मुसीबत साबित हो रही है एमडीएम योजना

अरवल (सदर) : छह से 14 वर्ष के बच्चों को मुफ्त एवं सरकारी शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा कई तरह की कार्य योजना चलायी जा रही हैं. स्कूलों में पढ़नेवालों बच्चों को कुपोषण से बचाने एवं स्कूलों में शत–प्रतिशत उपस्थिति अनिवार्य कराने के उद्देश्य से सरकार द्वारा मिड–डे मील जैसी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 20, 2013 2:47 AM

अरवल (सदर) : छह से 14 वर्ष के बच्चों को मुफ्त एवं सरकारी शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा कई तरह की कार्य योजना चलायी जा रही हैं. स्कूलों में पढ़नेवालों बच्चों को कुपोषण से बचाने एवं स्कूलों में शतप्रतिशत उपस्थिति अनिवार्य कराने के उद्देश्य से सरकार द्वारा मिडडे मील जैसी अनोखी योजनाओं को चलायी जा रही है.

इस योजना को सुव्यवस्थित एवं सुचारु ढंग से चलाने में सरकार और शिक्षा विभाग को मुसीबत साबित हो रही है. जिले में कई ऐसे नवसृजित प्राथमिक विद्यालय है, जिसका अपना भवन उपलब्ध नहीं है. इन विद्यालयों में पढ़नेवाले बच्चों और पढ़ानेवालों शिक्षकों को खुले आसमान में पेड़ के नीचे या किसी सामुदायिक भवन या फिर सड़क के चार्ट के किनारे पढ़ना पड़ता है.

ऐसे स्थिति में पढ़ाई के साथसाथ इन बच्चों को गुणवतापूर्ण मध्याह्न् भोजन उपलब्ध कराना शिक्षकों को एक कड़ी अग्निपरीक्षा हो रही है. आये दिन विद्यालयों में मध्याह्न् भोजन खाने से बीमार पड़ रहे बच्चों को लेकर जगहजगह हंगामे सड़क जाम की घटनाएं घट रही हैं.

मध्याह्न् भोजन उपलब्ध कराने में शिक्षकों को इसके अलावे कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. जिले में शिक्षा समिति को गठन को लेकर अधिकतर विद्यालयों में खींचातानी को लेकर शिक्षा समिति की गठन करना शिक्षा विभाग के लिए काफी परेशानी का सबब बना हुआ है. जिले के अधिकतर विद्यालयों में तदर्थ कमेटी के द्वारा किसी तरह मध्याह्न् भोजन चलायी जा रही है.

इधर छपरा जिले में विषाक्त भोजन खाने से 23 बच्चों की हुई मौत के बाद सरकार ने भवनहीन विद्यालय में पढ़नेवाले बच्चों को दूसरे विद्यालयों में सामंजस्य करने की बात कही गयी है. लेकिन इस प्रक्रिया को लागू करना आसान काम नहीं है, क्योंकि वर्तमान में चल रहे विद्यालयों से दूसरे विद्यालयों में सामंजस्य करने पर छोटे बच्चों को अपने गांव से काफी दूर विद्यालय का सफर तय करना पड़ेगा.


* भोजन
है थाली नहीं

सरकार द्वारा सरकारी स्कूलों में चलायी जा रही मिडडे मील योजना के तहत लाखोंकरोड़ों रुपया खर्च किया जा रहा है लेकिन इन योजनाओं में एक नहीं कई तरह की खामियां देखने को मिल रहा है. विद्यालय में छात्रछात्राओं के मुताबिक थाली नहीं होने के कारण. बच्चों को भोजन करने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है. साथ ही शिक्षकों के लिए भी परेशानी का सबब बना हुआ है.

कुछ विद्यालयों के बच्चे अपने बस्ते के साथ थाली लेकर घर से जाते हैं. वहीं मध्यह्न् भोजन में मिलनेवाले चावल और सामग्री का गुणवता काफी घटिया होने के कारण बच्चे भोजन खाने से हिचकते हैं. नियमानुसार भोजन तैयार होने के बाद विद्यालय के शिक्षकों एवं कमेटी के सदस्यों और रसोइये को भोजन टेस्ट करना है लेकिन ऐसा शायद ही किसी विद्यालय में होता है. इन सारी कुव्यवस्थाओं के कारण मध्याह्न् भोजन को लेकर जगहजगह हंगामे की नौबत उत्पन्न हो रही है.

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