आरा. व्यवस्था सुधारने को लेकर सरकार के माध्यम से सदर अस्पताल में भले ही प्रयास किये जा रहे हों. फिर भी स्थानीय प्रबंधन के कारण परिणाम टॉय -टॉय फिस साबित हो रहा है. मरीजों को कोई सहारा नहीं मिल रहा है. बेसहारा मरीजों के पास भाग्य को कोसने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता है. अस्पताल प्रबंधन अपनी कार्यशैली से यही संदेश देता है कि सुधरना हमारी संस्कृति नहीं है. डॉक्टर की देखभाल, नर्सिंग की बेहतर सुविधा व दवाओं की उपलब्धता के अलावे मरीजों के स्वास्थ्य लाभ के लिए जिन सुविधाओं की आवश्यकता होती है, वह भी सदर अस्पताल में मरीजों को नसीब नहीं है.
नहीं मिलती निर्धारित रंग की बेडशीट
: मरीजों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए अच्छी नर्सिंग, डॉक्टर की नियमित देखभाल काफी अहम पहलू है. इसके साथ सफाई भी महत्वपूर्ण पहलू है. इसे देखते हुए सरकार ने सभी मरीजों के बेड पर प्रतिदिन साफ किया हुआ बेडशीट देने का निर्णय लिया था. इसमें गड़बड़ी नहीं हो, इसके लिए दिन के अनुसार रंग भी निर्धारित किया था, ताकि मरीजों को प्रतिदिन रंग के अनुसार साफ बेडशीट मिल सके, पर जमीनी हकीकत कुछ और ही है. सदर अस्पताल में दिन के अनुसार बदले हुए रंग के बेडशीट की बात कौन करे, कई बेड पर तो मरीजों को बेडशीट भी नहीं दी जा रही है. वहीं अस्पताल प्रबंधन की मनमानी देखने को मिल रहा है.
समय से पहले ही बंद हो जाता है निबंधन काउंटर : सदर अस्पताल में निबंधन के बाद मरीजों को देखने की व्यवस्था है, पर निबंधन काउंटर समय से पहले ही बंद हो जाने के कारण मरीजों को काफी कठिनाई होती है. दूसरी पाली में काउंटर खुलने तक मरीजों को निबंधन के लिए इंतजार करना पड़ता है. इस क्रम में उनका काफी समय बर्बाद हो जाता है. फिर भी अस्पताल प्रबंधन को इससे लेना-देना नहीं है. इतना ही नहीं निबंधन काउंटर पर समय-सारणी भी नहीं लिखा हुआ है, जो नियमानुसार अत्यावश्यक होता है. मरीजों के साथ लगातार धोखाधड़ी की जा रही है.गंदगी से परेशान हैं मरीज :
मरीजों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए सफाई व शुद्ध वातावरण अहम पहलू है. इसके बावजूद अस्पताल में गंदगी का साम्राज्य है. शौचालय गंदगी से भरे पड़े हैं. परिसर में भी गंदगी पसरी रहती है. बर्न वार्ड में नहीं है एसी व परदा : सदर अस्पताल के बर्न वार्ड में ना तो एसी है, ना ही पर्दा लगाया गया है. बेड पर बेडशीट भी नहीं दी जा रही है. जबकि बर्न वार्ड में मरीजों की सुविधा के लिए एसी का होना अति आवश्यक है. वहीं, पर्दा का भी होना अति आवश्यक है. बर्न के पेशेंट किस स्थिति में रहेंगे. इसमें महिला-पुरुष दोनों होते हैं. यदि पर्दा नहीं रहा तो प्राइवेसी का कोई अर्थ नहीं रह जायेगा. निर्धारित मात्रा में नहीं दिया जा रहा भोजन : भोजन के लिए भी सरकार द्वारा मेनू निर्धारित कर दिया गया है, ताकि मरीजों को पौष्टिक आहार मिले. उनके स्वास्थ्य में अधिक सुधार की संभावना बने. जबकि सदर अस्पताल में मरीजों को मेनू के अनुसार निर्धारित मात्रा और निर्धारित गुणवत्ता के भोजन एवं जलपान नहीं दिये जा रहे हैंवर्षों से एक ही जगह जमे हैं कई चिकित्सक :
सदर अस्पताल में कई ऐसे चिकित्सक हैं, जो 10 से 15 वर्षों तक सदर अस्पताल में ही जमे हुए हैं. जुगाड़ टेक्नोलॉजी के कारण उनका स्थानांतरण नहीं हो पा रहा है. ऐसे में इन चिकित्सकों द्वारा निजी क्लिनिक तो चलाया ही जा रहा है, अधिक दिन होने के कारण गुटबाजी भी इनलोगों के द्वारा की जाती है. आइसीयू रहता है बंद, मरीजों को नहीं मिल रहा है लाभ : आइसीयू का उद्घाटन सदर अस्पताल में किया गया. महज दो-चार दिन चलने के बाद आइसीयू को बंद कर दिया गया. उसमें रखी मशीन जंग खा रही है. जनता की गाढ़ी कमाई से खरीदी गयी लाखों रुपये की मशीन की बर्बाद हो रही है. डॉक्टरों के साथ बैठते हैं अवैध लोग : सदर अस्पताल की कार्य संस्कृति ऐसी है कि अस्पताल परिसर में तो कई दलाल घूमते रहते हैं, जो मरीजों को बरगला कर अपने पसंदीदा डॉक्टर के निजी क्लिनिक में लेकर जाते हैं एवं मरीजों का आर्थिक शोषण करते हैं. इतना ही नहीं विभिन्न विभागों के डॉक्टरों के साथ आउटडोर के उनके चेंबर में दलाल बैठे रहते हैं एवं अपना धंधा चलाते हैं.सीएस ने कहा, जांच कर होगी कार्रवाई
इसकी जांच की जायेगी तथा इस पर कार्रवाई की जायेगी. मरीजों को निर्धारित सुविधाएं दी जायेंगी. जांच के बाद यदि कोई दोषी पाया जाता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जायेगी. अस्पताल प्रशासन द्वारा मानक के अनुसार सभी सुविधाएं दी जाती हैं.
डॉ इला मिश्रा, सीएस, सदर अस्पतालडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है