गुरु की हत्या कर अतीक अहमद (atiq ahmed) प्रयागराज की गलियों में चार दशकों तक दहशत का साम्राज्य कायम किया था. शनिवार की रात उसकी हत्या के साथ उसका दहशत और जुर्म अतीत की कहानी बन गई. संयोग ऐसा रहा कि अतीक की जिस जगह पर हत्या हुई यह वही जगह थी जहां पर उसकी महफिले सजा करती थी. आस पास के लोग इसमें उपस्थित होकर उसकी दहशत की कहानियों पर चर्चा किया करते थे. लेकिन इस घटना के बाद अतीक अब लोगों के लिए ‘अतीत’ बन गया. इस घटना के बाद यूपी में सियासी हलचलें तेज हो गई है. सरकार विपक्ष के निशाने पर है. लेकिन, शनिवार की रात हुए हत्याकांड में अतीक की मौत साथ के आतंकवाद और जुर्म की कहानी भी बंद हो गई. 34 साल पहले अतीक ने अपने गुरु चांद बाबा की हत्या कर जो कहानी शुरू की थी उसका अंत भी उसी अंदाम में शनिवार को हुआ.
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अतीक अहमद ने करीब चार दशकों तक प्रयागराज ही नहीं पूरे यूपी में राजनीति का चोला ओढ़ कर अपराध का साम्राज्य चलाया. अतीक ने राजनीति में अपने इसी साम्राज्य को आगे बढ़ाने के लिए एंट्री भी किया था. दरअसल, 1986 में अतीक एक मामले में गिरफ्तार हो गया था. लेकिन, दिल्ली से अपने राजनैतिक कनेक्शन का लाभ लेकर वह रिहा हो गया. यह वही समय था जब उसके मन में राजनीति में एंट्री की जिज्ञासा जागी. 1989 में जब उसने राजनीति में एंट्री मारी तो उसे अपने ही गुरु से चुनौती मिली. फिर क्या था उसने उन्हें अपने रास्ता से हटा दिया. अतीक को बदमाश चांद बाबा ने अपनी अंगुली पकड़कर अपराध की दुनिया में चलना सिखाया था.
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40 वर्षों तक अतीक ने प्रयागराज की गलियों पर अपना कब्जा करने के लिए कई लोगों की हत्या कर दी. कहा जाता है कि अपराध से उसका रिश्ता 17 वर्ष की उम्र से ही जुड़ गया था. वह जब नाबालिक था तो उस पर हत्या का आरोप लगे थे. लेकिन बाद में उसे रिहा कर दिया गया. इसके बाद से अतीक पर रोशनबाग इलाके के रहने वाले बदमाश चांद बाबा की कृपा थी. उनके संरक्षण में ही उसने अपना नया नेटवर्क तैयार कर लिया. प्रयागराज में वह अपने गुरु के समानांतर साम्राज्य कायम कर लिया था. यही कारण था कि वो अपने गुरु को सीधे चुनौती देना शुरु कर दिया था. वर्ष 1989 में तो अतीक ने अपने गुरु को सामने से चुनौती देने लगा था. अतीक को चांद बाबा से परेशानी होने पर उसने बीच सड़क पर हत्या कर दी थी. शनिवार को उसकी भी उसी अंदाज में हत्या कर दी गई. चांद बाबा की हत्या के बाद अतीक कभी पीछे पलट कर नहीं देखा. अतीक अब लोगों का भाईजान बन चुका था. लेकिन जिस रोशनबाग से अतीक ने अपराध की दुनियां में अपना सफर शुरू किया था उसी से मात्र 300 मीटर की दूरी पर वह अतीत बन गया और उसका आतंक हमेशा के लिए दफन हो गया.
वर्ष 1989 प्रयागराज की पश्चिमी सीट को लेकर अतीक की अपने गुरु चांद बाबा से खटपट शुरु हुई थी. चांद बाबा इस सीट से चुनाव लड़ने के लिए अपना नामांकन किया था. वो चाहते थे कि अतीक अपना नाम वापस ले ले. लेकिन अतीक इसके लिए तैयार नहीं था. उसने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अपना पर्चा दाखिल कर दिया था. फिर दोनों ने यहां से चुनाव लड़ा. लेकिन अतीत के रुतबे के आगे बाबा नहीं चले.अतीक चुनाव जीत गया. मतगणना के बाद गुरु चांद बाबा रोशनबाग की ढाल के पास बैठे थे तभी वहां पर पहुंचे कुछ लोगों ने बम और गोलीबारी शुरू कर दी जिसमें अतीक के गुरु चांद बाबा की मौत हो गई और इसका इल्जाम भी अतीत के सिर आया. चांद बाबा तो मारा गया. उनकी हत्या के बाद अतीक का इलाहाबाद ही नहीं, पूरे पूर्वांचल में अपना सिक्का चलने लगा. इसी का परिणाम था कि वर्ष 1991 और 1993 में भी अतीक निर्दलीय चुनाव जीता. फिर 1996 में सपा के टिकट पर विधायक बना. 1999 में अपना दल के टिकट पर प्रतापगढ़ से चुनाव लड़ा और हार गया. लेकिन, फिर 2002 में अपनी पुरानी इलाहाबाद पश्चिमी सीट से पांचवीं बार विधायक बना.