हर साल निजी विद्यालयों में बदलते सिलेबस

पुरानी किताबों से पढ़ने के लद गये दिन निजी विद्यालय की मुनाफाखोरी की नीति ने पुरानी परंपरा को किया प्रभावित औरंगाबाद (सदर) : हते हैं कि किताबों के दिन कभी नही लदते, लेकिन आज वर्ष बदलते ही किताबें बदल जाती है. एक समय था जब एक किताब कई लोगों के पढ़ने के काम आता था. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 21, 2016 8:18 AM
पुरानी किताबों से पढ़ने के लद गये दिन
निजी विद्यालय की मुनाफाखोरी की नीति ने पुरानी परंपरा को किया प्रभावित
औरंगाबाद (सदर) : हते हैं कि किताबों के दिन कभी नही लदते, लेकिन आज वर्ष बदलते ही किताबें बदल जाती है. एक समय था जब एक किताब कई लोगों के पढ़ने के काम आता था. कक्षाएं बदल जाती थी पर किताबें नहीं. किसी एक वर्ग की किताब को आने वाले हर नये छात्र पढ़ते थे जो वार्षिक परीक्षा पास कर ऊपर के वर्ग में जाते थे.
किताब के पन्ने पिल्ले पड़ कर खास्ता हो जाने तक उसे पढ़ा जाता था. जब तक पूरी तरीके से किताब के पन्ने नष्ट नहीं हो जाते तब तक वे किसी न किसी का ज्ञान बढ़ा रहा होता था, लेकिन अब ये सिर्फ ख्वाब की बातें बन कर रह गयी है. अब तो विद्यालय की कक्षा बदलते ही किताबें भी बदल जाती हैं. हर साल निजी विद्यालय के सिलेबस बदलते हैं. ऐसे में पुरानी किताबों से छात्रों का नाता टूट जाता है. निजी विद्यालय की मुनाफाखोरी की नीति ने पुरानी परंपरा को प्रभावित किया है.
दीदी की किताब पढ़ कर ही बन गयी पदाधिकारी
शंकुतला कुमारी को पढ़ाई में बड़ी रुचि थी. सरकारी विद्यालय में पढ़ने के बावजूद वे अपने दम पर हर क्लास में अव्वल रहती थी. क्लास बदलता था पर इनकी किताबें नहीं बदलती थी.
साल दर साल ये नये वर्ग में जाती थी और अपने सीनियर की किताब से पढ़ाई करती थी. आज शंकुतला कुमारी नगर थाने की महिला थाना प्रभारी हैं. बताती हैं कि कटिहार की एक सरकारी विद्यालय की वे छात्रा थी. वे अपनी दीदी जो इनसे एक साल सीनियर थी उनकी किताबें इनके काम आ जाती थी. कभी भी किताब खरीदने की जरूरत नहीं पड़ी. पहले आम तौर पर एक साल में एक कक्षा का ही सिलेबस बदलता था. सीनियर की किताबें बहुत काम आती थी.
आधे दाम में खरीदी थी किताब
डाॅ नौशाद बताते हैं कि वे अपने पढ़ाई के दौरान कक्षा नौ की किताब अपने सीनियर से आधे दाम पर खरीदे थे. आधे दाम से भी कम मूल्य पर किताबें मिल जाती थी. पढ़ने के बाद उसे बेच भी दिया जाता था. एक किताब से कई लोग पढ़ते थे. एक बार किताब पर एक लड़की का नाम लिखा था जिसे देख अभिभावक सशंकित हो गये थे. दरअसल वो किताब एक सीनियर की थी. जिसे मैं आधे दाम पर खरीदा था.
शिक्षा के नाम पर मची है लूट
अशोक पांडेय पेशे से शिक्षक हैं, बताते हैं कि सरकारी विद्यालय में सिलेबस चेंज हो जाना मामूली बात है.तीन चार वर्ष पूर्व बिहार बोर्ड के सिलेबस में बदलाव आया था. हालांकि बिहार बोर्ड को छोड़ निजी विद्यालयों में ऐसा नहीं है. निजी विद्यालय शिक्षा के नाम पर लूटते हैं. शिक्षा के अधिकार कानून में निजी विद्यालयों को ये निर्देश हैं कि ग्रामीण क्षेत्र के 25 प्रतिशत गरीब बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा उपलब्ध करानी है, लेकिन ऐसा कौन कर रहा है. हर वर्ष मुनाफा के लिए सिलेबस चेंज होते हैं.
हर साल बदलता सिलेबस
बबिता कुमारी बीएड कर चुकी हैं. वे कहती हैं कि अभिभावकों से रुपयों एठने के लिए हर साल किताब खरीदने को निजी विद्यालय मजबूर करते हैं. निजी विद्यालय में हर वर्ष सिलेबस चेंज हो जाता है. आठवीं कक्षा तक करीब-करीब हर विद्यालय में ये परंपरा लागू है. खुद के फायदे के लिए निजी विद्यालय इस तरीके से किताब को बदलते हैं कि जिससे उनका मुनाफा बढ़ता ही रहे. लेकिन बोर्ड हमेशा सिलेबस नहीं बदलते. बिहार बोर्ड ने तो कई बार 10 वर्षों तक सिलेबस चेंज नहीं किया है. अगर सिलेबस चेंज हुआ भी तो बारी-बारी से. मैने तो अपने रिश्तेदारो से भी किताबे मांग कर पढ़ाई की हूं.
सिलेबस बदलने पर ही बदलती थी किताब
मोहम्मद जाहिद हसन सरकारी व निजी विद्यालय दोनों जगह से पढ़े है. ये बताते हैं कि पहले सिलेबस बदलने पर ही किताबें बदलती थी. सरकारी स्कूलों में तो एक किताब से कई बैच पढ़ लेते थे. हर साल नयी किताब खरीदने की कोई मजबूरी नहीं थी. परीक्षा आते ही किताब खरीदने व बेचने की चिंता हो जाती थी. खोजा जाने लगता था कि किस सीनियर का किताब अच्छे स्थिति में है. अगर नयी किताब खरीदने भी पड़ती थी तो जेब से कम रुपये लगते थे पर, आज ऐसा नहीं है

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