ग्रामीण पर्यटन से जिले की बदल सकती है तसवीरबढ़ेंगे रोजगार, रुकेगा पलायन ऐतिहासिक स्थल से जुड़े हैं कई गांव, विकसित करने की जरूरत (फोटो नंबर-11,12)कैप्शन- देव सूर्य मंदिर, उमगा सूर्य मंदिर(लीड) औरंगाबाद (सदर) कहा जाता है कि वास्तविक भारत की असली तसवीर देखना है तो गांव को देखना होगा. दरअसल देश गांव की धरती के रूप में विख्यात है पर आज इन्हीं गांवों के लोगों के समक्ष पलायन की एक बड़ी समस्या खड़ी हो गयी है. लोग धीरे-धीरे गांवों से कटने लगे हैं, जिसके कारण गांवों की संस्कृति व सभ्यता भी धीरे-धीरे मिट रही है. बुद्धिजीवियों की राय में गांव को बचाने व पलायन रोकने के लिए आज ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है. जब तक गांवों में रोजगार के अवसर पैदा नहीं किये जायेंगे तब तक ये पलायन जारी रहेगा. ऐसे लोगों का मानना है कि औरंगाबाद जिला अंतर्गत आने वाले ग्रामीण इलाकों से पलायन को रोकने के लिए ग्रामीण पर्यटन को विकसित किया जाना बहुत जरूरी है. हालांकि ये जरूरत सिर्फ स्थानीय स्तर पर ही बेहद आवश्यक नहीं बल्कि आज ये देश की मांग है. गांव के संस्कृति को बचाने का प्रयास जनप्रतिनिधि व जिला प्रशासन बखूबी कर सकते हैं. साथ ही कुछ प्रगतिशील संगठन भी इसे बढ़ावा देने में मददगार साबित हो सकते हैं. लेकिन ऐसा हो नहीं रहा. बुद्धिजीवियों की माने तो ग्रामीण पर्यटन देश की जरूरत है. अगर जिले में भी ग्रामीण पर्यटन की लकीर खींची जाये तो ये कई अर्थों में महत्वपूर्ण साबित होगा. इससे न सिर्फ रोजगार बढ़ेंगे बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों का विकास भी होगा. इससे यहां के लोगों का जीवन स्तर में भी सुधार होगा. रोजगार के अवसर पैदा होने से जिले की सूरत तो बदलेगी ही, साथ ही पलायन रूक सकेगा. कला व विरासत बन सकता है माध्यम : हर क्षेत्र की अपनी एक पहचान होती है. ग्रामीण क्षेत्रों में कला, विरासत व संस्कृति, धार्मिक व अध्यात्मिक पर्यटन के पूरे अवसर उपलब्ध होते हैं. यहां भी इनकी कोई कमी नहीं है. पारंपरिक व ऐतिहासिक पर्यटन पर बस नजर दौड़ाने की आवश्यकता है. औरंगाबाद जिले के धार्मिक व ऐतिहासिक स्थलों पर नजर डाली जाये तो यहां देव सूर्य नगरी, उमगा, देवकुंड, अमझरशरीफ, दाउद खां का किला, पवई पहाड़, सतबहिनी, महुआधाम, गजनाधाम, गुरुद्वारा, ओबरा का कालीन उद्योग, चंद्रगढ, सिरिस, पचार की पहाड़ी, बेलसारा मंदिर, जम्होर का विष्णुधाम सहित दर्जनों स्थल शामिल हैं. जो कई गांवों को अपने इतिहास से जोड़ती है. अगर ग्रामीण पर्यटन को विकसित कर इनसे जुड़े गांवों का विकास किया जाये तो रोजगार के व्यापक अवसर मिल सकते हैं. इसके लिए स्थानीय लोगों को भी खुद से प्रयास करने की जरूरत होगी. मददगार साबित हो सकता है सोशल साइट : इंटरनेट के इस युग में प्रचार प्रसार का तरीका काफी बदल गया है. अब लोग सोशल साइट पर अपना वेबसाइट बना कर अपने बारे में स्पष्ट जानकारी उपलब्ध करा सकते हैं. जिले के ग्रामीण क्षेत्रो को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए सोशल साइट भी काफी मददगार साबित हो सकता है. औरंगाबाद जिला का भी अपना एक वेबसाइट है, जिस पर औरंगाबाद की तमाम पंचायतों की जानकारी, मानचित्र, इतिहास व धार्मिक स्थल की जानकारी दी गयी है. इसी तरह ग्रामीण पर्यटन को भी बढ़ावा देने के लिए तथा दूर देशों में प्रचारित करने के लिए सोशल साइट की मदद ली जा सकती है. इसमें ग्रामीण क्षेत्र का वर्गीकरण, धार्मिक, ऐतिहासिक क्षेत्र की जानकारी पर्यटक स्थल, मानचित्र, कृषि व परंपराओं को जोड़ा जा सकता है. इसके लिए एक प्लानिंग की आवश्यकता है. प्रगतिशील संगठनों को आगे आने की जरूरत : एक गैर सरकारी संगठन के सचिव सह अधिवक्ता आशुतोष शंकर बताते हैं कि पर्यटन मंत्रालय द्वारा ऐसी योजना के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया जाता है. साथ ही प्रशिक्षण भी दिया जाता है. फिर क्षेत्र की विशिष्टता व जरूरत को ध्यान में रखकर योजना बनायी जाती है. अगर औरंगाबाद जिले के ग्रामीण इलाकों में ग्रामीण पर्यटन की शुरुआत की जाये तो आनेवाले समय में ये एक आकर्षण का केंद्र बनेगी और यहां रोजगार भी खूब बढ़ेंगे. इसके लिए सरकारी स्तर पर पहल के साथ-साथ प्रगतिशील संगठनों को आगे आने की जरूरत होगी.
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ग्रामीण पर्यटन से जिले की बदल सकती है तसवीर
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