जीवन के प्रति आस्था की मार्मिक कहानी है ”जिंदगी और जोंक”

कथाकार अमरकांत की कहानी पर परिचर्चा आयोजित औरंगाबाद कार्यालय : रविवार को स्थानीय आइएमए हॉल में अमरकांत की कहानी ‘जिंदगी और जोंक’ का पाठ किया गया और फिर उस पर बतकही हुई. डॉ सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह की अध्यक्षता में आयोजित बतकही में सबसे पहले धनंजय जयपुरी ने इस लंबी कहानी का पाठ किया. इसके बाद […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 15, 2017 10:42 AM
कथाकार अमरकांत की कहानी पर परिचर्चा आयोजित
औरंगाबाद कार्यालय : रविवार को स्थानीय आइएमए हॉल में अमरकांत की कहानी ‘जिंदगी और जोंक’ का पाठ किया गया और फिर उस पर बतकही हुई. डॉ सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह की अध्यक्षता में आयोजित बतकही में सबसे पहले धनंजय जयपुरी ने इस लंबी कहानी का पाठ किया.
इसके बाद चर्चा में हिस्सा लेते हुए डॉ सुरेंद्र प्रसाद मिश्र ने कहा कि यह जटिल यथार्थ की कहानी है, क्योंकि इस कहानी में साधारण कलेवर का असाधारण पात्र रजुआ अनिश्चय के भंवरजाल में फंस कर विचित्र मनःस्थिति में जीने को अभिशप्त है और मध्यवर्गीय समाज की पाशविकता उसका शोषण करने पर आमादा है.
डाॅ रामाशीष सिंह ने कहा कि इस कहानी के पात्र, पात्रों की मानसिकता और सामाजिक स्थिति की व्याप्ति वर्तमान समय तक है. डाॅ शिवपूजन प्रसाद सिंह ने कहा कि अमरकांत ने एक सामान्य पात्र को मुख्य पात्र बना कर दर्शाना चाहा है कि रजुआ जैसे लोग श्रम कर ही खाना चाहते हैं, पर समाज का चालाक वर्ग इसका निषेध करता है. डाॅ कुमार वीरेंद्र ने कहा कि प्रेमचंद की परंपरा को आगे बढ़ानेवाले कथाकारों में अमरकांत एक प्रमुख नाम हैं, जिन्होंने ‘दोपहर का भोजन’, ‘डिप्टी कलक्टरी’ और ‘जिंदगी और जोंक’ जैसी कालजयी कहानियां लिखीं.
अमरकांत ने ‘जिंदगी और जोंक’ के पात्र रजुआ को अमरत्व प्रदान किया है. प्रतिकूल परिस्थितियों में भी रजुआ का जीवन से चिपके रहने का मोह जीवन के प्रति उसकी आस्था की मर्मांतक पीड़ा की खुली दास्तान है. पशु के स्तर पर जीवन जीने की रजुआ की लाचारी समाज की व्यवस्था पर गहरा व्यंग्य है.
कहानी में दिखता है आम आदमी का संघर्ष : डाॅ रामाधार सिंह ने इस कहानी को आम आदमी के संघर्ष की कहानी बताया. डाॅ हनुमान राम ने इस कहानी को अपने निजी जीवन से जोड़ते हुए कहा कि ग्रामीण संस्कृति और ग्रामीण जीवन स्थितियों को चित्रित करने में यह कहानी सौ प्रतिशत सफल है.
रामकिशोर सिंह ने इसे सामाजिक यथार्थ की कहानी कहा, तो प्रमोद सिंह ने इसे सामयिक और प्रासंगिक करार दिया. इस कहानी में बरन की पत्नी जैसी औरतों का किरदार शोषणकारी है, वो तो लेखक है कि रजुआ जैसे बेबस की बीमारी का इलाज करा कर समाज को रास्ता दिखाने का काम करता है. डाॅ महेंद्र पांडेय ने कहा कि इस कहानी का रचाव कुछ ऐसा है कि यह तय कर पाना बड़ा मुश्किल है कि आदमी जोंक की तरह जिंदगी से चिपका है या जिंदगी जोंक बन कर आदमी को पी रही है. शिक्षक नारायण मिश्र ने कहा कि यह कहानी सामंती सोच के बरअक्स हाशिये के जीवन को केंद्र में रख कर तमाम प्रश्नों के जवाब मांगती है.
समाज के दो वर्गों के बीच संवाद व बहस पैदा करती है कहानी : अरुण कुमार मिश्र ने कहा कि जोंक तो समाज का वह वर्ग है, जो रजुआ जैसों की मजबूरी का फायदा उठाता है. पुरुषोत्तम पाठक ने कहा कि यह कहानी दो वर्गों की सक्रियता और निष्क्रियता के बीच संवाद और बहस पैदा करती है. सुरेश पांडेय ने कहा कि जीवन के दो स्तरों को अभिव्यक्त करनेवाली यह सशक्त कहानी है. अनिल कुमार सिंह ने कहा कि इस कहानी की पगली भी रजुआ की तरह सामाजिक उपेक्षा की शिकार है.
मनोज सिंह ने कहा कि रजुआ जैसों की बेबस लाचारी का जिम्मेवार यह समाज ही है. अर्जुन सिंह ने कहा कि यह कहानी परजीविता और स्वजीविता के बीच एक नई बहस को जन्म देती है. अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए डाॅ सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा कि समाज की गलत मानसिकता पर चोट करनेवाली यह कहानी गोपाल से रजुआ, रजुआ से रजुआ साला, फिर राजू भगत बनने की प्रक्रिया और सामाजिक सोच के स्तर को आईना दिखाती है.
इस अवसर पर सिनेश राही, दया शंकर तिवारी, मिथिलेश मधुकर, अनुज कुमार पाठक, कपिलदेव सिंह, शिवदेव पांडेय, धनंजय कुमार सिंह, देवाधार सिंह, देवदत्त मिश्र, हरि पाठक, पीयूष प्रकाश वैद्य, वैद्यनाथ सिंह, रमन सिन्हा, सुरेश पाठक, प्रभात बांधुलय सहित अन्य लोग बड़ी संख्या में उपस्थित थे.

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