहर्ता की अनुशंसा से जिला आपदा विभाग को भेजी गयी. काफी समय तक आवंटन नहीं होने की बात कह कर विभाग द्वार टाले जाने से तंग आकर नीलम ने इस बीच मदद के लिए डीएम से लेकर सीएम तक को आवेदन भी दे डाले. इसी दौरान जिला प्रशासन द्वारा जिले में बाढ़ से हुई मौत की सूची भी प्रकाशित की गयी. मृतकों की सूची में नीलम के पति का नाम तो प्रकाशित हुआ. लेकिन मदद का भरोसा यकीन में नहीं बदल सका.
इधर, विभागीय कर्मी के स्वर जरूर बदल गये. अब नीलम को कार्यालय से दस्तावेज के गुम होने की बात कही जाने लगी. इसके बाद भी नीलम ने मदद की आश नहीं छोड़ी. दोबारा अंचल को सारे जरूरी कागजात जमा करा दिये. एक बार फिर से अंचल प्रशासन से अनुशंसित दस्तावेज संख्या 10/14-15 के माध्यम से एसडीओ कार्यालय को समर्पित किया गया, जहां से पत्रांक 751 दिनांक 15 अप्रैल 2015 के माध्यम से भुगतान के लिए जिला आपदा कार्यालय को भेजी गयी.
लेकिन इसके बाद भी आपदा विभाग का लचर रवैया कायम रहा. मदद की आश लगाये सरकारी दफ्तर का चक्कर लगाने वाली नीलम जिले में अकेली नहीं है. ऐसे कई नीलम को प्रतिदिन अफसरशाही के कोपभाजन का शिकार होना पड़ता है. लेकिन बेलगाम होती प्रशासनिक व्यवस्था व अधिकारियों की बड़ी फौज के बीच इन असहायों की उम्मीद व भरोसे दम तोड़ते नजर आते हैं.
युद्धस्तर पर चल रही तैयारी
निश्चय यात्रा . रोशनी से नहाया दिखेगा समाहरणालय क्षेत्र

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