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डीएम का आदेश भी बेअसर, सदर अस्पताल में दवा नदारद

औरंगाबाद (नगर) : एक तरफ सरकार सदर अस्पताल को आदर्श अस्पताल के रूप में विकसीत करने के लिए चयनित किया है, ताकि जिले के मरीजों को सभी तरह का समुचित इलाज व नि:शुल्क में दवा मिल सके. लेकिन अस्पताल प्रबंधन के लोग आदर्श अस्पताल बनाने के बजाय पीएचसी से भी बदतर बनाकर रख दिया है. […]

औरंगाबाद (नगर) : एक तरफ सरकार सदर अस्पताल को आदर्श अस्पताल के रूप में विकसीत करने के लिए चयनित किया है, ताकि जिले के मरीजों को सभी तरह का समुचित इलाज व नि:शुल्क में दवा मिल सके. लेकिन अस्पताल प्रबंधन के लोग आदर्श अस्पताल बनाने के बजाय पीएचसी से भी बदतर बनाकर रख दिया है. इस अस्पताल में न तो किसी विभाग के कोई विशेषज्ञ चिकित्सक हैं और न ही पर्याप्त मात्रा में जीवन रक्षक दवाइयां. यहां पर न तो बुखार की दवा है और न ही दर्द की. यह कहना कोई गलत नही होगा कि सदर अस्पताल रूई से लेकर सूई तक के लिए भी मोहताज है.
इससे अस्पताल में इलाज कराने आ रहे मरीजों को काफी परेशानी हो रही है. यहां प्रतिदिन हजारों मरीज यह सोच कर सदर अस्पताल आते हैं कि कम पैसे में सही तरीके से इलाज होगा और दवा भी मिलेगी. लेकिन सदर अस्पताल में घंटों कतार में खड़े होने के बाद मरीजों को चिकित्सकों द्वारा तो इलाज कर दिया जाता है, लेकिन मरीज जब दवा का पुरजा लेकर खरीदने के लिए जब दवा काउंटर पर जाते हैं, तो उन्हें यह कह कर लौटा दिया जा रहा है कि यहां पर सिर्फ दो प्रकार की एंटेवाइटीक दवाइयां ही उपलब्ध है.
इसके बाद मरीज या उनके परिजन निराश होकर बाहर से दवा खरीदने को मजबूर हो रहे हैं. जबकि, आठ दिसंबर को जिलाधिकारी कंवल तनुज ने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक की थी. इस दौरान सदर अस्पताल प्रबंधन के अलावे सिविल सर्जन को अविलंब दवा खरीदने का निर्देश दिया था, लेकिन एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी दवा की खरीदारी नहीं हो सकी है.
इस संबंध में सदर अस्पताल उपाधीक्षक डाॅ तपेश्वर प्रसाद ने बताया कि दवा खरीदने के लिए मेडिकल दुकानों से सूची की मांग की गयी है. जल्द ही दवा की खरीदारी कर ली जायेगी. देखना यह होगा कि सदर अस्पताल में कब तक दवा की खरीदारी की जा सकती है या फिर गरीब लचार मरीजों को बाहर से दवा खरीदना ही पड़ सकता है.
इस संबंध में सिविल सर्जन डाॅ आरपी सिंह ने बताया कि दवा क्यों नहीं खरीद की गयी इस बात को उपाधीक्षक से पूछिए, हम इस बिंदु पर कुछ नहीं बोलेंगे. एक लाख तक की दवा खरीदने का अधिकारी उपाधीक्षक को है. इससे यह स्पष्ट होता है कि सिविल सर्जन व उपाधीक्षक के बीच कोई आपसी सामंजस्य नहीं है.

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