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कागजों में सिमट कर रहा गया अमृत सरोवर योजना के तहत चयनित देकुड़ा गांव का तालाब

24 लाख रुपये लागत से होना था तलाब का कायाकल्प, ठंडे बस्ते में पड़ी योजना

चरपोखरी.

प्रखंड क्षेत्र की मलौर पंचायत अंतर्गत देकुड़ा स्थित प्रसिद्ध धार्मिक स्थल कुल्जी महारानी के निकट 12 बीघे में फैले प्राचीन तालाब के बारे में पड़ताल की गयी. उक्त तलाब जीर्णोद्धार के अभाव में अपना अस्तित्व खोते जा रहा है. इस तालाब का निर्माण गांव बसने के साथ चार सौ वर्ष पूर्व ही हुआ था. फिलहाल यह तालाब अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. यह प्राचीन तालाब सरोवर से सरोकार योजना के तहत चयनित भी हुआ है, लेकिन एनओसी नहीं मिलने के कारण अभी तक इसका सौंदर्यीकरण नहीं हुआ. बता दें कि सरोवर से सरोकार योजना के तहत जब इस तालाब को चयनित किया गया था, तब ग्रामीणों में काफी खुशी का माहौल था. साल गुजर गया, परंतु अब तक इसमे कोई काम नहीं शुरू हुआ. उस वक्त ग्रामीणों के जहन में यह था कि अब तालाब सुंदर सरोवर के रूप में तब्दील हो जायेगा. बता दें कि तालाब में पूरे गांव के कचरा तथा गंदा पानी बहता है. स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि क्षेत्रफल के अनुसार देखा जाये, तो प्रखंड के सबसे बड़ा तालाब माना जाता है. आज से 50 वर्ष पूर्व 12 बीघे में फैला हुआ था. हालांकि अब भी तालाब का क्षेत्रफल 8-10 बीघे में है. देखरेख के अभाव के कारण तालाब कर सिमटता चला गया और इसमें जलीय पेड़ पौधे लग गये, जिससे इसमें मवेशी तक भी नहीं नहाते हैं. लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व इस तालाब के उत्तर दिशा के तिहाई हिस्से में स्थानीय सांसद आरके सिंह द्वारा 7,59600 रुपये की लागत की एक छोटा सा छठ घाट बनाया गया था, जो धसने लगा है. जीर्णोद्धार के अभाव में आज यह तालाब किसी के लिए उपयोगी नहीं रहा.

देखभाल के अभाव में दम तोड़ रहे प्राचीन तलाब : देखभाल के अभाव में अधिकांश तालाब अपने मूल स्वरूप को खो चुके है इसी में चरपोखरी के देकुड़ा का भी तालाब शामिल है. इस तालाब में बारिश का पानी एकत्रित करने की संभावना भी क्षीण हो चुकी है.अगर इसे अमृत सरोवर के तहत सौंदर्यकरण होता तो न केवल बारिश के पानी को संरक्षित किया जा सकता, बल्कि लुप्त होती अपनी विरासत को संजोए रखने में भी मदद मिलती. जल संरक्षण होने से क्षेत्र में घटते जलस्तर की समस्या को रोकने में भी काफी हद तक मदद मिलता.

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