दुग्ध उत्पादन को नयी ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए कृषकों को दिया गया प्रशिक्षण
राष्ट्रीय पशुधन मिशन के तहत कृषक उत्पादक संगठन पर आधारित दिया गया प्रशिक्षण
आरा. जिले में दुग्ध उत्पादन को नयी ऊंचाइयों तक ले जाना है. राष्ट्रीय बीज निगम कई प्रकार के नवीनतम चारों की किस्म को लेकर आया है. राष्ट्रीय पशुधन मिशन के तहत एकदिवसीय कृषक उत्पादक संगठन पर आधारित किसान प्रशिक्षण में किसानों को संबोधित करते हुए प्रक्षेत्र प्रबंधक ने उक्त बातें कहीं. कृषि विज्ञान केंद्र भोजपुर तथा राष्ट्रीय बीज निगम, पटना द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किसान प्रशिक्षण में प्रक्षेत्र प्रबंधक किसानों को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि इसमें चारे की महत्वपूर्ण भूमिका है. इसमें कुछ वार्षिक है और कुछ बहुवार्षिक. जैसे अनंत ज्वार की किस्म है, जिसे एक बार लगाने पर तीन सालों तक लगातार आप चारे की कटाई कर सकते हैं. प्रशिक्षण का आयोजन कृषि विज्ञान केंद्र के मुख्य सभागार में किया गया. कार्यक्रम का उद्घाटन संयुक्त रूप से जिला कृषि पदाधिकारी भोजपुर, शत्रुघ्न साहू वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष कृषि विज्ञान केंद्र, भोजपुर, डॉ पीके द्विवेदी, उत्पादन प्रभारी विजय कुमार तथा प्रक्षेत्र प्रबंधक संजीव कुमार, विपणन प्रभारी हंसराज कुशवाहा, राष्ट्रीय बीज निगम पटना, किसान प्रतिनिधि एवं कृषि वैज्ञानिक शशि भूषण कुमार शशि ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया. कृषि विज्ञान केंद्र भोजपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बीज एवं फसल उत्पादन में खेतों की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए सुझाव दिया कि सबसे पहले अपने खेतों को जानने का प्रयास करें. इसके लिए अपने मिट्टी की जांच करना आवश्यक है. केंद्रीय बिहार की मिट्टी कैल्शियम रहित है. अतः इनमें कैल्शियम आधारित उर्वरकों का प्रयोग अति आवश्यक है. खेतों में जैविक कार्बन की कमी के कारण उर्वरकों के प्रयोग करने के बाद भी फसल को संतुलित मात्रा में पोषण नहीं प्राप्त हो रहा है. अतः प्रति एकड़ दो टेलर सड़े हुए गोबर खाद, कंपोस्ट का प्रयोग करना आवश्यक है. साथ ही खेतों में एक क्विंटल सरसों की खली प्रयोग करने से फसल उत्पादन एवं गुणवत्ता में विशेष वृद्धि प्राप्त होगी. जलवायु अनुकूल कृषि कार्य करने की है आवश्यकता : उन्होंने कहा कि जलवायु अनुकूल कृषि कार्य को करना आज एक आवश्यकता हो गयी है. इसके लिए अपने खेतों में कम से कम 30 से 40 किलोग्राम पोटाश खाद खेत तैयारी में एवं चिलेटेड जिंक 250 ग्राम तथा 20% बोरोन का 250 ग्राम प्रति एकड़ फसल लगाने के 45 से 50 दिनों के बाद अलग-अलग पानी में घोलकर पुनः एक साथ मिलाकर खड़ी फसल में प्रयोग करना चाहिए. इनके प्रयोग से पर्याप्त परागन होने के कारण फलों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि प्राप्त की जा सकती है. जबकि जिला कृषि पदाधिकारी शत्रुघ्न साहू ने कहा कि राष्ट्रीय बीज निगम की विश्वसनीयता पूरे देश में है. देश में सबसे पहले बीज उत्पादन और विपणन कार्यक्रम संस्था के द्वारा ही शुरू हुआ. बाद में अन्य संस्थाएं भी इस कार्य को करने लगी. उन्होंने कहा कि जिले में संस्था का अपना एक निजी काउंटर होना चाहिए, जहां पर किसानों को बीज आसानी से उपलब्ध हो सके. बीज निगम के उत्पादन प्रभारी ने भविष्य की योजनाओं के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि अगर कोई बीज निगम से जुड़कर बीज उत्पादन का कार्यक्रम करना चाहते हैं, तो उन्हें मात्र 1000 रुपये शुल्क के एक स्टांप पेपर पर एक सहमति पत्र के साथ संस्था से जुड़ना होगा. बीज उत्पादन करनेवाले किसानों को सामान्य के बजाय कम मूल्य पर उच्च क्वालिटी के बीज उपलब्ध कराये जायेंगे. इसे बीज निगम के द्वारा क्रय कर लिया जायेगा, लेकिन इसके पूर्व इसमें तीन-चार बार कई स्तरों पर खेतों का निरीक्षण एवं फसलों की जांच भी की जायेगी. पशु प्रबंधन के बारे में जानकारी देते हुए केविके के वैज्ञानिक शशि भूषण कुमार शशि ने कहा कि हम आज विश्व में सर्वाधिक दूध उत्पादन कर रहे हैं, परंतु प्रति जानवर अगर हम दूध उत्पादन की बात करें, तो उसमें हमलोग अभी काफी पीछे हैं. विशेषकर दूध की गुणवत्ता की बात होती है, तब हम अंतरराष्ट्रीय मानकों पर अभी भी पीछे चल रहे हैं. विशेष तौर पर प्रोटीन कैरोटीन वसा एवं खनिज के मामले में हमारे दूध की क्वालिटी में और प्रयास करने की आवश्यकता है. हमें अपने जानवरों को सोयाबीन कपास की खली, गाजर एवं पर्याप्त मात्रा में हरा चारा निश्चित रूप से देना चाहिए.जिससे दूध की गुणवत्ता में व्यापक सुधार हो सके.
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