फूल की खेती कर जीवन संवार रहा दधपा का संतोष व किशोरी, खुशबू से सुगंधित हो रहा है आसपास का वातावरण, एक एकड़ में होती है 80 हजार से अधिक आमदनी(फोटो नंबर-16)परिचय- लहलहाते गंेदा का फूल अंबा(औरंगाबाद): प्रखंड के दधपा गांव निवासी सरयू मालाकार उसका बेटा संतोष कुमार मालाकार तथा उसी गांव का किशोरी फूल की खेती कर अपना जीवन संवार रहा है.अंबा के बतरे नदी के किनारे दोनों ने 10-10 कटठा जमीन लीज पर लिख है और कई वर्षों से विभिन्न प्रकार के फूल की खेती करने में लगा है. सरयू का बेटा संतोष मालाकार तथा किशोर बताते है कि एक वर्ष में तीन तरह की फूलों की खेती वे कर लेते है और इससे उन्हें फसलों की अपेक्षा अधिक आमदनी हो रही है. दोनों ने 10 हजार रुपये प्रति एकड़ की दर से लीज पर जमीन लिया है. फूल के गाछी कोलकता से मंगाते है जिसमें तकरीबन 12 हजार रुपये प्रति एकड़ खर्च होता है. फूल की खेती करने से एक ओर दोनों परिवार का आमदनी बढ़ा है तो दूसरी ओर आसपास का वातावरण भी सुगंधित रहता है. इससे प्रगतिशील किसान को औषधीय खेती करने का जज्बा भी पनप रहा है. आम तौर पर धान गेहूं एवं अन्य फसल सिंचाई अथवा वातावरण के प्रभाव से नष्ट हो जाता है. मगर फूल की खेती में कम उर्वरक तथा कम पूंजी के बावजूद अच्छी कमाई हो जाती है. इनके फूलों की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है . स्थानीय बाजार समेत नवीनगर, औरंगाबाद ,डिहरी,सासाराम तथा झारखंड प्रदेश के डाल्टेनगंज आदि कई बाजार में अंबा का फूल इन दिनों बिक रहा है. वर्तमान में गेंदा, गुलजाफरी व चीना चेरी फूल की खेती है.उत्पादक बताते है कि तीन माह में छह से आठ बार इसे पटवन करना पड़ता है.एक बार पटवन करने मंे लगभग पांच लीटर तेल लगता है.एक एकड़ में होती है 18 हजार रुपये खर्चफूल की खेती से जुड़े किसान बताते है कि एक एकड़ में फूल की खेती करने में तकरीबन 18 हजार रुपया खर्च होता है.कोलकता से लाल व पीला फूल की गाछी मांगने लाएं है. किसान बताते हैक प्रति गाछी 4 रुपये के दर से मिला है.इसे रोग से बचाने के लिए प्रति एकड़ दो हजार के लगभग दवा पर खर्च होता है. पौधा पर मिटटी डालते समय यूरिया डीएपी खाद दिया जाता है. पौधा को लगाने से लेकर अंतिम समय तक पटवन पर प्रति एकड़ 4 से 5 हजार रुपये खर्च होता है.सरकारी सुविधा से वंचित है किसानकृषि विभाग द्वारा फूल की खेती पर अनुदान देने का प्रावधान है पर अब तक इन दोनों किसानों को किसी तरह की सरकारी सुविधा उपलब्ध नहीं हुई है. किसान बताते है कि विगत तीन वर्षों से हम खेती कर रहे है. पर अब तक कोई अधिकारी नहीं आये है. सरकारी सुविधाओं का लाभ न मिलने से असंतोष व्याप्त है.हालांकि कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक युवाओं को ट्रेनिंग देने यहां आये थे.क्या है फायदाफूल की खेती केवल आमदनी का साधन नहीं ,बल्कि इससे कई तरह का लाभ मिलता है. विशेषज्ञों की माने तो इससे वातावरण पर अच्छा प्रभाव पड़ता है. इसके साथ ही गेंदा का फूल कीट के प्रकोप को भी समाप्त करता है.अन्य फसलों मंे लगने वाले कीट को यह अपनी ओर आकर्षित करता है.डीएचओ डा.श्रीकांत बताते है कि यदि टमाटर व गंेदा की फूल की अंर्तवती खेती किया जाये तो टमाटर का ऊपज अधिक होता है. साथ ही टमाटर पर किसी तरह का रसायिनक दवाओं का छिड़काव नहीं करना पड़ता है. दो लाइन टमाटर व एक लाइन में गंेदा के फूल लगाने से टमाटर मंे लगने वाले फल छेदक कीट को फूल अपनी ओर आकर्षित कर लेता है,जिससे फल में छेद नहीं होता और रसायनिक दवाओं की छिड़काव भी नहीं करना पड़ता है.एक एकड़ में लगाया जाता है 15 हजार पौधाडीएचओ ने बताया कि किसान एक एकड़ में 15 हजार गेंदा के फूल का पौधा लगा सकते है.तीन माह की गंेदा फूल की खेती में एक पौधा से एक से डेढ़ किलो फूल निकलता है.40 से 50 रुपये किलो होती है बिक्रीगेंदा का फूल 40 से 50 रुपये किलो बाजार में बिक रहा है. डीएचओ के अनुसार एक एकड़ में 20 हजार किलो से अधिक ऊपर होगी,जिसका मूल्य 80 हजार से एक लाख रुपये तक होता है. 20 हजार रुपये लगा कर तीन माह की खेती में एक लाख की आमदनी शायद ही कोई फसल दे सकती है. ऐसे में फूल की खेती उत्पादकों के लिये लाभदायक है. गंेदा का फूल के कई प्रजाति के पौधे बाजार में उपलब्ध है ,जिसमें साबौर हजारा, पूसा नारंगी, बंगाली गंेदा आदि प्रमुख है. व्यावसायिक दृष्टि से पूसा नारंगी और बंगाली गंेदा प्रजाति के पौधे अधिक लाभदायक है.मच्छर से करता है बचावडीएचओ की माने तो गंेदा का फूल हमे मच्छर से भी बचाता है.उन्होंने बताया कि यदि घर के आसपास इसकी खेती की जाए तो मच्छर का प्रभाव कम होता है. उन्होंने आर्थिक व धार्मिक दृष्टि के साथ-साथ वातावरण को शुद्धता बनाये रखने में भी गंेदा की फूल की खेती को आवश्यक बताया है.
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