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अच्छी फसल के लिए संतुलित उर्वरक प्रबंधन पर ध्यान देने की जरूरत : कृषि वैज्ञानिक

कृषि विज्ञान केंद्र व इफको ने किया बिक्री केंद्र प्रभारी प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन

आरा.

कृषि विज्ञान केंद्र एवं इफको भोजपुर के संयुक्त तत्वावधान में बिक्री केंद्र प्रभारी प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया. उद्घाटन संयुक्त रूप से डॉ प्रवीण कुमार द्विवेदी हेड कृषि विज्ञान केंद्र, वाइपी सिंह उप महाप्रबंधक पटना, अजीत मिश्रा भारतीय बीज सहकारी लिमिटेड, कृषि वैज्ञानिक डॉ सच्चिदानंद सिंह एवं शशि भूषण कुमार शशि, शिशिर कुमार कनीय क्षेत्र प्रतिनिधि इफको ने दीप प्रज्वलित कर किया. कार्यक्रम को संबोधित करते कृषि वैज्ञानिक डॉ पीक के द्विवेदी ने कहा कि आज संतुलित उर्वरक प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है. क्योंकि हमारे यहां अधिकांश भोजन सामग्री की गुणवत्ता में कमी देखने को मिल रही है. उन्होंने सुझाव दिया कि अपने खेतों में हरी खाद, पोटाश, गंधक के अतिरिक्त सूक्ष्म पोषक जिंक बोरोन का प्रयोग मिट्टी जांच के आधार पर करना किसान सुनिश्चित करें. इससे पौधों में विकास भी अच्छा होगा. महाप्रबंधक ने बताया कि देश में आजादी के समय की तुलना में बहुत ज्यादा उर्वरकों की मांग बढ़ी है. पूरे देश में 367 लाख टन यूरिया का उपयोग हो रहा है. जबकि 105 लाख टन डीएपी की खपत हो रही है. इसमें से 89 लाख टन यूरिया हम आयात कर रहे हैं और डीएपी भी लगभग 70% हम विदेशों पर भी निर्भर हैं. इसके अतिरिक्त पोटाश के लिए भी हमारे पास कोई विकल्प नहीं है. इसके लिए भी हम विदेशों पर ही निर्भर हैं. उर्वरकों के सही प्रयोग नहीं होने से जलवायु और भूमि में प्रदूषण हो रहा है और इसी के निदान के लिए नैनो डीएपी और नैनो यूरिया की खोज की गयी और आज देश में करोड़ों बोतल उर्वरकों का प्रयोग हुआ, जिससे निसंदेह पर्यावरण को बहुत ज्यादा फायदा हुआ. डीआर सदानंद सिंह ने जैविक खेती की चर्चा करते हुए कहा कि जिस प्रकार से हमारी भूमि का प्रदूषण मैं वृद्धि हो रही है है. इसके प्राकृतिक एवं जैविक खेती एक बेहतर विकल्प है. इसमें हम किसी भी प्रकार के रसायनों का प्रयोग नहीं करते हैं और ज्यादा से ज्यादा स्थानीय रूप में प्राकृतिक संसाधनों जैसे गोबर गोमूत्र बेसन गुड के अतिरिक्त वनस्पति पौधों से प्राप्त रस का प्रयोग कर हम अपनी खेती को आगे बढ़ाते हैं. इसमें मुख्य रूप से सूक्ष्मजीव की संख्या बढ़ाना उद्देश्य होता है. जिनका संतुलन होने से खेती बेहतर होती चली जाती है. शशि भूषण कुमार शशि ने जलवायु अनुकूल कृषि पर चर्चा करते हुए कहा कि आज जल संरक्षण एक चुनौती है और इसके लिए हमें शून्य जूता यंत्र के अतिरिक्त मेड़ों पर अपनी फसलों को लगाने का कार्य करना होगा. मेड पर फसल लगाने से फसल की उत्पादन में 15 से 25% तक वृद्धि देखने को मिली है. अंजनी मिश्रा ने जानकारी दी कि भारत बीज के नाम से आने वाले समय में सहकारिता के माध्यम से बीजों का उत्पादन विपणन एवं उनके गुणवत्ता नियंत्रण पर विशेष ध्यान देने का प्रावधान किया जा रहा है. इसका मूल उद्देश्य गुणवत्ता युक्त बीजों के साथ ही औसत कीमत पर किसानों के मध्य बीज उपलब्ध कराना है. क्योंकि अच्छी गुणवत्ता वाले निजी कंपनियों के बीज बहुत ज्यादा महंगी हैं जो कई बार किसानों के लिए खरीदना एक चुनौती है. अंत में कार्यक्रम के समापन के अवसर पर शिशिर कुमार ने सभी को उनके बहुमूल्य योगदान के लिए धन्यवाद दिया.

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