औरंगाबाद : वोटरों की कतार ने साबित किया लोकतंत्र का पर्व उनके लिए खास
औरंगाबाद से लौटकर प्रमोद झा हार के चितौड़गढ़ कहे हाने वाले औरंगाबाद में वोटरों में गजब का उत्साह दिखा. मतदान केंद्रों पर अहले सुबह से ही लंबी कतारें लगी रहीं. इस क्षेत्र के अधिकतर नक्सली इलाकों में भी मतदाताओं ने वोट डाले. मतदाताओं में नक्सलियों का खौफ नहीं दिखा. औरंगाबाद में कांग्रेसी नेता निखिल कुमार […]
औरंगाबाद से लौटकर प्रमोद झा
हार के चितौड़गढ़ कहे हाने वाले औरंगाबाद में वोटरों में गजब का उत्साह दिखा. मतदान केंद्रों पर अहले सुबह से ही लंबी कतारें लगी रहीं. इस क्षेत्र के अधिकतर नक्सली इलाकों में भी मतदाताओं ने वोट डाले. मतदाताओं में नक्सलियों का खौफ नहीं दिखा. औरंगाबाद में कांग्रेसी नेता निखिल कुमार के मैदान में नहीं होने के बावजूद इस बार राजनीतिक मतलब था.
क्योंकि, यह उनकी परंपरागत सीट रही है. निखिल कुमार के पैतृक गांव पोईवां के मध्य विद्यालय स्थित मतदान केंद्र पर ग्रामीणों में वोट को लेकर सामान्य उत्साह दिखा. इस सीट पर एनडीए से भाजपा से सुशील कुमार सिंह और हम के उपेंद्र प्रसाद के बीच मुकाबला है.
वोटरों ने कहा कि केंद्र में जो भी सरकार बने, सूखे और नक्सल समस्या का हल करे. कहीं भी नक्सलियों के वोट बहिष्कार का असर नहीं दिखा. देव प्रखंड के बनुआ में वोटरों की कतार ने साबित कर दिया कि लोकतंत्र का पर्व उनके लिए खास है. शहरी क्षेत्र में जिला परिषद में बने आदर्श मतदान केंद्र पर वोटिंग शुरू होने के एक घंटा बाद लगभग दस प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने अपने वोट का इस्तेमाल कर लिया था.
महिला कर्मियों ने कराया मतदान सच्चिदानंद सिन्हा
कॉलेज में बने महिला
मतदान केंद्र संख्या 182 पर महिला मतदान कर्मियों ने मतदान संपन्न कराया. पीठासीन पदाधिकारी ज्योत्सना वर्मा के साथ प्रभावती कुमारी, शोभा
देवी, सरोज कुमारी और संगीता देवी यहां तैनात थीं. मतदान केंद्र पर सुरक्षा की जिम्मेदारी भी महिला सिपाहियों पर थी. दिव्यांगों के लिए मतदान केंद्रों पर ट्राइसाइकिल की व्यवस्था की गयी थी.
पत्नी संग डीएम ने डाला वोट
आदर्श मतदान केंद्र पर भाजपा प्रत्याशी सुशील कुमार सिंह ने अपने परिजनों के साथ वोट डाले. जिलाधिकारी राहुल रंजन महिवाल अपनी पत्नी खुशबू महिवाल के साथ मतदान किया. वहीं, औरंगाबाद शहर से लगभग छह किलोमीटर दूर पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार के गांव में शांति छायी थी. लेकिन, मतदान केंद्र पर यहां भी वोटरों की कतार दिखी. चुनाव में निखिल बाबू के नहीं होने से वोटर असहज महसूस कर रहे थे. निखिल बाबू के चाचा कौशलेंद्र प्रताप नारायण सिंह ने वोट डालने के बाद कहा कि 1971 से ही इलाके में चुनावी सक्रियता बढ़ गयी थी. वे खुद गांव के मुखिया रहकर प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.