शंकर बिगहा हत्‍याकांड : फैसले के बाद गांव में पसरा है सन्नाटा

सरकार ने की थी नौकरी देने की घोषणा, मात्र एक को मिली चौकीदार की नौकरी कोर्ट से आये फैसले के बाद शंकर बिगहा गांव में मायूसी छायी है. कोर्ट के फैसले से पीड़ित परिवार दुखी हैं. शंकर बिगहा गांव की सुरक्षा आज भी एक चौकीदार के भरोसे है. बुधवार को भाकपा माले ने नगर में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 15, 2015 5:10 AM
सरकार ने की थी नौकरी देने की घोषणा, मात्र एक को मिली चौकीदार की नौकरी
कोर्ट से आये फैसले के बाद शंकर बिगहा गांव में मायूसी छायी है. कोर्ट के फैसले से पीड़ित परिवार दुखी हैं. शंकर बिगहा गांव की सुरक्षा आज भी एक चौकीदार के भरोसे है. बुधवार को भाकपा माले ने नगर में विरोध मार्च निकाला. भाकपा ने फैसले के खिलाफ सरकार से हाइकोर्ट में रिट याचिका दाखिल करने की मांग की है.
अरवल : 25 जनवरी, 1999 का दिन, देश के कोने-कोने में लोग गणतंत्र दिवस की 50वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर तैयारी में जुटे थे. उधर, सदर प्रखंड के शंकर विगहा गांव में लोग कीर्तन गाने के लिए एक दलान में एकत्रित हुए थे.
कौन जानता था कि इस स्थल पर मौत का तांडव होनेवाला है. लोग कुछ समझ पाते कि रणवीर सेना के हथियारबंद दस्ते ने कीर्तन मंडली को अपनी कैद में ले लिया.
लोगों पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाये जाने लगी. खून से सने परिजनों के शवों को देख कर महिला-पुरुषों ने चीत्कार करना शुरू कर दिया. गोलियों की आवाज व लोगों के चीत्कार से भयभीत लोग अपने घरों में दुबके रहे. इस घटना में 23 दलित परिवारों की हत्या कर दी गयी थी, जिसमें 11 पुरुष, 11 महिला एवं एक बच्च शामिल था. नरसंहार की घटना की खबर अहले सुबह 26 जनवरी, 1999 को सनसनी की तरह फैल गयी. घटना के बाद तमाम सरकारी महकमा व राजनीतिक दल के नेताओं का जमावड़ा लगा.
पीड़ित परिवार को सदैव सहायता पहुंचाने व न्याय दिलाने का भरोसा दिया गया. शंकर विगहा के पड़ोस के गांव परमपुरा के 21 लोगों को अभियुक्त बनाया गया. सरकार की ओर से पीड़ित परिवार को नौकरी देने की घोषणा की गयी. लेकिन, आज तक उक्त पीड़ित परिवार में से एक पीड़ित परिवार के सदस्य को अनुकंपा के आधार पर चौकीदार पद पर बहाल किया गया. अन्य पीड़ित परिवार के लोगों को 16 साल बाद भी नौकरी नहीं मिली.
13 जनवरी, 2015 को न्यायालय का फैसला आया. लेकिन, इस संदर्भ में पीड़ित परिवार के लोग किसी से कुछ प्रतिक्रिया देने में परहेज कर रहे हैं. फैसला आने के बाद पत्रकारों ने पीड़ित परिवार की पीड़ा जानने की कोशिश की. लेकिन, किसी के आने सूचना मिलते ही लोग गलियों से अपने घर की ओर रुख कर ले रहे हैं. गांव में प्रवेश करते ही लोगों की पीड़ा का एहसास होने लगता है.
चौकीदार के जिम्मे है सुरक्षा
शंकर बिगहा गांव की सुरक्षा आज भी एक चौकीदार के भरोसे है. सशंकित ग्रामीणों ने बताया कि न्यायालय का फैसला आने के बाद मंगलवार की शाम कुछ पुलिस कर्मी गांव में आये थे. लेकिन, कुछ देर रहने के बाद वापस चले गये.
आरोपितों के यहां काम कर रहे पीड़ित
अरवल : पीड़ित परिवार के लोगों को न्यायालय के फैसले से ना तो गम है ना ही खुशी. उनकी चाहत है कि आनेवाला कल रोजगार उन्मुखी हो. आज दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में लोग व्यस्त रहते हैं.
नरसंहार पीड़ित लोग आज भी आरोपित के गांव में पूर्व की भांति कृषि कार्य व अन्य कार्य के लिए मजदूरी कर रहे हैं. दोनों गांवों के बीच सामान्य रिश्ता कायम है. शंकर बिगहा गांव के अधिकांश लोग मजदूरी पर आधारित हैं. घटना के कुछ वर्षो के बाद ही लोग एक दूसरे मिलने-जुलने लगे थे.
