कर्मचारी को सातवां वेतनमान व किसानों को लागत भी नहीं वर्षाभाव से धान उत्पादन में काफी कमी रबी बुआई पर भी मड़रा रहा है संकट 75 प्रतिशत खेत परती रहने की संभावनाफोटो नंबर-22 -परिचय-अंबा(औरंगाबाद) पहले धान की खेती ही प्रखंड क्षेत्र के किसानों का एकमात्र सहारा था, पर अब इससे गुजारा नहीं हो रहा है. धान की खेती में किसान दुगुनी मार झेल रहे हैं. एक तरफ वर्षाभाव में धान के उत्पादन में काफी कमी हुई, तो दूसरी ओर रबी की बुआई पर भी संकट मड़रा रहा है. हजारों एकड़ में लगी धान की फसल तो सिंचाई के बिना प्रभावित हुई है. साधन संपन्न किसान डीजल पंपसेट के बदौलत अपने खेतों की सिंचाई किये, पर उनका भी उत्पादन दर काफी कम आया. किसान मृत्युंजय सिंह, शिवनाथ पांडेय, अरुण यादव, संजय सिंह, राहुल कुमार आदि बताते हैं कि पिछले वर्ष सोनम धान 15 क्विंटल प्रति बीघा उपज हुआ था. सिंचाई के लिए दिन रात मेहनत करने के बाद भी इस वर्ष मात्र 10 क्विंटल प्रति बीघा ही उपज हुआ. डीजल से पटवन करने के कारण खर्च भी पिछले वर्ष से अधिक लगा है. ऐसे किसान जिन्होंने पटवन के लिए डीजल पंपसेट का सहारा नहीं लिए तो उनकी फसल सुख गयी या फिर बाली भी निकली तो पूरा दाना नहीं भर पाया. ऐसी स्थिति में उनका उपज मात्र पांच से छह क्विंटल प्रति बीघा ही सिमट कर रह गया. किसान कहते हैं कि यह किस्मत की हीं बात है कि किसान को उनका उत्पादन का लागत भी नहीं मिल रहा है जबकि सरकारी कर्मचारियों के सारी सुख-सुविधा के बाद भी सातवें वेतन देने की तैयारी चल रही है.एक बीघा धान में 10 हजार रुपये खर्च : किसान बताते हैं कि एक बीघा धान की खेती करने मे तकरीबन 10 हजार रुपये खर्च पड़ते हैं. किसानों के अनुसार बीज बुआई से नर्सरी की तैयारी तक लगभग 300 रुपये, खेत जुताई में 1000, कुदाल व मेड़ को सुदृढ़ करने में 600 रुपये, बीज उखाड़ने से रोपनी करने तक मजदूरी 1200, डीएपी, यूरिया, पोटास, जिंक आदि उर्वरक के प्रयोग में 1500 से 2000 तक, खरपतवार नियंत्रण में 1000 रुपये, कटनी कराने में तकरीबन 2000 रुपये, डीजल से पटवन करने में 2000 रुपये तक खर्च होते हैं. अगर फसल में कीट का प्रकोप हो जाता है तो दवाओं के प्रयोग में भी 1000 से 1500 रुपये खर्च आता है. यह सर्वविदित है कि वर्षाभाव में धान के फसल में अनेक प्रकार का रोग लग जाता है.बंजर हुई भूमि, कैसे होगी रबी की बुआई : बारिश नहीं होने से खेत बंजर हो गयी है. धान की कटनी तो करा दी गयी पर खेत में रबी फसल लगाये जाने की संभावना दूर-दूर तक नहीं दिख रही है. खेतों में दरार उभार आये हैं. साधन संपन्न किसान पंपसेट से पटवन कर खेत की जुताई करा सकते हैं, पर जिनके पास साधन नहीं है उनका तो पूरा खेत ही इस वर्ष परती रह जायेगा. हालांकि, संपन्न किसान भी अपने सभी खेतों में रबी की बुआई नहीं कर पायेंगे, क्योंकि पानी का लेयर काफी नीचे खिसक गया है. ऐसी स्थिति में 75 प्रतिशत भूमि परती रहने की संभावना है.