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शरीर के सभी अंगों को प्रभावित करता है थायराइड

अलग-अलग होते हैं रोग के लक्षण

अररिया. हाल के दिनों में थायराइड की समस्या तेजी से पांव पसार रहा है. ये एक वाहिका रहित ग्रंथी है. जो गला के सामने दोनों तरफ होता है. थायराइड ग्रंथी टी 3 व टी 4 थायरोक्सिन नामक हार्मोन का निर्माण करती है. जो कि पाचन तंत्र, हर्ट रेट, सांस, बॉडी टेंपरेचर को प्रभावित करता है. हमारे शरीर में हार्मोन का संतुलन बिगड़ जाता है. तो इसे थायराइड की समस्या के रूप में जाना जाता है. थायराइड संबंधी समस्याओं के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल 25 मई को विश्व थायराइड दिवस का आयोजन किया जाता है. इसका उद्देश्य मुख्यतः थायराइड ग्रंथी के महत्व व इसे प्रभावित करने वाली स्थितियों के प्रति लोगों को जागरूक करना है. मौके पर जन जागरूकता को लेकर स्वास्थ्य संस्थानों में जागरूकता संबंधी कई कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे.

मुख्यत: दो तरह के होते हैं थायराइड संबंधी विकार

सिविल सर्जन डॉ विधानचंद्र सिंह ने बताया कि थायराइड ग्रंथियां संपूर्ण शरीर के विकास को नियंत्रित करती है. थायराइड रोग मुख्यतः दो तरह का होता है. पहला हाइपर थायराइड व हाइपो थायराइड थायराइड ग्रंथियां थायरोक्सिन नामक हार्मोन का निर्माण करती है. हाइपरथायराइड की स्थिति में हॉर्मोन का सामान्य से अधिक होता है. वहीं हाइपो थायराइड की स्थिति होने पर थायरोक्सिन हॉर्मोन का निर्माण सामान्य से कम होता है. उक्त दोनों ही स्थितियों में रोग ग्रस्त व्यक्ति का मस्तिष्क से लेकर शरीर के सभी अंगों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है.

अलग-अलग होते हैं रोग के लक्षण

हाइपरथायराइड की स्थिति में मरीजों में चिड़चिड़ापन, ज्यादा पसीना आना, घबराहट, धड़कन का बढ़ना, अनिंद्रा, वजन कम होना, भूख ज्यादा लगना व मांसपेशियों के कमजोर होने की शिकायत होती है. वहीं हाइपो थायराइड की स्थिति में डिप्रेशन, पसीना कम आना, धड़कन की गति कम होना, बाल झड़ना, थकान, मांसपेशियों में दर्द, कोलेस्ट्रॉल बढ़ना, आंखों व चेहरे में सूजन, कब्ज, माहवारी में अनियमितता, कमजोर याददाश्त जैसे लक्षण दिखते हैं.

बचाव के लिए करें इन उपायों पर अमल

थायराइड संबंधी किसी तरह की समस्या का समुचित व सरल इलाज संभव है. इससे पीड़ित मरीज को तत्काल किसी अच्छे फिजिशियन की देखरेख में अपना इलाज कराना चाहिये. वैसे आसान इलाज संभव है. सिविल सर्जन डॉ विधानचंद्र सिंह के मुताबिक से बचाव के लिए बेहतर खानपान व स्वस्थ दिनचर्या से इसे काफी हद तक नियंत्रित रखा जा सकता है. भोजन में प्रोटीन, फाइबर व विटामिन से भरपूर फल, साग, सब्जियों का अधिक सेवन, आयोडीन युक्त आहार का सेवन, कम वसा वाले भोजन का चयन, दूध-दही सहित अधिक कैल्शियम व विटामिन डी युक्त आहार का सेवन इससे संबंधित किसी तरह की समस्या से बचाव के लिए जरूरी है.

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