शहर में पनशाला नहीं, भीषण गर्मी में प्यास से परेशान हो रहे आम लोग

प्रशासन, सामाजिक एवं स्वयंसेवी संगठन आम लोगों की सुविधा के लिए सजग नहीं

By Prabhat Khabar News Desk | May 5, 2024 10:12 PM

आरा. भीषण गर्मी के बावजूद शहर में पनशाला की भारी कमी है, जिसके कारण लोगों को या तो बोतल बंद पानी खरीद कर पीना पड़ रहा है या फिर किसी चाय-नाश्ता की दुकानों की ओर रुख करना पड़ रहा है. जबकि गरीब तबके के लोगों को पीने के पानी को लेकर काफी परेशानी हो रही है. इस भीषण गर्मी में दो कदम चलते ही गला सूख रहा है पर नगर में एक दो पनशालाएं हैं, जो खुद प्यासी हैं. निजी तौर पर भी पनशाला की व्यवस्था नगर में एक या दो जगह ही है. इसके ऊपर ना तो प्रशासन और ना ही तथा कथित सामाजिक एवं स्वयंसेवी संगठन पहल कर रहे हैं. 3.50 लाख से अधिक है आरा नगर की जनसंख्या : आरा नगर की स्थायी जनसंख्या 3.50 लाख से अधिक है. इसके बाद प्रतिदिन नगर में 40000 से अधिक लोग जिले के ग्रामीण क्षेत्रों से व अन्य जगहों से पहुंचते हैं. ऐसे लोगों के लिए एकमात्र सहारा होटल या फिर दुकानों में बिकने वाले पानी बोतल ही हैं. पर यह उनके लिए ही संभव है ,जो आर्थिक रूप से सक्षम है. ऐसे में गरीब अपना काम कैसे कर पायेंगे. मजदूरी करनेवाले गरीबों को भी काफी परेशानी हो रही है. लोगों को याद आ रही अपनी संस्कृति एवं परंपराएं : इस भीषण गर्मी में पीने के लिए पानी की स्थिति को देखते हुए अपनी संस्कृति एवं परंपराएं याद आ रही हैं. जब लोग परोपकार के लिए एवं लोगों की सुविधा के लिए तत्पर रहते थे. हर जगह पनशाला की व्यवस्था करते थे. अवधपुरी मुहल्ले के 80 वर्षीय श्याम कुमार ने बताया कि पनशाला पर गुड़ ,चने आदि की भी व्यवस्था करते थे. किसी भी राहगीर को या गरीब को पानी संकट से नहीं जूझना पड़े, लू से उनके जीवन खतरा नहीं उत्पन्न हो सके. ऐसी व्यवस्था करना हमारे समाज की परंपरा थी. संस्कृति थी, लेकिन आधुनिकता के नाम पर अब सबकुछ खत्म हो रहा. महज तीन ही हैं स्थायी पनशाला : इतनी बड़ी जनसंख्या के बीच पूरे नगर में महज तीन ही स्थायी पनशाला हैं. एक समाहरणालय के पास महावीर मंदिर के प्रांगण में, तो दूसरा शीश महल चौक के पास बनी दोनों पनशाला, जो आज स्वयं ही प्यासी हैं. वहीं तीसरे मैना सुंदर धर्मशाला के पास बने पनशाला में कचरा का साम्राज्य है. कहीं नल की टोटी नहीं है, तो कहीं कचरा पसरा हुआ है. ऐसे में इन पनशालाओं की उपयोगिता क्या अर्थ रह जाता है. शहरी क्षेत्र में दूर-दराज से पहुंचने वाले राहगीरों के समक्ष उत्पन्न होनेवाले पेयजल संकट की ओर किसी का ध्यान तक नहीं है. आम राहगीर प्यास बुझाने के लिए इधर-उधर भटक रहे हैं.

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