अरवल ग्रामीण : अंगरेजी हुकूमत के दौरान स्थापित गांधी पुस्तकालय विगत कई वर्षों से बदहाल है. कई सरकारें आयी और गयी फिर भी पुस्तकालय की स्थिति यथावत बनी है. इस पुस्तकालय का भवन काफी जर्जर हो गया है. इससे प्राचीन ग्रंथों व पुस्तकों के नष्ट होने की आशंका बनी रहती है. मालूम हो कि जियालाल ठाकुर द्वारा 5 अक्तूबर 1935 को पुस्तकालय की स्थापना की गयी थी. इसके स्थापना के बाद से यह पुस्तकालय क्षेत्र का केंद्र बिंदु बन गया और
दिनो दिन इसके सहयोग में लोग हाथ बंटाने लगे.
महात्मा गांधी के मृत्यु के बाद इसका नाम गांधी पुस्तकालय रखा गया. हालांकि इस पुस्तकालय में राजेंद्र प्रसाद, विनोबा भावे, श्री बाबू के अलावा कई नामचीन व्यक्ति यहां आये. जिसका जिक्र 85 वर्षीय शिक्षक दुधेश्वर सिंह ने किया. उन्होंने बताया की इस पुस्तकालय में सामवेद, कबीर सहित अन्य तरह के दुर्लभ एवं प्राचीन पुस्तकें हैं. 1942 में यहा रेडियाे भी था जिसे सुनने के लिए बहुत दूर -दूर से लोग आते थे. इस पुस्तकालय के तत्वावधान में कई प्रकार के खेलों का आयोजन भी कराया जाता था. हाल में डाॅ अखिलेश प्रसाद एवं मुन्द्रिका प्रसाद सिंह के द्वारा पुस्तकालय के विकास के लिए सहायता भी की गयी.वर्तमान समय में भवन के निर्माण के लिए भूमि उपलब्ध है. लेकिन प्रशासन द्वारा नव निर्माण के लिए कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है.