राशि के बावजूद नहीं हो पाया ड्रेनेज का निर्माण

अररिया : अररिया शहर पर नजर डाली जाये, तो यहां समस्याओं का अंबार नजर आता है. शहर की सबसे बड़ी समस्या पानी निकासी को लेकर है. करोड़ों रुपये के नाले तो बन गये, लेकिन ड्रैनेज का अब तक पता नहीं है. नतीजतन हल्की बारिश में भी शहर में बाढ़ का नजारा दिखता है. नगर परिषद […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 26, 2017 6:48 AM

अररिया : अररिया शहर पर नजर डाली जाये, तो यहां समस्याओं का अंबार नजर आता है. शहर की सबसे बड़ी समस्या पानी निकासी को लेकर है. करोड़ों रुपये के नाले तो बन गये, लेकिन ड्रैनेज का अब तक पता नहीं है. नतीजतन हल्की बारिश में भी शहर में बाढ़ का नजारा दिखता है. नगर परिषद के पूर्णरूपेण घटन के 15 वर्षों के बाद आबादी बढ़ती गयी, सड़कें सिकुड़ती चली गयीं, सड़कों पर दुकानें सज गयीं. कहीं वाहन पार्किग बन गयी,

तो कहीं अवैध बस और ऑटो स्टैंड. नतीजा है कि विगत के वर्षों में शहरवासी प्रतिदिन जाम की समस्या से जूझ रहे हैं. पेयजल, शौचालय का जहां घोर अभाव है, वहीं यूरिनल का तो शहर में कहीं पता ही नहीं. विकास के दौर में शहर से गुजरनेवाली परमान नदी भी शहर के प्रदुषित कचरों के डाले जाने के कारण जहरीली बन गयी है. शहर में सुविधा के नाम पर न तो कोई पार्क है और न ही पर्याप्त पार्किंग स्थल. बस स्टैंड का तो निर्माण ही नहीं हो पाया है. बसंतपुर हाट पर सब्जी बाजार पुराने ढर्रे पर चल रहा है. फुटपाथी दुकानदारों की जिंदगी में उजाला नहीं आया.

बेतरतीब जीवनशैली घातक
आधुनिकता के साथ शहर में विकास हुआ है. सड़क के बीच बने एनएचआइ के नाले के कारण व्यवसायियों व लोगों के लिए खतरा की समस्या उत्पन्न कर रहा है. यह बेतरतीब तरीका कहीं से जायज नहीं है. बेटियों की सुरक्षा की चिंता हर शहरवासी को है. कोचिंग संस्थानों के आगे मंडरा रहे सड़क छाप रोमियों, सड़कों पर आम अवाम के साथ-साथ कभी कभी जबावेदह लोगों को भी परेशान कर रहे हैं. शहर में मनमाने ढंग से मकान बनवाये जा रहे हैं.
सड़क, नाली को नजरअंदाज किया जा रहा है. नगर पर्षद के पास इसके लिए कानून है लेकिन कभी-कभी नगरवासी भी अपने दायित्वों से मुकर रहे हैं. वार्ड संख्या आठ व नो में मुहल्ला तो बस गया हैं, लेकिन यहां कैसे पहुंचेंगे इस पर किसी जबावदेह लोगों की नजर नहीं है. स्वच्छ पेयजल, शहर का जाम वर्षों से मुद्दा रहा है. समस्याओं पर ध्यान देने के बजाय क्षेत्र विशेष पर जिम्मेवारों की नजर रहती है. ऐसे में विकसित शहर की कल्पना कहीं से संभव नहीं है. नगर पर्षद में एक ऐसी सरकार बने जो भविष्य को नजर में रखते हुए विकास की रेखा खींचे यह उम्मीद शहरवासियों ने नये नगर सरकार से लगा रखी है.
आउटलेट बने, जल निकासी की हो व्यवस्था
सड़कों से हटे अतिक्रमण, बनाया जाये वाहन का पड़ाव स्थल
प्रत्येक चौराहे के आसपास शौचालय और यूरिनल की हो व्यवस्था
सड़क एवं नालों का हो पक्कीकरण, प्रतिदिन हो सफाई, सूअरों की धमाचौकड़ी से मिले निजात
बस स्टैंड का हो निर्माण, बाजार का निर्माण हो अत्याधुनिक
शहरवासियों के प्रत्येक घर तक हो एप्रोच रोड
पार्क का हो निर्माण, बच्चों के खेलने के लिए लगाया जाये झूले व अन्य सामग्री
गंदी व महादलित बस्ती के उत्थान के लिए बने डीपीआर
गांव जैसे दिखने वाले वार्डों में शुमार वार्ड संख्या एक, आठ, नौ, 11 व 28 29 आदि वार्डों का बदले सूरत
शहर के सुंदरता के लिए बनाया जाये मास्टर प्लान
मुख्य पार्षद पद अनारक्षित होने पर बदला समीकरण
एक तरफ आधी आबादी के पास बहुमत, पुरुष पार्षदों की संख्या जादुई आंकड़ों से कोसों दूर
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