चरपोखरी का तोताद्रि मठ ने गुरुकुल परंपरा को रखा है जीवंत

गुरु आश्रम में रहकर फ्री में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं 25 जिलों के 115 बच्चे

By Prabhat Khabar News Desk | November 12, 2024 10:01 PM

आनंद प्रकाश, चरपोखरी

जिले के चरपोखरी प्रखंड मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूरी पर स्थित सोनवर्षा गांव के तोताद्रि मठ की एक अनूठा कहानी है. इस मठ की स्थापना सैकड़ों वर्ष पूर्व हुई थी. आज से हजारों वर्ष पूर्व सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग का एक जमाना था, जब उस युग के लोग अपने बच्चों को शिक्षित बनाने के लिए गुरुजनों के आश्रम तथा मठ में भेजते थे, जहां नौनिहाल अवस्था से लेकर युवा अवस्था तक बच्चे गुरुजनों के आश्रम में रहकर उन्हें सेवा करते हुए शिक्षा ग्रहण करते थे. जबकि इस आधुनिक युग में यह परंपरा लगभग विलुप्त हो चुकी है, लेकिन इस सदियों पुरानी प्राचीन गुरुकुल परंपरा को जीवंत रखनेवाला सोनवर्षा का तोताद्रि मठ है. वह परंपरा जहां शिक्षा और संस्कार साधना के लिए कोई आर्थिक कीमत नहीं चुकानी पड़ती. यूरोपीय शिक्षा पद्धति की नकल करते हुए वैदिक शिक्षा प्रणाली का प्रयोग किया जाता है. उसी प्रकार इस मठ में बिहार समेत उत्तरप्रदेश के विभिन्न 25 जिलों के अलग-अलग जगहों के सैकड़ों छात्र गुरु आश्रम में रहकर आवासीय शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. इस दौरान उन्हें वेद ज्ञान के साथ-साथ सामाजिक स्तर की शिक्षा दी जाती है. मठ रंगनाथाचार्य जी महाराज के जिम्मे है.

आश्रम में शिक्षा प्राप्त करने के लिए क्या है प्रवेश की प्रक्रिया :

माता-पिता के इच्छानुसार अगर अपने बच्चे को मठ में भेजना चाहें, तो अपनी स्वेच्छा से भेज सकते हैं. बाकी छात्र की पूरी जिम्मेदारी मठ संभालता है. भरण-पोषण, कपड़ा, किताब ,कॉपी सहित अन्य सभी सामग्री निःशुल्क उपलब्ध करायी जाती है. फिलहाल अभी इस मठ में कुल 115 छात्र रहते हैं. जब तक छात्र चाहे मठ में रहकर पढ़ाई-लिखाई कर सकते हैं. बता दें कि इसी मठ से पढ़कर रोहतास जिला में चितौखर के रहनेवाले राघेवेंद्र प्रापनाचार्य उर्फ रोहित तिवारी सरकारी शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं. इस तरह से होती है फंडिंग : मठाधीश महाराज जी द्वारा किसी यज्ञ, पूजा, कर्मकांड कराने के एवज में जो भी दक्षिणा मिलता है व इसके अलावे गांव के लोग चंदा के माध्यम से सहयोग करते हैं.

यूपी और बिहार के हैं शिष्य :

तोताद्रि मठ में बिहार के जमुई, नालंदा, किशनगज, औरंगाबाद, जहानाबाद, गया, पटना समेत कुल 24 जिलों के छात्रों का समूह एक छत के नीचे रहकर सद्भावना के साथ पढ़ाई लिखाई करते हैं. बच्चे अनुशासन प्रेमी हैं. किसी तरह का दबाव नहीं रहता. वे अपनी इच्छा से हर काम में हाथ बंटाते हैं. इस आश्रम में रहकर बच्चे अनूठी मिसाल पेश कर रहे हैं. मठ में कुक नहीं है और न ही स्वीपर. सब मिलकर कुक व स्वीपर, प्यून का काम सहर्ष करते हैं.

पढ़ाई के साथ दिनचर्या में शामिल है योग खेलकूद और गौ सेवा :

आश्रम में दर्जनों छात्र बाल अवस्था में है, जो अपने माता-पिता से सैकड़ों किलोमीटर दूर रह कर पढ़ाई लिखाई कर रहे हैं. ऐसे में उनकी पूरी जिम्मेदारी मठाधीस के ऊपर होती है. जो एक अभिभावक के तर्ज पर सबकी लालन-पालन करते हैं. मठ में हर कार्य का रोस्टर बनाया गया है. नित सुबह सभी बच्चों को जगने के बाद योगा कराया जाता है. बागबानी में पौधे की सिंचाई, गौ का सेवा इसके बाद स्नान के उपरांत प्रार्थना के बाद पढ़ाई शुरू की जाती है.

फल से होता है ब्रेकफास्ट :

आमतौर पर बहुत कम ही ऐसे परिवार होंगे, जिनका ब्रेकफास्ट केवल फल से हो, लेकिन इस आश्रम के गुरुजन से लेकर शिष्य तक सुबह का नास्ता में अन्न नहीं फल से करते हैं. मठ का कोष का सहयोग गांव के लोग चंदा के माध्यम से करते हैं.

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