प्रतिनिधि, सिकटी. मानव व प्रकृति के बीच एक दूसरे के सम्मान के साथ-साथ भरण पोषण का भी गहरा रिश्ता है. प्रकृति के साथ सभ्यता, संस्कृति के इस रिश्ते को महिलाओं ने संवारा है. प्रकृति प्रदत्त उपहारों के लिए आभार व्यक्त करने के उद्देश्य से उसकी पूजा करने की हमारी परंपरा ने इस रिश्ते को और अधिक प्रगाढ़ बनाया है. छठ पूजा, तुलसी विवाह, अक्षय नवमी व वट सावित्री पूजा के जरिए विशेष तौर पर महिलाओं ने इसमें अहम भूमिका निभायी है. जो साबित करता है पर्यावरण संरक्षण में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है. बरगद दीर्घायु व अमरत्व को प्रदान करने वाला वृक्ष है. महात्मा बुद्ध ने भी इसी पेड़ के नीचे ज्ञान पाया. वट सावित्री से लेकर पर्यावरण शुद्धि तक बरगद शिक्षिका रेणु कुमारी कहती है कि कोरोना काल में जिस तरह से आक्सीजन की कमी रही, उसे देखते हुए भी लोग पौधारोपण के लिए काफी सचेत हुए व पेड़ की महत्ता को जाना है. सुनीता देवी प्रभारी प्रधानाध्यापिका मध्य विद्यालय सोहदी ने बताया कि वट वृक्ष पर्यावरण संरक्षण के लिए अमूल्य संपदा है. यह ऑक्सीजन देने के साथ हमें ग्लोबल वार्मिंग, सूखा व बाढ़ जैसे कई आपदाओं से बचाता है. कोरोना काल में ऑक्सीजन की महत्ता को साबित कर दिया है. इसलिए मैं प्रत्येक वर्ष एक पौधा जरूर लगाती हूं व समाज के लोगों की भी हर मौके पर पौधा लगाने के लिए प्रेरित करती हूं. अमिता आनंद ने कहां कि वट वृक्ष का आध्यात्मिक महत्व भी है. यह दांपत्य जीवन में मधुरता लाता है. साथ ही इच्छित संतान भी प्रदान करता है. महिलाएं अपने पति के लंबी उम्र के लिए वट सावित्री व्रत करती हैं. इसकी छाया मन को शांत बनाए रखती है. इसलिए मैं बरगद पेड़ की सुरक्षा व संरक्षण की जिम्मेदारी लेती हूं. पेड़ हमें जीवन देते हैं, उसका संरक्षण भी हम सबों की जिम्मेदारी है. हेमा झा शिक्षिका मध्य विद्यालय ढेंगरी ने कहां कि बरगद सहित अन्य पेड़-पौधे क़ा संरक्षण समाज को एक नई दिशा प्रदान करेगा. इतना हीं नहीं पेड़ पौधे हमारे परिवार का हिस्सा होना चाहिए क्योंकि यह तन मन को ऊर्जा देने के साथ प्राणवायु देती है.
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