इसके परिणाम स्वरूप आपसी रिश्तों में फिर से माधुर्य कायम होने लगी. परमपुरा गांव के किसानों के अधिकांश कृषि कार्य शंकर बिगहा के लोग ही करते हैं. इस संदर्भ में अशोक राजवंशी ने बताया कि न्यायालय द्वारा जो फैसला आया है, उसी पर संतोष करना है. न हमलोगों के पास पैसा है और ना ही पहुंच की हमलोग मुकदमा लड़ सकते हैं.
दुखित ने बताया कि न्यायालय से जो हुआ, उसी पर हम लोग संतोष करते हैं. घटना में घायल रमुना देवी ने बताया कि हत्या में शामिल लोगों को फांसी मिलनी चाहिए थी. इधर आरोपित के परिजनों ने बताया कि नरसंहार में हम लोगों को फंसाया गया था. कई महीनों तक जेल में भी रहना पड़ा. न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हैं. आज हम लोग सभी लोग मिल-जुल कर रहते हैं.
मरहम भी नहीं लगा सकी सरकारी घोषणा
अरवल : नरसंहार की पीड़ा ङोल चुकी शंकर बिगहा में 16 साल बीत चुके हैं. लेकिन सरकारी घोषणाएं आज तक धरातल पर नहीं उतरी. अपनों के खोने जख्म पर सरकारी घोषणाएं मरहम का भी काम नहीं कर सकी. आज भी गांव प्राथमिक विद्यालय एवं पहुंच पथ की हालत खस्ता है.
अभी तक पीड़ित परिवार को घोषणा के अनुरूप नौकरी नहीं मिली. इससे पीड़ित परिवारों में गुस्सा भी है. घटना में मारे गये भीखन पासवान के पुत्र अरविंद पासवान को चौकीदार के पद पर बहाल किया गया. इस संदर्भ में पीड़ित परिवार के सुरेंद्र प्रसाद ने बताया कि सरकार ने घोषणा तो की पर नौकरी नहीं दी. इस संदर्भ में अनेकों बार स्थानीय प्रशासन से गुहार भी लगायी.
लेकिन बार-बार यही कहा गया कि आप लोगों का कागजात देखा जा रहा है. योग्य व्यक्ति को नौकरी दी जायेगी. उन्होंने कहा कि प्राथमिक विद्यालय का भवन तो बना, लेकिन वह भी दयनीय अवस्था में है. गांव के बच्चे रूप सागर बिगहा एवं धोबी बिगहा में पढ़ने जाते हैं. पहुंच पथ का भी हाल खस्ता है. लोगों को पैदल चलने में भी परेशानी होती है.
फैसले के खिलाफ हाइकोर्ट में जाये सरकार
जहानाबाद (सदर) : भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के राम प्रसाद पासवान, सूर्यकांत सिंह, दिनेश प्रसाद ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति जारी कर स्थानीय व्यवहार न्यायालय द्वारा शंकर बिगहा नरसंहार में दिये गये फैसले के खिलाफ सरकार से हाइकोर्ट में रिट याचिका दाखिल करने की मांग की है.
नेताओं ने कहा कि उक्त फैसले के खिलाफ सीपीआइ (एम), बिहार राज्य किसान सभा, बिहार प्रांतीय खेतिहर मजदूर यूनियन, भारत की जनवादी नौजवान सभा, सीटू समेत सभी वामपंथी पार्टियों ने 16 जनवरी को बिहार बंद का एलान किया है.
न्यायालय के फैसले को सच्चई की जीत बतायी
अरवल : शंकर बिगहा नरसंहार के फैसले आने के बाद तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं मिल रही है. आरोपित पक्ष के लोगों ने न्यायालय के फैसले को उचित करार देते हुए कहा कि देर से ही सही मगर सत्य की जीत हुई. थोड़ी परेशानी जरूर हुई पर कोर्ट ने न्याय किया. परमपुरा निवासी भगवान शर्मा, अशोक शर्मा, अमरेंद्र शर्मा, कौशल किशोर शर्मा एवं बूटन शर्मा ने कहा कि न्याय की प्रक्रिया के प्रति हमलोगों को पूरा भरोसा था. न्याय मिलने के बाद भरोसा सच्चई में बदल गयी.
मामले में फंसे लोग एक षड्यंत्र के शिकार हुए थे. घटना के बाद गांव के लोगों के लाइसेंसी हथियार जांच के लिए ले जाया गया था. लेकिन, आज तक वापस नहीं किया गया. इन लोगों ने प्रशासन से मांग की है कि जब्त हथियार शीघ्र मुक्त कर दिया जाय ताकि अपनी सुरक्षा खुद कर सकें. असुरक्षा को देखते हुए शंकर बिगहा एवं परमपुरा गांव में पुलिस की तैनाती की भी मांग की गयी है.

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