कटनी के लिए नहीं मिल रहे है मजदूर, हारवेस्टर ही सहारा : किसानों को धान कटनी के लिए मजदूर भी नहीं मिल रहे हैं. हारवेस्टर ही इस काम के लिए उनका सहारा रह गया है. यूं तो बड़े किसान पहले भी हारवेस्टर पर आश्रीत थे, पर इस वर्ष छोटे किसानों को भी इसका सहारा लेना पड़ा. मजदूर आखिर मिले भी तो कैसे. जब धान की कटनी करने में उनका मजदूरी भी नहीं मिल पायेगा. जितना मजदूरी किसान देते हैं उससे मजदूरों को गूजारा नहीं है और अधिक मजदूरी देना किसानों के लिए सहज नहीं है. प्रखंड क्षेत्र में सौ मन में 17 मन या फिर 12 बोझा में एक बोझा के हिसाब से कटनी होती है. जब धान का उत्पादन ही कम है तो मजदूरों को लाभ क्या मिलेगा. ऐसे हारवेस्टर के प्रयोग से किसानों को सहूलियत हो रही है. उन्हें कम लागत और थोड़े ही समय में धान की कटनी हो जा रही है. हारवेस्टर से एक बीघा खेत में धान कटवाने में 1000 रुपये खर्च होता है.किसान औन-पौने दाम में बेच रहे धान : किसानों का धान तैयार है और विभागीय स्तर पर खरीदारी अभी शुरू नहीं हुई है. बाजार के व्यापारी से किसान औन-पौने दाम में धान बेच रहे हैं. किसान धान को पैक्स में बेचने के लिए लंबे समय तक इंतजार नहीं कर सकते हैं. किसी को खाद-बीज की जरूरी है तो किसी को शादी-व्याह के लिए पैसे की जरूरत है. जानकारी के अनुसार मंसूरी धान साढ़े 10 सौ रुपये प्रति क्विंटल तो सोनम साढ़े 15 सौ रुपये प्रति क्विंटल के दर से बिक रहा है. ऐसी स्थिति में किसानों को काफी नुकसान हो रहा है. जबकि, सरकारी स्तर पर बोनस समेत मंसूरी धान का मूल्य 1660 रुपये प्रति क्विंटल है. ऐसे में किसानों को 600 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक का नुकसान हो रहा है. विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार खरीदारी के संबंध में अभी तक निर्देश प्राप्त नहीं हुआ हैं. बीसीओ महफुज आलम से संपर्क करने पर उन्होंने बताया कि किसानों का ऑनलाइन पंजीकरण का काम शुरू है. सरकारी स्तर पर धान बेचने के लिए इस बार यह अनिवार्य है. जो किसान अपना पंजीकरण नहीं करायेंगे, उनका धान सरकारी स्तर पर नहीं खरीदा जायेगा.बोनस से बिचौलिये होंगे मालामाल : सरकार धान की खरीदारी पर बोनस देने की घोषणा कर दी है, पर इसका लाभ उचित किसानों को मिलने की संभावना नहीं है.विभाग धान की खरीदारी करने में काफी विलंब कर रही है.जब किसान का धान बाजार में बिक जायेगा, तो सरकार के बोनस का लाभ बिचौलिया को मिलेगा. किसानों के बजाय सरकार के रुपये से बिचौलिया मालामाल होंगे. विभाग को धान खरीदारी शीघ्र शुरू कराने की जरूरत है. हालांकि बिचौलियों पर रोकथाम लगाने के लिए सरकार प्रति पंजीकृत किसानों से ही धान खरीदारी करने की बात साफ जाहिर कर दी है. इसके साथ ही प्रति किसान 100 क्विंटल धान की खरीदारी होने से भी बिचौलियों को दिक्कत होगा.
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