छह साल में भी कोर्ट में चार्जशीट नहीं सौंप सकी नगर थाने की पुलिस

औरंगाबाद शहर : बैठक हो या कांडों की समीक्षा. एसपी हर मौके पर लंबित कांडों के निष्पादन पर जोर देते है. इससे संबंधित निर्देश भी देते हैं. लेकिन, तमाम कोशिशें व निर्देश निरर्थक साबित हो रहे हैं. थानों में सालों से मामले तस के तस पड़े हैं. अनुसंधान के नाम पर मामले लंबित पड़े हैं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 13, 2019 8:24 AM

औरंगाबाद शहर : बैठक हो या कांडों की समीक्षा. एसपी हर मौके पर लंबित कांडों के निष्पादन पर जोर देते है. इससे संबंधित निर्देश भी देते हैं. लेकिन, तमाम कोशिशें व निर्देश निरर्थक साबित हो रहे हैं. थानों में सालों से मामले तस के तस पड़े हैं. अनुसंधान के नाम पर मामले लंबित पड़े हैं और इससे जुड़ी फाइलें धूल फांक रही है.

एक ऐसा ही जालसाजी से जुड़ा मामला कांड संख्या 8/13 नगर थाना में दर्ज है. ताज्जुब तो यह है कि नगर थाने की पुलिस पिछले छह सालों में भी इस केस की चार्जशीट न्यायालय में नहीं सौंप सकी.
वैसे यह महज बानगी है. इस तरह के दर्जनों मामले लंबित हैं. इससे स्पष्ट है कि पुलिस अधिकारी अपने वरीय पदाधिकारियों के निर्देशों का कितना अनुपालन करते हैं. पूर्व में इस केस में एएसआई लक्ष्मीनारायण सुधांशु, सुभाष राय, समरजीत कुमार मंडल, हरि गणेश शर्मा जांच कर चुके हैं. जबकि वर्तमान में राम नारायण मिश्रा जांच कर रहे हैं.
यह मामला इसलिए प्रकाश में आया थी कि एसपी ने नगर थाने में बैठक की थी. इस दौरान एसपी दीपक बरनवाल ने लंबित कांडों की समीक्षा की थी. कांडों की जानकारी नहीं रखने पर कई पुलिस अधिकारियों को फटकार लगायी थी और दो एसआई से शो-कॉज भी पूछा था.
क्या है पूरा मामला
2012 में गांधीनगर निवासी अनिल श्रीवास्तव ने टिकरी रोड में जमीन खरीदी थी. वह नागेश्वर राम की थी. बेटे व परिवार ने मिल कर पिता के इलाज के लिए जमीन बेचने की बात कही थी. इसी बात पर जमीन की मापी करा कर अनिल ने अपने नाम पर रजिस्ट्रेशन करा लिया. लेकिन जब जमीन पर दीवार उठाने लगे तो उनका बेटा विरोध करने लगा.
कहा कि मेरे पिता नागेश्वर राम की मौत 2005 में ही हो थी, तो जमीन कैसे लिख दी. यह सुन अनिल हैरान हो गया. जब पता किया तो उनके परिवार में ब्रह्मदेव राम ने खुद को नागेश्वर राम बता जमीन बेच दी थी. यहां तक कि रजिस्ट्रार के यहां गवाही भी दी थी.
जब पहचान की गयी तो ब्रह्मदेव जमीन मालिक नागेश्वर राम का भतीजा निकला. वकालतन नोटिस देकर पैसे लौटने को कहा, लेकिन उनलोगों ने टाल-मटोल शुरू कर दी. उल्टा मुझपर ही झूठा मुकदमा कर दिया. एसपी के जनता दरबार में आवेदन देकर गुहार लगायी. उसके बाद आरोपितों के खिलाफ नगर थाना में प्राथमिकी दर्ज करायी, जो अब तक अनुसंधान में है.
केस को दबाने के लिए हुआ खेल
अनिल ने बताया कि इस केस को दबाने के लिए खूब खेल हुआ. केश के अनुसंधानकर्ता सहित वरीय अधिकारी पर विपक्षियों से मिलीभगत का आरोप लगाया. बता दें कि पूर्व में इस केस के अनुसंधानकर्ता हरि गणेश शर्मा इस केस में रिश्वत मांगने के आरोप में निलंबित भी हुए थे. यहां तक कि पूर्व एसडीपीओ पीएन साहु की वर्दी पर भी मेलजोल का दाग लगा था. ऐसे ही कारनामों के कारण यह केस लगातार लंबित पड़ा है.
थक-हार कर अनिल ने चार दिसंबर 2018 को एक बार फिर एसपी से मुलाकात की और आवेदन देते हुए कार्रवाई की मांग की. इसके बाद एसपी कार्यालय से उचित कार्रवाई के लिए एक सप्ताह का समय दिया गया था. लेकिन, छह महीने बीत गये अब तक न्यायालय में चार्जशीट भी नहीं सौंपा गया.

Next Article

Exit mobile version