चातुर्मास आत्मशुद्धि का पर्व है: मुनि आनंद कुमार कालू

बुद्धिमान वहीं जो अवसर का लाभ उठाता है

By Prabhat Khabar News Desk | July 22, 2024 6:05 PM

अररिया. चातुर्मास आत्मशुद्धि का पर्व है. संस्कार का अवसर है. मनीषियों ने मन की साधना को परिपक्व व पुष्ट करने के लिए तन की तीन विधियां प्रतिपादित की है. आतप ग्रहण, शीत सहन व प्रतिसंलीनता. इन तीन विधियों के अनुष्ठान के लिए अलग-अलग ऋतुओं का विधान किया है. ग्रीष्म ऋतु आतप ग्रहण के लिए सबसे सही मानी गयी है. सूर्य की ऊर्जा का पृथ्वी से सर्वाधिक संपर्क गर्मी के मौसम में होता है. शरीर के अंदर विद्यमान पृथ्वी तत्व चार माह तक यदि सूर्य की सन्निधि में रहता है तो पृथ्वी तत्व में सघनता बढ़ती जाती है. उसमें स्थायित्व गुण का विकास होता है. शीत ऋतु में जलीय तत्व प्रचुर मात्रा में प्रकृति में होता है. यह समय ही शरीर में अधिकतम जल संचयन का है. अतः साधकों को निर्देश दिया है कि वे रात्रि में एकांत में शीत सहन करें. वर्षा ऋतु, प्रतिसंलीनता नामक तप के लिए सबसे सही समय है. यों तो ग्रीष्म व शरद ऋतु के भी चार-चार महीने होते हैं. पर चातुर्मास शब्द वर्षा के चार महीनों के लिए ही प्रयुक्त हुआ है. जैन शास्त्रों में इसे ””वर्षावास”” कहा हैं अर्थात वर्षा के समय में आवास करना है, यात्रा नहीं. इस तप में बहिर्यात्रा बंद व अंतर्यात्रा प्रारंभ हो जाती है. अंतर्यात्रा के प्रस्थान बिंदुओं व पड़ावों में चार तत्व मुख्य रूप से उभरते हैं. प्रथम है देह, द्वितीय है मन, तीसरा है कर्म व चौथा है आत्मा. पहले देह की गतिविधियां न्यूनतम स्तर पर लाई जाती हैं. इस तरह से कायोत्सर्ग सघता है व चेष्टा निरोध फलित होता है. इस सफलता के बाद मन की बुरी प्रवृत्तियों का निरीक्षण-परीक्षण किया जाता है. इस प्रक्रिया से मन के काषायिक स्तर का शुद्धिकरण हो जाता है, जोकि चातुर्मास की विशेष उपलब्धि होती है. इसके बाद बारी आती है कर्म शोधन की. इसके तहत पूर्व काल में बंधे कर्मों की प्रगाढ़ता को शिथिल किया जाता है. उन कर्मों की अशुभता को शुभता में परिवर्तित किया जाता है. इस तरह धीरे- धीरे आत्मा की अनंत शक्ति के अंशों को उभारा जाता है. मन की दृढ़ता के लिए दीर्घ तपस्या का अभ्यास चाहिए. मौन व ध्यान का अभ्यास तपस्या में गुणवत्ता भर देता है. जिनकी इस दिशा में पैठ नहीं है, वे स्वाध्याय तथा सेवा द्वारा तन-मन की निर्मलता का निर्माण करते हैं. गृहस्थ वर्ग सत्संग व प्रार्थनाओं में स्वयं को समर्पित करके ””चातुर्मास”” सार्थक बनाते हैं. चातुर्मास एक आत्म-अवलोकन का अवसर है. बुद्धिमान वहीं होता है, जो अवसर को पहचान लेता है व लाभ उठाता है. चातुर्मास के इस काल में आध्यात्मिक लाभ उठाने के लिए आप भी अपनी मनोभूमि तैयार कीजिए. चिंतन, मनन, उपदेश-श्रवण व श्रद्धा विश्वास को जीवन में उतारें.

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