न हाजत, न मालखाना वंशी ओपी बना थाना

ग्रामीणों की सुरक्षा के बजाय खुद की सुरक्षा के लिए चिंतित है थाना करपी (अरवल) : न हाजत न मालखाना, वंशी ओपी बना थाना. एसपी मानवजीत सिंह ने वंशी ओपी को 29 जनवरी को थाने का दर्जा दिलाया. चारों ओर से नदी नालों से घिरा एवं सड़क विहीन क्षेत्र होने के कारण क्षेत्र में बढ़ते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 13, 2015 8:36 AM

ग्रामीणों की सुरक्षा के बजाय खुद की सुरक्षा के लिए चिंतित है थाना

करपी (अरवल) : न हाजत न मालखाना, वंशी ओपी बना थाना. एसपी मानवजीत सिंह ने वंशी ओपी को 29 जनवरी को थाने का दर्जा दिलाया. चारों ओर से नदी नालों से घिरा एवं सड़क विहीन क्षेत्र होने के कारण क्षेत्र में बढ़ते अपराध को देखते हुए वर्ष 1981 में वंशी में उपस्वास्थ्य केंद्र के छोटे कमरों में पुलिस पिकेट स्थापित की गयी थी. पुलिस पिकेट की स्थापना के 13 वर्ष बाद 1994 में इसे ओपी का दर्जा दिया गया था.

इसके बाद भी आपराधिक घटनाओं में कोई खास कमी नहीं आयी. ओपी बनने के बाद सेनारी समेत विभिन्न गांवों में दर्जनों हत्याओं के अतिरिक्त ओपी से महज चार-पांच किलोमीटर की दूरी पर औरंगाबाद जिले के मियांपुर में भी नरसंहार की घटना घटी. सड़क विहीन होने के कारण पुलिस को गश्ती करने में भी काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था. वंशी ओपी खुद की सुरक्षा के लिए ज्यादा चिंतित थी. नक्सल प्रभावित जगह होने के कारण क्षेत्र में अक्सर हिंसात्मक घटनाएं हुआ करती थीं. इस स्थिति से निबटने के लिए एसपी मानवजीत सिंह ने अपने प्रयास से ओपी को थाने में परिणत करा दिया, जिसके लिए क्षेत्र की जनता इन्हें बधाई के पात्र मानती है.

परंतु पदस्थापित जवानों के रहने, सोने के साथ मूलभुत सुविधा शौचालय तक का अभाव है. इन्हें अपनी सुरक्षा से ज्यादा असलहों की चिंता रहती है. हमेशा खौफ के साये में रहना पड़ता है कि कहीं नक्सली असलहों के लिए ही इन पर हमला न कर दे.

थाने की विवशता है कि गिरफ्तार कैदियों व जब्त सामानों को भी अपने पास नहीं रख सकता. इसके लिए थाने को करपी थाने की सहायता लेनी पड़ती है. हालांकि हाल के वर्षो में लगभग सभी गांवों को पुल-पुलियों और सड़कों से जोड़ दिया गया है, जिससे गश्ती में आ रही परेशानियों से बहुत राहत भी मिली है, लेकिन वंशी ओपी को अपना भवन आज तक नसीब नहीं हुआ. फिलहाल सामुदायिक भवन के एक कमरे और बरामदे में ओपी का संचालन होता है.

यहां तीन एसआइ, दो दारोगा व 20 पुलिसकर्मी कार्यरत हैं. इनके लिए शौचालय की भी व्यवस्था नहीं है. गिरफ्तार अपराधियों की सुरक्षा को देखते हुए करपी थाने में रखना पड़ता है. हालांकि ग्रामीणों द्वारा थाने के भवन के लिए जमीन भी उपलब्ध करा दी गयी है, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के कारण आज तक भवन का निर्माण नहीं हो सका.

Next Article

Exit mobile version