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मगध क्षेत्र में सूर्य उपासना का सार्थक संकेत देता पंचतीर्थ

कुर्था अरवल : स्थानीय प्रखंड क्षेत्र से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित पंचतीर्थ घाम एक ओर जहां महाभारत काल की याद को ताजा करता है, वहीं दूसरी ओर यहां का पावन सूर्यमंदिर मगध क्षेत्र के सूर्योपासना की महता को सार्थक संकेत प्रस्तुत करता है. श्मशान भूमि के निकट पुनपुन नदी के सुरम्य पावन […]

कुर्था अरवल : स्थानीय प्रखंड क्षेत्र से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित पंचतीर्थ घाम एक ओर जहां महाभारत काल की याद को ताजा करता है, वहीं दूसरी ओर यहां का पावन सूर्यमंदिर मगध क्षेत्र के सूर्योपासना की महता को सार्थक संकेत प्रस्तुत करता है. श्मशान भूमि के निकट पुनपुन नदी के सुरम्य पावन तट पर निर्मित भगवान आशुतोष का प्राचीन मंदिर इस स्थल की गौरव गाथा का मंगलगान करता प्रतीत होता है.

धार्मिक दृष्टि से अथवा पौराणिक दृष्टिकोण से यहां की स्मरणीय धरती किसी भी सहृदय को सहजता के साथ अपनी ओर आकृष्ट करता है. एक ओर पंचतीर्थ क्षेत्र पिंडदान का प्रवेश द्वार है, तो दूसरी ओर सूर्य उपासना का सुपावन केंद्र. इसका ऐतिहासिक पृष्ठभूमि अति प्राचिन होते हुए भी राजकीय अथवा अन्य कई कारणों से उपेक्षित पड़ा है. यह तीर्थस्थल किंवदंती के अनुसार त्रेता युग में भगवान श्री राम ने अपनी पत्नी सीता एवं अनुजों के साथ पितृश्राद्ध के लिए गया धाम जाते समय रात्रि विश्राम इसी स्थान पर किया था.
इसके बाद से ही यह तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त कर चला आ रहा है. इसके अतिरिक्त द्वापर युग में महाभारत युद्ध के समय मारे गये अपने पितरों के निमित श्राद्ध संपन्न कराने के लिए युधिष्ठिर अपने भाइयों तथा द्रौपदी के साथ गया धाम जाने के क्रम में इस स्थान पर रात्रि विश्राम किया था और प्रथम पिंडदान की क्रिया संपन्न की गयी थी. उक्त स्थल पर भव्य सूर्यमंदिर का निर्माण 15 जून 1975 को हुआ था और तब से उक्त स्थल पर कार्तिक शुक्ल षष्ठी और चैत शुक्ल षष्ठी के दिन लोग दूर दराज से आकर व्रतधारी पुनपुन नदी की बहती धारा में भगवान भास्कर को अर्घ देते हैं. इस पर्व के दौरान हजारों की संख्या में भीड़ उमड़ती है तथा चार दिवसीय भव्य मेले का आयोजन होता है.
सन 1975 में निर्मित हुआ था यह सूर्यमंदिर
वर्षों पूर्व से होती है यहां छठपूजा

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