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सदर अस्पताल से बगैर इलाज कराये लौटे मरीज

कर्मचारियों ने ओपीडी में जड़ा ताला औरंगाबाद कार्यालय : बिहार राज्य अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ एवं अराजपत्रित कर्मचारी संघ गोपगुट आदि संगठनों के संयुक्त संघर्ष मंच के तत्वावधान में दो दिवसीय हड़ताल का असर औरंगाबाद के विभिन्न सरकारी संस्थानों में देखने को मिला़ हड़ताल का सबसे अधिक प्रभाव सदर अस्पताल औरंगाबाद मंे दिखा, हालांकि अन्य दिनों […]

कर्मचारियों ने ओपीडी में जड़ा ताला
औरंगाबाद कार्यालय : बिहार राज्य अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ एवं अराजपत्रित कर्मचारी संघ गोपगुट आदि संगठनों के संयुक्त संघर्ष मंच के तत्वावधान में दो दिवसीय हड़ताल का असर औरंगाबाद के विभिन्न सरकारी संस्थानों में देखने को मिला़ हड़ताल का सबसे अधिक प्रभाव सदर अस्पताल औरंगाबाद मंे दिखा, हालांकि अन्य दिनों की अपेक्षा मरीजों की संख्या कम थी़ लेकिन, इलाज कराने पहुंचनेवाले मरीजों की तादाद अच्छी खासी दिखी़ गुरुवार की सुबह अस्पताल प्रबंधन द्वारा ओपीडी की शुरुआत की गयी, लेकिन कुछ ही मिनट बाद अस्पताल के हड़ताली कर्मचारियों ने ओपीडी में ताला बंद कर दिया़ इसके बाद तो इमरजेंसी छोड कर सभी सेवाएं अचानक ठप हो गयीं.
सबसे अधिक परेशानी महिला मरीजो को हुई़ वैसे सदर अस्पताल में बुधवार की रात बेड की कमी होने के कारण कुछ मरीज के परिजनों ने हंगामा किया था, पर गुरुवार की सुबह लगभग सभी वार्ड खाली दिखाई पडे़ पता चला कि हड़ताल से सहमे मरीज अस्पताल छोड कर प्राइवेट अस्पतालों में इलाज के लिए चले गये़
सादे कागज पर मरीजों का हुआ इलाज : कर्मचारियों की हड़ताल का असर सदर अस्पताल में पूरी तरह दिखा़ यहां प्रतिदिन 800 से 900 के करीब मरीज इलाज कराने पूरे जिले से पहुंचते हैं़ ऐसे में ओपीडी की सेवा मरीजों के लिये कारगर साबित होती है़ गुरुवार को 300 से 400 के बीच मरीज पहुंचे, लेकिन सबका इलाज ओपीडी के बजाये इमरजेंसी वार्ड में किया गया़ वह भी सरकारी पुरजे पर नहीं, बल्कि सादे कागज पर मरीजों को इलाज के बाद निशुल्क दवा की सेवा नही मिली़
अस्पताल में दिखे, पर आराम फरमाते रहे कर्मचारी : सदर अस्पताल के हड़ताली कर्मी कहने को अस्पताल में रहे, पर इलाज में हाथ नही बंटाया़ कोई कूलर की हवा में सोया हुआ दिखाई पडा, तो किसी ने कुरसी पर ही अपनी नींद पूरी कर ली़ मरीज बाहर भटकते रहे पर उनके निंद पर कोई असर नहीं हुआ़ अस्पताल के उपाधीक्षक अपने कर्मियों से सहयोग करने की गुहार लगाते रहे, लेकिन उनकी बातों पर किसी ने ध्यान भी नहीं दिया़

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